शक्ति+ज्ञान + प्रभु प्राप्ति
पदार्थान्वयभाषाः - (तम्) = उस (मर्मृजानम्) = अत्यन्त शुद्ध करते हुए, जीवन को पवित्र बनाते हुए, (अंशुम्) = सोम को (महिषं न) = जो अत्यन्त पूज्य के समान है, (दुहन्ति) = अपने में प्रपूरित करते हैं। इस सोम का दोहन (सानौ) = सानु के निमित्त करते हैं, जिससे यह हमें शिखर तक ले जानेवाला हो, उन्नति की चरम सीमा तक इस सोम ने ही तो हमें ले जाना है। उस सोम का अपने में प्रपूरण करते हैं, जो (उक्षणम्) = अपने में शक्ति का सेचन करनेवाला है और (गिरिष्ठाम्) = ज्ञान की वाणियों में स्थित होनेवाला है। यह सोम ही हमें शरीर में शक्ति सम्पन्न बनाता है, तो मस्तिष्क में यह हमें ज्ञानसम्पन्न करता है। इस प्रकार यह हमें उन्नति के शिखर पर ले जाता है। (वावशानं तम्) = प्रभु प्राप्ति की कामना वाले उस सोम को (मतयः) = बुद्धियाँ सचन्ते समवेत होती हैं। सोमरक्षण से प्रभु की ओर झुकाव होता है और बुद्धि की तीव्रता प्राप्त होती है । (त्रितः) = काम-क्रोध-लोभ को तैरनेवाला व्यक्ति (वरुणम्) = इस सब कष्टों का निवारण करनेवाले सोम को (समुद्रे) = उस [स+मुद्] आनन्दमय प्रभु की प्राप्ति के निमित्त (बिभर्ति) = धारण करता है । सोमरक्षण द्वारा ही हम वासनाओं को तैरकर प्रभु को प्राप्त होते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुरक्षित सोम हमारे में शक्ति का सेचन करता है, हमें ज्ञान वाणियों में प्रतिष्ठित करता है और आनन्दमय प्रभु में धारण करता है ।