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अश्वो॒ नो क्र॑दो॒ वृष॑भिर्युजा॒नः सिं॒हो न भी॒मो मन॑सो॒ जवी॑यान् । अ॒र्वा॒चीनै॑: प॒थिभि॒र्ये रजि॑ष्ठा॒ आ प॑वस्व सौमन॒सं न॑ इन्दो ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

aśvo no krado vṛṣabhir yujānaḥ siṁho na bhīmo manaso javīyān | arvācīnaiḥ pathibhir ye rajiṣṭhā ā pavasva saumanasaṁ na indo ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अश्वः॑ । न । क्र॒दः॒ । वृष॑ऽभिः । यु॒जा॒नः । सिं॒हः । न । भी॒मः । मन॑सः । जवी॑यान् । अ॒र्वा॒चीनैः॑ । प॒थिऽभिः॑ । ये । रजि॑ष्ठाः । आ । प॒व॒स्व॒ । सौ॒म॒न॒सम् । नः॒ । इ॒न्दो॒ इति॑ ॥ ९.९७.२८

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:97» मन्त्र:28 | अष्टक:7» अध्याय:4» वर्ग:16» मन्त्र:3 | मण्डल:9» अनुवाक:6» मन्त्र:28


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! (अर्वाचीनैः) आपके अभिमुख करनेवाले (पथिभिः) मार्गों से (ये) जो मार्ग (रजिष्ठाः) सरल हैं, उनके द्वारा (नः) हमको (सौमनसम्) संस्कृत मन देकर पवित्र करें। आप (मनसो जवीयान्) मन के वेग से भी शीघ्रगामी हैं, (अर्थात्) मन के पहुँचने से पहिले वहाँ विद्यमान हैं। (सिंहः) सिंह के (न) समान भयप्रद हैं, (अश्वः) विद्युत् के (न) समान (क्रदः) शब्दायमान हैं (वृषभिः) योगियों से (युजानः) जुड़े हुए हैं ॥२८॥
भावार्थभाषाः - जो लोग परमात्मा से मन की शुद्धि की प्रार्थना करते हैं, परमात्मा उनके मन को शुद्ध करके उन्हें शुभ बुद्धि प्रदान करता है ॥२८॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सिंहो न भीमः

पदार्थान्वयभाषाः - (वृषभिः) = अपने अन्दर सोम का सेचन करनेवाले पुरुषों से [वृषु सेचने] (युजान:) = शरीर के साथ जोड़ा जाता हुआ तू (अश्वः न क्रदः) = घोड़े के समान उस प्रभु का आह्वान करनेवाला होता है । अर्थात् घोड़े की तरह सदा कर्मों में व्याप्त होता हुआ [अशू व्याप्तौ ] तू प्रभु को पुकारता है, अकर्मण्य रहकर प्रभु के नाम की रट नहीं लगाता रहता । (सिंहः न भीमः) = शेर के समान तू शत्रुओं के लिये भयंकर है । (मनसः जवीयान्) = मन से भी अधिक वेगवान् है, सोम से जीवन में स्फूर्ति उत्पन्न होती है । हे (इन्दो) = सोम ! तू ये (रजिष्ठाः) = जो ऋतुतम मार्ग हैं उन (अर्वाचीनैः पथिभिः) = हमें अन्तर्मुखी वृत्ति का करनेवाले, अन्दर की ओर ले चलनेवाले मार्गों से (नः) = हमारे लिये (सौमनसम्) = उत्कृष्ट (मनः) = प्रसाद को (आपवस्व) प्राप्त करा ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोमरक्षण से मनुष्य सरल मार्गों से सब व्यवहारों को करता हुआ मनः प्रसाद को प्राप्त करता है। यह सोम उसे स्फूर्ति देता है, उसके शत्रुओं का विनाश करता है ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप ! (अर्वाचीनैः) भवदभिमुखं कुर्वाणैः (पथिभिः) मार्गैः (ये, रजिष्ठाः) ये सरलमार्गाः तद्द्वारा (नः) अस्मान् (सौमनसं) संस्कृतमनो दत्त्वा (पवस्व) पुनातु (मनसः, जवीयान्) भवान् मनोवेगादप्यधिकवेगवान् (सिंहः, न) सिंह इव भयप्रदः (अश्वः, न) विद्युदिव (क्रदः) शब्दवानस्ति (वृषभिः) योगिभिः (युजानः) संयुक्तः ॥२८॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Roaring as thunder and lightning, awful as a lion, faster than mind, enjoining and inspiring the generous and the brave, O lord self-refulgent and gracious, come by the latest modem paths which are simple, natural and true, and purify, inspire and energise the noble power and virtue of our mind and soul.