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तम॑स्य मर्जयामसि॒ मदो॒ य इ॑न्द्र॒पात॑मः । यं गाव॑ आ॒सभि॑र्द॒धुः पु॒रा नू॒नं च॑ सू॒रय॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tam asya marjayāmasi mado ya indrapātamaḥ | yaṁ gāva āsabhir dadhuḥ purā nūnaṁ ca sūrayaḥ ||

पद पाठ

तम् । अ॒स्य॒ । म॒र्ज॒या॒म॒सि॒ । मदः॑ । यः । इ॒न्द्र॒ऽपात॑मः । यम् । गावः॑ । आ॒सऽभिः॑ । द॒धुः । पु॒रा । नू॒नम् । च॒ । सू॒रयः॑ ॥ ९.९९.३

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:99» मन्त्र:3 | अष्टक:7» अध्याय:4» वर्ग:25» मन्त्र:3 | मण्डल:9» अनुवाक:6» मन्त्र:3


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्य) उक्त परमात्मा के (तम्) उक्त आनन्द को (मर्जयामसि) हम लोग शुद्धभाव से धारण करते हैं, (यः) जो (मदः) आनन्द (इन्द्रपातमः) कर्मयोगी की तृप्ति करनेवाला है, (यम्) जिस आनन्द को (गावः) इन्द्रियें (आसभिः) अपनी वृत्तियों द्वारा (दधुः) धारण करती हैं (च) और (नूनम्) निश्चयपूर्वक (सूरयः) विद्वान् लोग (पुरा) पूर्वकाल से उपासना करते हैं ॥३॥
भावार्थभाषाः - कर्म्मयोगी लोग अपने अन्तःकरण को शुद्ध करके परमात्मानन्द का अनुभव करते हैं ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सूरयः आसभिः दधुः [सोम]

पदार्थान्वयभाषाः - हम (तम्) = उस सोम को (मर्जयामसि) = शुद्ध करते हैं। प्रणवजप आदि के द्वारा वासनाओं से इसे मलिन नहीं होने देते । (अस्य) = इस सोम का (यः मदः) = जो उल्लास है वह (इन्द्रपातमः) = जितेन्द्रिय पुरुष से ही अतिशयेन पातव्य होता है। (यं) = जिस सोम को (गावः) = तत्त्वज्ञान के प्रति निरन्तर गति वाले, अर्थों का औरों के लिये प्रकाश करनेवाले [ गमयन्ति अर्थान् ] (सूरयः) = ज्ञानी लोग (पुरा नूनं च) = पहले और अब भी अर्थात् सदा (आसभिः) = [असनं आसः] वासनाओं को परे फेंकने के द्वारा (दधुः) = धारण करते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोम धारण के लिये वासना विनाश आवश्यक है। शुद्ध हुआ हुआ सोम जितेन्द्रिय पुरुष के लिये उल्लास के देनेवाला होता है ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्य) अस्य परमात्मनः (तं) तं पूर्वोक्तमानन्दं (मर्जयामसि) शुद्धस्वभावेन वयं धारयामः (यः, मदः) य आनन्दः (इन्द्रपातमः) कर्मयोगितर्पकः (यं) यमानन्दं (गावः) इन्द्रियाणि (आसभिः) स्ववृत्तिभिः (दधुः) दधति (च, नूनं) तथा च निश्चयं (सूरयः) विद्वज्जनाः (पुरा) प्राचीनकालादेवोपासते ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - That power and ecstasy of this Soma, worthiest of the soul’s delight, we adore and exalt, which the sense and mind with their perceptions and reflection receive and which, for sure, veteran sages too have experienced for times immemorial.