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ए॒ष स्य सोमो॑ म॒तिभि॑: पुना॒नोऽत्यो॒ न वा॒जी तर॒तीदरा॑तीः । पयो॒ न दु॒ग्धमदि॑तेरिषि॒रमु॒र्वि॑व गा॒तुः सु॒यमो॒ न वोळ्हा॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

eṣa sya somo matibhiḥ punāno tyo na vājī taratīd arātīḥ | payo na dugdham aditer iṣiram urv iva gātuḥ suyamo na voḻhā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए॒षः । स्यः । सोमः॑ । म॒तिऽभिः॑ । पु॒ना॒नः । अत्यः॑ । न । वा॒जी । तर॑ति । इत् । अरा॑तीः । पयः॑ । न । दु॒ग्धम् । अदि॑तेः । इ॒षि॒रम् । उ॒रुऽइ॑व । गा॒तुः । सु॒ऽयमः॑ । न । वोळ्हा॑ ॥ ९.९६.१५

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:96» मन्त्र:15 | अष्टक:7» अध्याय:4» वर्ग:8» मन्त्र:5 | मण्डल:9» अनुवाक:5» मन्त्र:15


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (एषः, स्यः, सोमः) यह उक्त परमात्मा (मतिभिः) ज्ञान-विज्ञानों द्वारा (पुनानः) पवित्र करता हुआ (अत्यो न) विद्युत् के समान (वाजी) बलरूप परमात्मा (अरातीः) शत्रुओं को (इत्) अवश्य (तरति) उल्लङ्घन करता है, वह परमात्मा (अदितेः) गौ के (दुग्धम्) दुहे हुए (पयः) दुग्ध के (न) समान (इषिरम्) सर्वप्रिय है (उरु) विस्तीर्ण (गातुरिव) मार्ग के समान सबका आश्रयणीय है तथा (वोळ्हा) सम्यक् नियन्ता के (न) समान है ॥१५॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा के सदृश इस संसार में कोई नियन्ता नहीं, उसी के नियम में सब लोक-लोकान्तर भ्रमण करते हैं ॥१५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'शत्रुओं को जीतनेवाला' सोम

पदार्थान्वयभाषाः - (एषः) = यह (स्य) = प्रसिद्ध (सोमः) = सोम [वीर्य] (मतिभिः) = मननपूर्वक किये गये प्रभु के स्तोत्रों से (पुनानः) = पवित्र किया जाता हुआ, (अत्यः वाजी न) = शक्तिशाली घोड़े के समान (अरातीः तरति इत्) = शत्रुओं को तैर ही जाता है। शरीर में सुरक्षित सोम रोगकृमि व वासनारूप शत्रुओं को विनष्ट करनेवाला होता है। यह सोम क्रिया है ? यह तो (अदितेः) = इस अदीना देवमाता वेदवाणीरूप गौ के (दुग्धम्) = दोहे हुए (पयः न) = दूध के समान है । (इषिरम्) = यह हमें कर्मों की प्रेरणा देनेवाला है। यह सोम (उरु गातुः इव) = विशाल मार्ग के समान सबसे समादरणीय है । (सुयमः) = सुनियन्तित (वोढा न) = अश्व के समान यह हमें लक्ष्यस्थान पर पहुँचानेवाला है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुरक्षित सोम शक्तिशाली घोड़े के समान शत्रु विजय का साधन है। ज्ञानदुग्ध को प्राप्त करानेवाला, हृदय को विशाल मार्ग की ओर प्रेरित करनेवाला तथा सुनियन्त्रित अश्व के समान लक्ष्यस्थान पर पहुँचानेवाला है।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (एषः, स्यः, सोमः) असौ प्रसिद्धः परमात्मा (मतिभिः) ज्ञानविज्ञानद्वारेण (पुनानः) पावयन् (अत्यः, न) विद्युदिव (वाजी) बलवान् (अरातीः) शत्रून् (इत्, तरति) अवश्यमभिभवति स च (अदितेः) गोः (दुग्धं, पयः, न) दोहनिष्पन्नदुग्धमिव (इषिरं) सर्वप्रियोऽस्ति (उरु, गातुः, इव) विस्तीर्णमार्ग इव सर्वाश्रयणीयोऽस्ति। (वोळ्हा, न) तथा च सम्यङ् नियन्तेवास्ति ॥१५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - This, the lord Soma, celebrated and exalted by devotees and wise sages, overcomes contradictions and negativities like a victor war horse trampling the enemies. It is delicious like the milk of the inviolable cow, sure guide like a wide path on earth, and unfailing carrier and saviour like a trained courser for the destination.