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इन्दु॑र्दे॒वाना॒मुप॑ स॒ख्यमा॒यन्त्स॒हस्र॑धारः पवते॒ मदा॑य । नृभि॒: स्तवा॑नो॒ अनु॒ धाम॒ पूर्व॒मग॒न्निन्द्रं॑ मह॒ते सौभ॑गाय ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indur devānām upa sakhyam āyan sahasradhāraḥ pavate madāya | nṛbhiḥ stavāno anu dhāma pūrvam agann indram mahate saubhagāya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्दुः॑ । दे॒वाना॑म् । उप॑ । स॒ख्यम् । आ॒यन् । स॒हस्र॑ऽधारः । प॒व॒ते॒ । मदा॑य । नृऽभिः॑ । स्तवा॑नः । अनु॑ । धाम॑ । पूर्व॑म् । अग॑न् । इन्द्र॑म् । म॒ह॒ते । सौभ॑गाय ॥ ९.९७.५

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:97» मन्त्र:5 | अष्टक:7» अध्याय:4» वर्ग:11» मन्त्र:5 | मण्डल:9» अनुवाक:6» मन्त्र:5


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्दुः) कर्म्मयोगी विद्वान् (देवानाम्) विद्वानों के (उपसख्यम्) मैत्रीभाव को (आयन्) प्राप्त होता हुआ (मदाय) आनन्द के लिये (पवते) सबको पवित्र करता है। वह कर्म्मयोगी (सहस्रधारः) अनन्त प्रकार की शक्तियें रखता हुआ (महते सौभागाय) बड़े सौभाग्य के लिये (इन्द्रं) ऐश्वर्य्य को (अगन्) प्राप्त होता हुआ (पूर्वं, धाम) सर्वोपरि धाम बनाता है ॥५॥
भावार्थभाषाः - जिन पुरुषों के मध्य में एक भी कर्मयोगी होता है, वह सबको उद्योगी बनाकर पवित्र बना देता है ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

पूर्वंधाम अनु अगन्

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्दुः) = हमें शक्तिशाली बनानेवाला यह सोम (देवानाम्) = देववृत्ति के पुरुषों के (सख्यम्) = मित्रता को उपायन=प्राप्त होता हुआ, अर्थात् देववृत्ति के पुरुषों से अपने अन्दर सुरक्षित किया जाता हुआ (सहस्त्रधारः) = हजारों प्रकार से धारण करनेवाला होता है और (मदाय) = आनन्द के लिये (पवते) = प्राप्त होता है। सुरक्षित सोम जीवन में उल्लास का कारण बनता है । (नृभिः) = उन्नतिपथ पर चलनेवाले पुरुषों से (स्तवानः) = स्तुति किया जाता हुआ यह सोम (पूर्वं धाम) = अपने प्राचीन गृह, अर्थात् ब्रह्मलोक की (अनु अगन्) = ओर जानेवाला होता है। जब हम सोम गुणों का शंसन करते हुए सोम का रक्षण करते हैं, तो यह सोम हमें ब्रह्म को प्राप्त करानेवाला होता है । यह सोम (इन्द्रम्) = इस जितेन्द्रिय पुरुष को (महते सौभगाय) = महान् सौभाग्य के लिये प्राप्त होता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- जब हम देववृत्ति को अपना कर सोम का रक्षण करते हैं, तो यह हमें उल्लासमय जीवन वाला बनाता है और अन्ततः प्रभु की प्राप्ति करानेवाला होता है। यह हमारे महान् सौभाग्य का कारण बनता है ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्दुः) कर्मयोगी (देवानां) विदुषां (उपसख्यं) मैत्रीभावं (आयन्) प्राप्नुवन् (मदाय) आनन्दाय (पवते) सर्वान् पावयति, स कर्मयोगी (सहस्रधारः) अनन्तशक्तिधारकः (महते, सौभगाय) महासौभाग्याय (इन्द्रं) ऐश्वर्यं (अगन्) प्राप्नुवन् (नृभिः, स्तवानः) जनैः स्तूयमानः (पूर्वं, धाम) सर्वोच्चं धाम निर्माति ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indu, Soma spirit of light and life, coming close to friendship of the divinities, purifies and flows in a thousand streams for the joy of humanity. Adored by leading lights, it rises to the top of honour and glory in keeping with its position and reaches Indra, the ruling soul, for the great good fortune of society.