पदार्थान्वयभाषाः - (हर्यताय) = सब से स्पृहणीय (धृष्णवे) = शत्रुओं का धर्षण करनेवाले इस सोम के लिये, सोम के रक्षण के लिये (पौंस्यं धनुः) = शक्ति के अभिव्यञ्जक प्रणव रूप धनुष का (तन्वन्ति) = विस्तार करते हैं। प्रणव [ओ३म्] का जप वासना विनाश के द्वारा सोम का रक्षक होता है। इस प्रकार यह प्रणव रूप धनुष हमारे जीवनों में शक्ति को प्रकट करता है। (महीयुवः) = प्रभु की पूजा की कामना वाले ये लोग (विषाम् अग्रे) = मेधावियों के अग्रभाग में स्थित होते हुए (शुक्रां निर्णिजम्) = इस देदीप्यमान शोधक वेदवाणी रूप वस्त्र को (असुराय) = इस प्राणशक्ति का संचार करनेवाले सोम के लिये (वयन्ति) = बुनते हैं, अर्थात् वेदवाणी का अध्ययन करते हैं, इस प्रकार वासनाओं से अनाक्रान्त होते हुए सोम का रक्षण करते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रणव का जप व वेद का स्वाध्याय सोमरक्षण के सर्वोत्तम साधन है। सुरक्षित सोम रोगकृमिरूप शत्रुओं का धर्षण करता है और हमारे जीवनों में प्राणशक्ति का संचार करता है।