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त्वया॒ हि न॑: पि॒तर॑: सोम॒ पूर्वे॒ कर्मा॑णि च॒क्रुः प॑वमान॒ धीरा॑: । व॒न्वन्नवा॑तः परि॒धीँरपो॑र्णु वी॒रेभि॒रश्वै॑र्म॒घवा॑ भवा नः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvayā hi naḥ pitaraḥ soma pūrve karmāṇi cakruḥ pavamāna dhīrāḥ | vanvann avātaḥ paridhīm̐r aporṇu vīrebhir aśvair maghavā bhavā naḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वया॑ । हि । नः॒ । पि॒तरः॑ । सो॒म॒ । पूर्वे॑ । कर्मा॑णि । च॒क्रुः । प॒व॒मा॒न॒ । धीराः॑ । व॒न्वन् । अवा॑तः । प॒रि॒ऽधीन् । अप॑ । ऊ॒र्णु॒ । वी॒रेऽभिः । अश्वैः॑ । म॒घऽवा॑ । भ॒व॒ । नः॒ ॥ ९.९६.११

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:96» मन्त्र:11 | अष्टक:7» अध्याय:4» वर्ग:8» मन्त्र:1 | मण्डल:9» अनुवाक:5» मन्त्र:11


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोमः) हे परमात्मन् ! (पूर्वे, पितरः) पूर्वकाल के पिता-पितामह (धीराः) जो धीर हैं (त्वया) तुम्हारी प्रेरणा से (कर्माणि, चक्रुः) कर्म्मों को करते थे। (पवमान) हे सबको पवित्र करनेवाले परमात्मन् ! (वन्वन्) आपका भजन करते हुए (अवातः) निश्चल होकर (परिधीन्) राक्षसों को (अपोर्णु) दूर करें (वीरेभिः) वीरपुरुषों से (अश्वैः) और जो शक्तिसम्पन्न हैं, उनसे (नः) हमको (मघवा, भव) ऐश्वर्य्यसम्पन्न करें ॥११॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा की आज्ञापालन करने से देश में ज्ञानी तथा विज्ञानी पुरुषों की उत्पत्ति होती है और देश ऐश्वर्य्यसम्पन्न होता है, इस प्रकार राक्षसभाव निवृत्त होकर सभ्यता के भाव का प्रचार होता है ॥११॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

परिधीन् अपेर्ण

पदार्थान्वयभाषाः - हे (पवमान) = पवित्रता को करनेवाले (सोम) = वीर्यशक्ते ! (नः) = हमारे में से (पूर्वे) = अपना पालन व पूरण करनेवाले (पितरः) = वासनाओं से अपना रक्षण करनेवाले (धीराः) = ज्ञानी लोग (त्वया हि) = तेरे द्वारा ही तेरी ही शक्ति से (कर्माणि चक्रुः) = लोक रक्षणात्मक कार्यों को कर पाते हैं। सोमरक्षण ही हमें उत्कृष्ट कार्यों को करने की क्षमता प्रदान करता है। (वन्वन्) = शत्रुओं को हिंसित करता हुआ, (अवातः) = शत्रुओं से अनाकान्त तू (परिधी:) = चारों ओर से घेर लेनेवाले इन राक्षसी भावों को (अपोर्णु) = आच्छादित कर, हमारे से दूर कर । (वीरेभिः अश्वैः) = वीरतापूर्ण इन इन्द्रियाश्वों से (नः) = हमारे लिये (मघवा भवः) = सब ऐश्वर्यों को प्राप्त करानेवाला हो। सोमरक्षण से ही सबल बनकर कर्मेन्द्रियाँ यज्ञादि उत्तम कर्म करती हैं, तो ज्ञानेन्द्रियाँ ज्ञानैश्वर्य को प्राप्त करनेवाली होती हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सब उत्तम कर्म सोमरक्षण से ही सम्भव होते हैं । यह सोम राक्षसी भावों को दूर करके हमें वास्तविक ऐश्वर्य प्राप्त कराये ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे परमात्मन् ! (पूर्वे, पितरः) पूर्वकालिकाः पितृपितामहादयः (धीराः) ये धीरास्ते (त्वया) त्वत्प्रेरणयैव (कर्माणि, चक्रुः) कर्माणि अकार्षुः (पवमान) हे सर्वपावक ! (वन्वन्) भवन्तं सेवमानः (अवातः) निश्चलः सन् (परिधीन्) राक्षसान् (अप, ऊर्णु) अपसारयाणि (वीरेभिः) वीरपुरुषैः (अश्वैः) शक्तिसम्पन्नैश्च अस्मान् (मघवा, भव) ऐश्वर्यसम्पन्नं कुर्याः ॥११॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O Soma, pure and purifying spirit of the world, it is only by your grace that our forefathers of yore all time performed their acts of Dharma in life. Unhurt, unmoved and unchallenged, pray open up all inhibiting limitations and raise us to honour, excellence and glory with brave heroes and dynamic forces of progress and achievement.