वांछित मन्त्र चुनें

तं स॑खायः पुरो॒रुचं॑ यू॒यं व॒यं च॑ सू॒रय॑: । अ॒श्याम॒ वाज॑गन्ध्यं स॒नेम॒ वाज॑पस्त्यम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

taṁ sakhāyaḥ purorucaṁ yūyaṁ vayaṁ ca sūrayaḥ | aśyāma vājagandhyaṁ sanema vājapastyam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तम् । स॒खा॒यः॒ । पु॒रः॒ऽरुच॑म् । यू॒यम् । व॒यम् । च॒ । सू॒रयः॑ । अ॒श्याम॑ । वाज॑ऽगन्ध्यम् । स॒नेम॑ । वाज॑ऽपस्त्यम् ॥ ९.९८.१२

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:98» मन्त्र:12 | अष्टक:7» अध्याय:4» वर्ग:24» मन्त्र:6 | मण्डल:9» अनुवाक:6» मन्त्र:12


0 बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (तम्) उस पूर्वोक्त परमात्मा को जो (वाजगन्ध्यम्) बलस्वरूप है और (पुरोरुचम्) सदा से प्रकाशस्वरूप है, उसको (वयम्) हम (च) और (यूयम्) आप (सूरयः) विद्वान् (सखायः) जो मैत्रीभाव से वर्ताव करते हैं, (वाजपः) जो उसकी अनन्त शक्तियों को अनुभव करना चाहते हैं, वे सब (सनेम) उसकी उपासना करें (अश्याम) और उसके आनन्द को भोगें ॥१२॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा ही के आनन्द भोगने का प्रयत्न करना चाहिये, क्योंकि सच्चा आनन्द वही है ॥१२॥ यह अट्ठानवाँ सूक्त और चौबीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

वाजगन्ध्यम्-वाजपस्त्यम्

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सखायः) = मित्रो ! (यूयं वयं च) = तुम और हम (सूरयः) = ज्ञानी स्तोता बनते हुए (तम्) = उस (पुरोरुचं) = सब से अग्रभाग में दीप्त हो रहे (वाजगन्ध्यम्) = [गन्ध-सम्बन्ध] शक्ति के सम्बन्ध में उत्तम इस सोम को (अश्याम) = अपने अन्दर व्याप्त करें। शरीर में ही व्याप्त हुआ हुआ सोम दीप्त का कारण बनता है (वाजपस्त्यम्) = शक्ति के गृहभूत इस सोम को हम सब सनेम प्राप्त करें। सोम ही सब अंग-प्रत्यंगों को सबल बनाता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभुस्तवन व स्वाध्याय को अपनाकर हम सोम का रक्षण करें। यह सोम ही शक्ति का घर है । यही हमारे सब अंगों को सबल बनाता है । 'प्रभुस्तवन ही सोमरक्षण का मुख्य साधन है' इस तत्त्व का इष्टा 'काश्यप' है । यह स्तोता तो बनता ही है 'रेभ'। साथ ही यह औरों को भी प्रभुस्तवन की प्रेरणा देता है 'सून' । ये रेभ और सूनु दोनों ही काश्यप अगले सूक्त के ऋषि हैं-
0 बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (तम्) तम्परमात्मानं यः (वाजगन्ध्यं) बलस्वरूपः (पुरोरुचं) शश्वत्प्रकाशस्वरूपं तं (वयं, यूयम्, च) यूयं वयञ्च सर्वेऽपि (सूरयः) विद्वांसः (सखायः) मित्रभाववन्तः (वाजपः) तदनन्तशक्त्यनुभवेच्छवः (सनेम) तमुपासीरन् (अश्याम) तदानन्दं च भुञ्ज्युः ॥१२॥ इत्यष्टनवतितमं सूक्तञ्चतुर्विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Come friends, all of us and all the wise and brave, let us reach that Soma spirit of light and grace and achieve the spirit as a prize and treasure home of peace, fragrance and life’s victory.