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अ॒पामि॒वेदू॒र्मय॒स्तर्तु॑राणा॒: प्र म॑नी॒षा ई॑रते॒ सोम॒मच्छ॑ । न॒म॒स्यन्ती॒रुप॑ च॒ यन्ति॒ सं चा च॑ विशन्त्युश॒तीरु॒शन्त॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

apām ived ūrmayas tarturāṇāḥ pra manīṣā īrate somam accha | namasyantīr upa ca yanti saṁ cā ca viśanty uśatīr uśantam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒पाम्ऽइ॑व । इत् । ऊ॒र्मयः॑ । तर्तु॑राणाः । प्र । म॒नी॒षाः । ई॒र॒ते॒ । सोम॑म् । अच्छ॑ । न॒म॒स्यन्तीः॑ । उप॑ । च॒ । यन्ति॑ । सम् । च॒ । आ । च॒ । वि॒श॒न्ति॒ । उ॒श॒तीः । उ॒शन्त॑म् ॥ ९.९५.३

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:95» मन्त्र:3 | अष्टक:7» अध्याय:4» वर्ग:5» मन्त्र:3 | मण्डल:9» अनुवाक:5» मन्त्र:3


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (उशतीः) शोभावाली स्तुतियें (उशन्तम्) शोभावाले को (संविशान्ति) प्राप्त होती हैं, जैसे कि (तर्तुराणाः) शीघ्र करनेवाले लोगों को (मनीषा) बुद्धियें (प्रेरते) प्रेरणा करती हैं, इसी प्रकार (सोमम्) परमात्मा को (अच्छ) भली-भाँति प्राप्त होती हैं (च) और (अपामिवोर्मयः) जैसे कि जलों की लहरें जलों को सुशोभित करती हैं, इसी प्रकार परमात्मा की विभूतियें परमात्मा को सुशोभित करती हैं (च) और (नमस्यन्ति) परमात्मा की विभूतियें सत्कार करती हैं और (उपयन्ति) उसको प्राप्त होती हैं ॥३॥
भावार्थभाषाः - इसमें परमात्मा की विभूतियों का वर्णन है कि परमात्मा की विभूतियें परमात्मा के भावों को प्रतिक्षण द्योतन करती हैं, जिनसे परमात्मपरायण पुरुष परमात्मा का साक्षात्कार करते हैं ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

बुद्धि+कर्म+नमन=प्रवेश

पदार्थान्वयभाषाः - (अपां ऊर्मयः इव) = जलों की लहरों की तरह (मनीषा) = बुद्धियाँ (तर्तुराणाः) = कर्मों में (त्वरा) = से प्रेरित करती हुईं (सोमम् अच्छ) = सोम की ओर (इत्) = निश्चय से (प्र ईरते) = प्रकर्षेण गति वाली होती हैं। सोमरक्षक को वे बुद्धियाँ प्राप्त होती हैं, जो उसे यज्ञादि उत्तम कर्मों में प्रेरित करनेवाली होती हैं। (च) = और ये ही बुद्धियाँ (नमस्यन्ती:) = प्रभु नमन को करती हुई (उपयन्ति) = प्रभु के समीप प्राप्त होती हैं । (उशती:) = प्रभु प्राप्ति की कामना वाली होती हुईं ये बुद्धियाँ (उशन्तम्) = उस प्रभु प्राप्ति की कामना वाले पुरुष को (सं विशन्तिः) = सम्यक् प्राप्त होती हैं, (च) = और (आविशन्ति च) = सर्वथा प्रभु को प्राप्त कराती हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोमरक्षण से हमें वे बुद्धियाँ प्राप्त होती हैं जो हमें कर्मों में प्रेरित करती हैं और प्रभु नमन करती हुईं प्रभु में प्रवेश करानेवाली होती हैं । वस्तुतः बुद्धि पूर्वक कर्म करने से और उन कर्मों को नतमस्तक हो प्रभु अर्पण करने से ही तो प्रभु प्राप्ति होती है।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (उशतीः) शोभमानस्तुतयः (उशन्तं) शोभमानं (सं, विशन्ति) प्राप्नुवन्ति यथा (तर्तुराणाः) शीघ्रकारिणां (मनीषा) बुद्धयः (प्र, ईरते) प्रेरयन्ति एवं हि (सोमं) परमात्मानं (अच्छ) सम्यक् प्राप्नुवन्ति (च) तथा (अपां, इव, ऊर्मयः) यथा जलवीचयः जलं भूषयन्ति एवं हि परमात्मविभूतयः परमात्मानं मण्डयन्ति (च) तथा (नमस्यन्ति) ताः परमात्मविभूतयः सत्कुर्वन्ति (च) तथा (उप, यन्ति) तं लभन्ते ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Like waves of the sea pressing onward with force and speed, the songs of adoration rise and radiate with love to Soma. Expressive of ardent love, faith and reverence, they reach and join the divine presence which too is equally ardent and anxious to receive them.