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ए॒वा न॑ इन्दो अ॒भि दे॒ववी॑तिं॒ परि॑ स्रव॒ नभो॒ अर्ण॑श्च॒मूषु॑ । सोमो॑ अ॒स्मभ्यं॒ काम्यं॑ बृ॒हन्तं॑ र॒यिं द॑दातु वी॒रव॑न्तमु॒ग्रम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

evā na indo abhi devavītim pari srava nabho arṇaś camūṣu | somo asmabhyaṁ kāmyam bṛhantaṁ rayiṁ dadātu vīravantam ugram ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए॒व । नः॒ । इ॒न्दो॒ । अ॒भि । दे॒वऽवी॑तिम् । परि॑ । स्र॒व॒ । नभः॑ । अर्णः॑ । च॒मूषु॑ । सोमः॑ । अ॒स्मभ्य॑म् । काम्य॑म् । बृ॒हन्त॑म् । र॒यिम् । द॒दा॒तु॒ वी॒रव॑न्तम् उ॒ग्रम् ॥ ९.९७.२१

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:97» मन्त्र:21 | अष्टक:7» अध्याय:4» वर्ग:15» मन्त्र:1 | मण्डल:9» अनुवाक:6» मन्त्र:21


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! (नः) हमारे (देववीतिम्, अभि) यज्ञ के प्रति (परिस्रव) ज्ञान की वृष्टि करें और (चमूषु) हमारे क्षेत्ररूप यज्ञों में (नभः) नभोमण्डल से (अर्णः) जल की वृष्टि करें, (सोमः) सोमगुणसम्पन्न आप (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (काम्यम्) कमनीय (बृहन्तम्) बड़े (रयिम्) धन को (ददातु) दें और वह धन (उग्रं वीरवन्तम्) उग्र वीरों की सम्पत्तिवाला हो ॥२१॥
भावार्थभाषाः - जो लोग अनन्य भक्ति से ईश्वर की उपासना करते हैं, ईश्वर उनको अनन्त प्रकार के ऐश्वर्य्य प्रदान करता है ॥२१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

दिव्य जीवन व उत्कृष्ट ऐश्वर्य

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्दो) = सोम! (एवा) = इस प्रकार (नः) = हमारी (देववीतिम्) = दिव्यगुणों की प्राप्ति का (अभि) = लक्ष्य करके (चमूषु) = इन शरीर रूप पात्रों में (नभः अर्णः) = द्युलोक के जल को, मस्तिष्क रूप द्युलोक के ज्ञानजल को (परिस्रव) = प्राप्त करा । सोम ही सुरक्षित होकर ज्ञानाग्नि का ईंधन बनता है और ज्ञान को प्राप्त कराके हमारे जीवन में दिव्यगुणों की उत्पत्ति का कारण बनता है । (सोमः) = शरीर में सुरक्षित हुआ हुआ सोम (अस्मभ्यम्) = हमारे लिये (रयिं ददातु) = उस ऐश्वर्य को प्राप्त कराये जो (काम्यम्) = वस्तुत: चाहने योग्य है, (बृहन्तम्) = वृद्धि का कारण बनता है, (वीरवन्तम्) = वीर सन्तानों वाला व (उग्रम्) = तेजस्वी है । सोमी पुरुष का धन उसके जीवन में अवाञ्छनीय प्रभावों को उत्पन्न नहीं करता, यह उसके सन्तानों को भी विलास में फँसानेवाला नहीं होता। यह सोमी पुरुष स्वयं भी धन का स्वामी, न कि दास, होता हुआ उग्र व तेजस्वी बनता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - शरीर में सुरक्षित सोम ज्ञान को प्राप्त कराके हमें दिव्य जीवन वाला बनाता है तथा उत्कृष्ट ऐश्वर्य को यह प्राप्त करानेवाला होता है।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्दो) हे प्रकाशमय परमात्मन् ! (नः) अस्माकं (देववीतिं, अभि) यज्ञं प्रति (परि स्रव) ज्ञानवृष्टिं करोतु (चमूषु) मत्क्षेत्ररूपयज्ञे (नभः) आकाशात् (अर्णः) जलवृष्टिं करोतु (सोमः) सौम्यो भवान् (अस्मभ्यं) अम्सदर्थं (काम्यं) कमनीयं (बृहन्तं) महत् (रयिं) धनं (ददातु) प्रयच्छतु (उग्रं, वीरवन्तं) तच्च पुष्टवीरवदपि स्यात् ॥२१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Thus O self-refulgent Indu, spirit of divine peace, power, beauty and prosperity, let there be a shower of light and knowledge on us in yajna. Let showers of rain fill our tanks, lakes and rivers and fructify our fields and gardens. May Soma give us wealth, honour and excellence of the highest order of our choice with mighty brave heroes.