वांछित मन्त्र चुनें

प्रावी॑विपद्वा॒च ऊ॒र्मिं न सिन्धु॒र्गिर॒: सोम॒: पव॑मानो मनी॒षाः । अ॒न्तः पश्य॑न्वृ॒जने॒माव॑रा॒ण्या ति॑ष्ठति वृष॒भो गोषु॑ जा॒नन् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

prāvīvipad vāca ūrmiṁ na sindhur giraḥ somaḥ pavamāno manīṣāḥ | antaḥ paśyan vṛjanemāvarāṇy ā tiṣṭhati vṛṣabho goṣu jānan ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र । अ॒वी॒वि॒प॒त् । वा॒चः । ऊ॒र्मिम् । न । सिन्धुः॑ । गिरः॑ । सोमः॑ । पव॑मानः । म॒नी॒षाः । अ॒न्तरिति॑ । पश्य॑न् । वृ॒जना॑ । इ॒मा । अव॑राणि । आ । ति॒ष्ठ॒ति॒ । वृ॒ष॒भः । गोषु॑ । जा॒नन् ॥ ९.९६.७

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:96» मन्त्र:7 | अष्टक:7» अध्याय:4» वर्ग:7» मन्त्र:2 | मण्डल:9» अनुवाक:5» मन्त्र:7


0 बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - वह परमात्मा (वाज ऊर्मिम्) वाणी की लहरों को (सिन्धुर्न) जैसे कि सिन्धु (प्रावीविपत्) कम्पाता है, इसी प्रकार से कम्पाता है। (सोमः) वह सोमरूप परमात्मा (पवमानः) सबको पवित्र करता है। (मनीषाः) मन का भी प्रेरक है। (अन्तः पश्यन्) सबका अन्तर्यामी होकर (वृजना) इस संसाररूपी यज्ञ में (इमा अवराणि आतिष्ठति) इन प्रकृति के कार्य्यों को आश्रयण करता है। जिस प्रकार (वृषभः) सब बल को देने वाला जीवात्मा (जानन्) चेतनरूप से अधिष्ठाता बनकर (गोषु) इन्द्रियों में विराजमान होता है ॥७॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा सबका अन्तर्यामी है। वह सर्वान्तर्यामी होकर सर्वप्रेरक है, “यः पृथिव्यां तिष्ठन् पृथिव्यामन्तरो यं पृथिवी न वेद यस्य पृथिवी शरीरं यः पृथिवीमन्तरो यमयत्येष त आत्मान्तर्याम्यमृतः” इत्यादि वाक्य उक्त वेद के आधार पर निर्माण किये गये हैं ॥७॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

अन्तः पश्यन्

पदार्थान्वयभाषाः - (पवमानः) = जीवन को पवित्र करता हुआ (सोमः) = सोम (वाचः) = ज्ञान की वाणियों को और (मनीषाः) = बुद्धियों को (प्रावीविषत्) = इस प्रकार प्रेरित करता है, (न) = जैसे कि (सिन्धुः) = समुद्र (ऊर्मिम्) = लहरों को प्रेरित करता है । सोमरक्षण से हमारे जीवन में बुद्धि व ज्ञान की वाणियों का विकास होता है । यह (वृषभः) = शक्तिशाली सोम (गोषु जानन्) = ज्ञान की वाणियों में तत्त्वज्ञान वाला होता हुआ, (अन्तः पश्यन्) = विषय व्यावृत्त होकर अन्तर्मुखी वृत्ति वाला होता हुआ (इमा) = इन (अवराणि) = [न निवारवितुं शक्यानि] (अधर्षणीय वृजना) = बलों का (आतिष्ठति) = अधिष्ठाता होता है । सोम से ज्ञान बढ़ता है, वृत्ति बहिर्मुखी न होकर अन्तर्मुखी होती है। शत्रुओं से अधर्षणीय शक्ति प्राप्त होती है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोम ज्ञान की वाणियों व बुद्धियों को हमारे में प्रेरित करता है। अधर्मणीय बलों को प्राप्त कराता है। हमें अन्तर्मुखी वृत्ति वाला बनाता है।
0 बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - स परमात्मा (वाचः, ऊर्मिं) वाण्या तरङ्गान् (सिन्धुः, न) यथा सिन्धुः स्ववीचीः तथा (प्र अवीविपत्) कम्पयति (सोमः) स एव (पवमानः) सर्वपावकः (मनीषाः) मनसोऽपि प्रेरकः (अन्तः, पश्यन्) सर्वान्तर्यामी भवान् (वृजना) अस्मिन् संसाररूपयज्ञे (इमा, अवराणि, आ, तिष्ठति) इमानि प्रकृतिकार्याणि आश्रयते यथा (वृषभः) सर्वबलप्रदः जीवात्मा (जानन्) चेतनरूपेण अधिष्ठातृत्वं सम्पाद्य (गोषु) इन्द्रियेषु विराजते ॥७॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Soma stirs and inspires the flow of thought into speech as the sea stirs and rolls the waves of the flood. Pure and purifying, it inspires imagination, poetry and adoration. Pervading all within and watching, it abides in the closest intimacies of all yajna within and without and, potent as it is, knowing every thing, it energises all organs of thought and sense.