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परि॒ ष्य सु॑वा॒नो अ॒व्ययं॒ रथे॒ न वर्मा॑व्यत । इन्दु॑र॒भि द्रुणा॑ हि॒तो हि॑या॒नो धारा॑भिरक्षाः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pari ṣya suvāno avyayaṁ rathe na varmāvyata | indur abhi druṇā hito hiyāno dhārābhir akṣāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

परि॑ । स्यः । सु॒वा॒नः । अ॒व्यय॑म् । रथे॑ । न । वर्म॑ । अ॒व्य॒त॒ । इन्दुः॑ । अ॒भि । द्रूणा॑ । हि॒तः । हि॒या॒नः । धारा॑भिः । अ॒क्षा॒रिति॑ ॥ ९.९८.२

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:98» मन्त्र:2 | अष्टक:7» अध्याय:4» वर्ग:23» मन्त्र:2 | मण्डल:9» अनुवाक:6» मन्त्र:2


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (स्यः) वह पूर्वोक्त (सुवानः) सर्वोत्पादक परमात्मा (अव्ययम्) रक्षायुक्त पुरुष को (धाराभिः) अपनी कृपामयी वृष्टि से (अक्षाः) रक्षा करता है, (न) जैसे कि, (रथे) कर्मयोग में स्थित विद्वान् को (वर्म) कर्मयोग (पर्य्यव्यत) सब ओर से रक्षा करता है। (इन्दुः) वह प्रकाशस्वरूप परमात्मा (अभिद्रुणा) उपासना किया हुआ और (हियानः) ज्ञानस्वरूप (हितः) साक्षात्कार किया हुआ मनुष्य की बुद्धि की रक्षा करता है ॥२॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा का साक्षात्कार मनुष्य को सर्वथा सुरक्षित करता है ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'कवच के समान' यह सोम

पदार्थान्वयभाषाः - (स्यः) = वह (सुवानः) = उत्पन्न किया जाता हुआ सोम (रथे) = इस शरीर रथ में (अव्ययम्) = न नष्ट होनेवाले (वर्म न) = कवच के समान (परि अव्यत) = आच्छादित किया जाता है। कवच के समान यह रक्षक होता है। कवच के धारण किये हुए योद्धा शत्रु शरों से शीर्ण शरीर नहीं किया जाता, इसी प्रकार सोमरूपी कवच को धारण करनेवाला रोग आदि से आक्रान्त नहीं होता। (इन्दुः) = यह सोम द्रुणा-'द्रुगतौ' क्रियाशीलता के द्वारा (अभिहितः) = शरीर में ही स्थापित हुआ हुआ (हियानः) = शरीर के अन्दर ही प्रेरित किया जाता हुआ (धाराभिः अक्षः) = अपनी धारण शक्तियों के साथ शरीर में संचरित होता है [क्षरति] क्रिया में लगे रहना ही वासनाओं से अनाक्रान्ति का साधन है, और इस प्रकार यह क्रियाशीलता सोमरक्षण का साधन हो जाती है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोमरूपी कवच को धारण करनेवाले को शत्रुओं के बाण भेद सकते हैं ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (स्यः) सः (सुवानः) सर्वोत्पादकः परमात्मा (अव्ययं) सुरक्षितजनं (धाराभिः) स्वकृपावृष्ट्या (अक्षाः) रक्षति (न) यथा (रथे) कर्मयोगवर्तिपुरुषं (वर्म, परि, अव्यत) कर्मयोगो रक्षति (इन्दुः) प्रकाशस्वरूपः सः (अभि द्रुणा) उपासनया युक्तः (हियानः) ज्ञानस्वरूपः (हितः) अन्तःकरणे प्रवेशितः मनुष्यबुद्धिं रक्षति ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - May that Soma, brilliant spirit of peace, power and purity of divinity, invoked and inspired to bless the pious heart, flow by streams and showers, inspiring and fertilizing, and reach the imperishable soul of the devotee and protect him like the armour protecting the warrior in the chariot.