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इष्य॒न्वाच॑मुपव॒क्तेव॒ होतु॑: पुना॒न इ॑न्दो॒ वि ष्या॑ मनी॒षाम् । इन्द्र॑श्च॒ यत्क्षय॑थ॒: सौभ॑गाय सु॒वीर्य॑स्य॒ पत॑यः स्याम ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

iṣyan vācam upavakteva hotuḥ punāna indo vi ṣyā manīṣām | indraś ca yat kṣayathaḥ saubhagāya suvīryasya patayaḥ syāma ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इष्य॑न् । वाच॑म् । उ॒प॒व॒क्ताऽइ॑व । होतुः॑ । पु॒ना॒नः । इ॒न्दो॒ इति॑ । वि । स्य॒ । म॒नी॒षाम् । इन्द्रः॑ । च॒ । यत् । क्षय॑थः । सौभ॑गाय । सु॒ऽवीर्य॑स्य । पत॑यः । स्या॒म॒ ॥ ९.९५.५

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:95» मन्त्र:5 | अष्टक:7» अध्याय:4» वर्ग:5» मन्त्र:5 | मण्डल:9» अनुवाक:5» मन्त्र:5


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! आप (मनीषाम्) बुद्धि को हमारे लिये (विष्य) प्रदान कीजिये और (वाचमिष्यन्) वाणी की इच्छा करते हुए (उपवक्तेव) वक्ता के समान (होतुः) उपासक को सदुपदेश करें (च) और (यत्) जो (इन्द्रः) कर्म्मयोगी और आप (क्षयथः) दोनों अद्वैतभाव को प्राप्त हैं, (सौभगाय) इस सौभाग्य के लिये हम आपका धन्यवाद करते हैं और आपसे प्रार्थना करते हैं कि (सुवीर्य्यस्य, पतयः, स्याम) सर्वोपरि बल के पति हों ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उक्त परमात्मा से बल की प्रार्थना की गयी है ॥५॥ यह ९५ वाँ सूक्त और पाँचवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

बुद्धि + सोभागाय + सुवीर्य

पदार्थान्वयभाषाः - (उपवक्ता इव) = उपदेष्टा की तरह (होतुः) = उस सृष्टि यज्ञ के होता प्रभु की (वाचम्) = वाणी को (इष्यन्) = उपासक के रूप में प्रेरित करता हुआ (पुनानः) = पवित्र किया जाता हुआ तू हे (इन्दो) = सोम ! (मनीषां) = बुद्धि को (विष्या) = हमारे में प्राप्त करानेवाला, प्रतिबद्ध करनेवाला हो [विमुञ्च सा०] (यत्) = जिस समय तू (च) = और (इन्द्रः) = वह सब शत्रुओं का द्रावण करनेवाला प्रभु (क्षयथः) = मेरे में निवास करते हो, तो (सौभगाय) = सौभाग्य के लिये होते हो। हम सोम व इन्द्र की कृपा से (सुवीर्यस्य) = उत्तम शक्ति के (पतयः) = स्वामी स्याम हों ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुरक्षित सोम हमारे हृदयों में प्रभु की वाणी को प्रेरित करता है, बुद्धि को देता है, सौभाग्यवर्धन करता हुआ सुवीर्य का पति बनाता है । इस सुवीर्य के द्वारा शत्रुओं को पराजित करता हुआ 'प्रतर्दन' अगले सूक्त का ऋषि है, यह 'दैवोदासि' उस प्रभु का दास [भक्त] है। यह सोम शंसन करता हुआ कहता है ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! भवान् (मनीषां) अस्मभ्यं बुद्धिं (वि, स्य) प्रयच्छतु तथा (वाचं, इष्यन्) वाणीं कामयमानः (उपवक्ता, इव) वक्ता इव तथा (होतुः) उपासकं सदैवोपदिशतु (च) तथा (यत्) यद्धि (इन्द्रः) कर्मयोगी भवांश्च (क्षयथः) उभावपि अद्वैतभावं प्राप्तौ (सौभगाय) अस्मै सौभाग्याय धन्यं मन्ये भवन्तं प्रार्थये च (सुवीर्यस्य) सर्वोपरि बलस्य (पतयः, स्याम) पतयो भवेम ॥५॥ इति पञ्चनवतितमं सूक्तं पञ्चमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indu, spirit of peace, light and life of the world, lover of songs of adoration, pure and purifying, we pray you and Indra, omnipotent ruler, like prompter of the priest, abiding both together, give us the vision and wisdom of divinity for our good so that we may be masters of that courage, endurance and fighting force which is worthy of the brave.