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र॒साय्य॒: पय॑सा॒ पिन्व॑मान ई॒रय॑न्नेषि॒ मधु॑मन्तमं॒शुम् । पव॑मानः संत॒निमे॑षि कृ॒ण्वन्निन्द्रा॑य सोम परिषि॒च्यमा॑नः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

rasāyyaḥ payasā pinvamāna īrayann eṣi madhumantam aṁśum | pavamānaḥ saṁtanim eṣi kṛṇvann indrāya soma pariṣicyamānaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

र॒साय्यः॑ । पय॑सा । पिन्व॑मानः । ई॒रय॑न् । ए॒षि॒ । मधु॑ऽमन्तम् । अं॒शुम् । पव॑मानः । स॒म्ऽत॒निम् । ए॒षि॒ । कृ॒ण्वन् । इन्द्रा॑य । सो॒म॒ । प॒रि॒ऽसि॒च्यमा॑नः ॥ ९.९७.१४

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:97» मन्त्र:14 | अष्टक:7» अध्याय:4» वर्ग:13» मन्त्र:4 | मण्डल:9» अनुवाक:6» मन्त्र:14


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे परमात्मन् ! (परिषिच्यमानः) उपास्यमान आप (सन्तनिम्) अभ्युदय का (कृण्वन्) विस्तार करते हुए (इन्द्राय) कर्मयोगी के लिये (एषि) प्राप्त होते हैं। (पवमानः) सबको पवित्र करनेवाले आप (पयसा, रसाय्यः) आनन्दस्वरूप हैं। सब प्रकार के अभ्युदयों से (पिन्वानः) वृद्धि को प्राप्त आप (मधुमन्तमंशुम्) माधुर्य्ययुक्त अष्ट सिष्टियों को (ईरयन्) प्रेरणा करते हुए (एषि) प्राप्त होते हैं ॥१४॥
भावार्थभाषाः - अभ्युदय और निःश्रेयस का प्रदाता एकमात्र परमात्मा ही है, इसलिये मनुष्य को चाहिये कि उसी परमात्मा की दृढ़ भक्ति से सब प्रकार के ऐश्वर्य्य और मुक्ति का लाभ करे ॥१४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

रसाय्यः पवमानः

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सोम) = वीर्यशक्ते ! (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिये (परिषिच्यमानः) = शरीर के अंग-प्रत्यंग में सिक्त होता हुआ तू (रसाय्यः) = जीवन को रसमय बनाता है । (पयसा) = आप्यायन शक्ति से, वर्धन शक्ति से (पिन्वमानः) = शरीर को सिक्त करता हुआ (मधुमन्तम्) = माधुर्ययुक्त (अंशुम्) = प्रकाश की किरण को (ईरयन्) = प्रेरित करता हुआ तू (एषि) = प्राप्त होता है । सोम शरीर में सुरक्षित होने पर जीवन को रसमय-वृद्धशक्ति वाला व माधुर्ययुक्त प्रकाश वाला बनाता है। हे सोम ! (पवमानः) = पवित्र करता हुआ तू (सन्तनिं कृण्वन्) = सब शक्तियों के विस्तार को करता हुआ (एषि) = प्राप्त होता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोम जीवन को रसमय, शक्ति सम्पन्न, प्रकाशमय व मधुर बनाता है।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे परमात्मन् ! (परिषिच्यमानः) उपास्यमानो भवान् (सन्तनिं) अभ्युदयं (कृण्वन्) विस्तृण्वन् (इन्द्राय, एषि) कर्म्मयोगिनं प्राप्नोति (पवमानः) सर्वस्य पावयिता भवान् (पयसा, रसाय्यः) रसेन परिपूर्णः (पिन्वानः) विविधाभ्युदयेन वृद्धिं प्राप्तो भवान् (मधुमन्तं, अंशुं) माधुर्ययुक्ताष्टसिद्धीः (ईरयन्) प्रेरयन् (एषि) प्राप्नोति ॥१४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O Soma, stream of divine joy exalted with songs of praise, inspiring honey sweets of vital growth and enlightenment, you go forward, pure and purifying, and release continuous showers of ecstasy for the soul for its grandeur and glory when you are honoured and adored by the celebrants.