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तमु॒क्षमा॑णम॒व्यये॒ वारे॑ पुनन्ति धर्ण॒सिम् । दू॒तं न पू॒र्वचि॑त्तय॒ आ शा॑सते मनी॒षिण॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tam ukṣamāṇam avyaye vāre punanti dharṇasim | dūtaṁ na pūrvacittaya ā śāsate manīṣiṇaḥ ||

पद पाठ

तम् । उ॒क्षमा॑णम् । अ॒व्यये॑ । वारे॑ । पु॒न॒न्ति॒ । ध॒र्ण॒सिम् । दू॒तम् । न । पू॒र्वऽचि॑त्तये । आ । शा॒स॒ते॒ । म॒नी॒षिणः॑ ॥ ९.९९.५

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:99» मन्त्र:5 | अष्टक:7» अध्याय:4» वर्ग:25» मन्त्र:5 | मण्डल:9» अनुवाक:6» मन्त्र:5


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (उक्षमाणम्, तम्) उक्त बलस्वरूप परमात्मा को (मनीषिणः) मेधावी लोग (अव्यये, वारे) रक्षायुक्त विषयों में (पुनन्ति) वर्णन करते हैं, (धर्णसिम्) सर्वाधार को (दूतम्, न) दुःखनिवारकरूप से (पूर्वचित्तये) सबसे प्रथम (आशासते) प्रार्थना करते हैं ॥५॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा सम्पूर्ण जगत् का आधार है, इससे उसी की उपासना प्रथम करनी चाहिये ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

दूतं न पूर्वचित्तये

पदार्थान्वयभाषाः - (अव्यये) [अवि अय] = विविध विषयों में न भटकनेवाले (वारे) = वासनाओं का वारण करनेवाले पुरुष में (उक्षमाणं) = शक्ति का सेचन करते हुए (धर्णसिम्) = शरीर के धारक (तम्) = उस सोम को (पुनन्ति) = पवित्र करते हैं (मनीषिणः) = बुद्धिमान् पुरुष (दूतं न) = ज्ञान का संदेश देनेवाले के समान इस सोम को पूर्वचित्तये पालक व पूरक ज्ञान की प्राप्ति के लिये (आ शासते) = चाहते हैं । इस सोम ही तो ज्ञानाग्नि को दीप्त करके व हृदय को पवित्र करके हमें ज्ञान का सन्देश सुनाता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोम शक्ति का सेचन करता है, प्रभु के ज्ञान-सन्देश को सुनने के योग्य हमें बनाता है ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (उक्षमाणं, तं) बलस्वरूपं तं परमात्मानं (मनीषिणः) मेधाविनः (अव्यये, वारे) रक्षायुक्तस्थाने (पुनन्ति) वर्णयन्ति (धर्णसिं) सर्वधारकं (दूतं, न) दुःखनिवारकं मन्यमानाः (पूर्वचित्तये) सर्वेभ्यः प्रथमं (आशासते) प्रार्थयन्ते ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - That omnipotent virile generative Soma creator, the very pillar and foundation of the universe, thinkers and meditative sages sanctify and hold in the pure heart core of their soul and celebrate as the prime divine voice of revelation of the eternal Vedic knowledge for enlightenment of the human soul.