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अ॒भी नो॑ अर्ष दि॒व्या वसू॑न्य॒भि विश्वा॒ पार्थि॑वा पू॒यमा॑नः । अ॒भि येन॒ द्रवि॑णम॒श्नवा॑मा॒भ्या॑र्षे॒यं ज॑मदग्नि॒वन्न॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

abhī no arṣa divyā vasūny abhi viśvā pārthivā pūyamānaḥ | abhi yena draviṇam aśnavāmābhy ārṣeyaṁ jamadagnivan naḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒भि । नः॒ । अ॒र्ष॒ । दि॒व्या । वसू॑नि । अ॒भि । विश्वा॑ । पार्थि॑वा । पू॒यमा॑नः । अ॒भि । येन॑ । द्रवि॑णम् । अ॒श्नवा॑म । अ॒भि । आ॒र्षे॒यम् । ज॒म॒द॒ग्नि॒ऽवत् । नः॒ ॥ ९.९७.५१

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:97» मन्त्र:51 | अष्टक:7» अध्याय:4» वर्ग:21» मन्त्र:1 | मण्डल:9» अनुवाक:6» मन्त्र:51


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे सर्वोत्पादक परमात्मन् ! (पूयमानः) शुद्धस्वरूप आप (दिव्या, वसूनि) दिव्यधन (नः) हमें (अभ्यर्ष) दें, (विश्वा, पार्थिवा) सम्पूर्ण पृथिवीसम्बन्धी धन आप (नः) हमें दें (जमदग्निवत्) चक्षु की दिव्य दृष्टि के समान (येन) जिस सामर्थ्य से हम (आर्षेयम्) ऋषियों के योग्य (द्रविणम्) धन को (अश्नवाम) भोग सकें, वह सामर्थ्य आप (नः) हमको दें ॥५१॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में परमात्मा से भोक्तृत्वशक्ति की प्रार्थना की गई है। तात्पर्य्य यह है कि जो पुरुष स्वामी होकर ऐश्वर्य्यों को भोग सकता है, वही ऐश्वर्य्यसम्पन्न कहलाता है, अन्य नहीं। इसी अभिप्राय से उपनिषदों में अन्नाद अर्थात् ऐश्वर्य्यों के भोक्ता होने की प्रार्थना की गई है ॥५१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

दिव्य व पार्थिव वसुओं का प्रापण

पदार्थान्वयभाषाः - हे सोम ! तू (दिव्या वसूनि) = दिव्य वसुओं को, मस्तिष्क रूप द्युलोक के ज्ञानधन को (नः अभि अर्ष) = हमारे लिये प्राप्त करा । (पूयमानः) = पवित्र किया जाता हुआ तू (विश्वा पार्थिवा) = सब शरीर रूप पृथिवी सम्बन्धी वसुओं को, शक्ति को (अभि) [अर्ष] = प्राप्त करा । मस्तिष्क में तू हमें ज्योतिर्मय, तथा शरीर में हमें शक्ति सम्पन्न बना । हमें तू उस दिव्य व पार्थिव वसु को, ज्ञान व शक्ति को प्राप्त करा येन जिससे कि हम (द्रविणम्) = धन को (अभि अश्नवाम) = प्राप्त करें। हे सोम ! (नः) = हमें (जमदग्निवत्) = जमदग्नि की तरह, जिसकी जाठराग्नि भोजन का ठीक पाचन कर पाती है, उस पुरुष की तरह (आर्षेयम् अभि) = [ऋषौ भवं] वेद में उपदिष्ट ज्ञान की (अभि) = ओर ले चल ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें शरीर के तेज व मस्तिष्क की ज्योति को दे । इनके द्वारा हम जीवनयात्रा के लिये आवश्यक धन को कमानेवाले हों। हमारी जाठराग्नि ठीक हो और हम ज्ञान की ओर झुकाव वाले हों ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे सर्वोत्पादक परमात्मन् ! (पूयमानः) शुद्धस्वरूपो भवान् (दिव्या, वसूनि) दिव्यधनानि (नः, अभि, अर्ष) अस्मभ्यं ददातु (विश्वा, पार्थिवा) सर्वान्पार्थिवपदार्थान् (नः) अस्मभ्यं (अभि) ददातु (जमदग्निवत्) चक्षुषः दिव्यदृष्टिरिव (येन) येन सामर्थ्येन (आर्षेयं) ऋषियोग्यं (द्रविणं) धनं (अश्नवाम) भुञ्जीमहि तत्सामर्थ्यं (नः) अस्मभ्यं प्रयच्छतु ॥५१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O Soma, pure and purifying spirit and power of divinity, bring us celestial honour and excellence and the peaceful shelter of divinity, all materials of the world’s wealth and power by which, like people of divine vision, we may attain to the universal wealth and virtue of the universe worthy of the sages of divine imagination.