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तं꣡ त्वा꣢ शोचिष्ठ दीदिवः सु꣣म्ना꣡य꣢ नू꣣न꣡मी꣢महे꣣ स꣡खि꣢भ्यः ॥११०९॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)तं त्वा शोचिष्ठ दीदिवः सुम्नाय नूनमीमहे सखिभ्यः ॥११०९॥
त꣢म् । त्वा꣣ । शोचिष्ठ । दीदिवः । सुम्ना꣡य꣢ । नू꣣न꣢म् । ई꣣महे । स꣡खि꣢꣯भ्यः । स । खि꣣भ्यः ॥११०९॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
आगे पुनः वही विषय है।
हे (शोचिष्ठ) अत्यधिक पवित्र और अतिशय पवित्रकर्ता, (दीदिवः) सत्य के प्रकाशक परमात्मन्, राजन् वा आचार्य। (तं त्वा) उन आपसे हम (नूनम्) निश्चय ही (सखिभ्यः) साथियों के (सुम्नाय) सुख के लिए (ईमहे) याचना करते हैं ॥३॥
जो स्वयं पवित्र ह्रदयवाला और सत्य का समर्थक है, वही दूसरों को वैसा बना सकता है ॥३॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ पुनरपि तमेव विषयमाह।
हे (शोचिष्ठ) पवित्रतम अतिशयेन पवित्रकर्त्तः, (दीदिवः) सत्यप्रद्योतक परमात्मन् नृपते आचार्य वा ! (तं त्वा) तादृशं त्वाम्, वयम् (नूनम्) निश्चयेन (सखिभ्यः) सुहृद्भ्यः (सुम्नाय) सुखाय (ईमहे) याचामहे। [ईमहे इति याच्ञाकर्मसु पठितम्। निघं० ३।१९] ॥३॥२
यः स्वयं पवित्रहृदयः सत्यसमर्थकश्च स एवान्यान् तादृशान्कर्तुं प्रभवति ॥३॥
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