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सिं॒हं न॑सन्त॒ मध्वो॑ अ॒यासं॒ हरि॑मरु॒षं दि॒वो अ॒स्य पति॑म् । शूरो॑ यु॒त्सु प्र॑थ॒मः पृ॑च्छते॒ गा अस्य॒ चक्ष॑सा॒ परि॑ पात्यु॒क्षा ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

siṁhaṁ nasanta madhvo ayāsaṁ harim aruṣaṁ divo asya patim | śūro yutsu prathamaḥ pṛcchate gā asya cakṣasā pari pāty ukṣā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सिं॒हम् । न॒स॒न्त॒ । मध्वः॑ । अ॒यास॑म् । हरि॑म् । अ॒रु॒षम् । दि॒वः । अ॒स्य । पति॑म् । शूरः॑ । यु॒त्ऽसु । प्र॒थ॒मः । पृ॒च्छ॒ते॒ । गाः । अस्य॑ । चक्ष॑सा । परि॑ । पा॒ति॒ । उ॒क्षा ॥ ९.८९.३

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:89» मन्त्र:3 | अष्टक:7» अध्याय:3» वर्ग:25» मन्त्र:3 | मण्डल:9» अनुवाक:5» मन्त्र:3


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सिंहं) जो सिंह के समान है, (मध्वः) आनन्दस्वरूप है, (अयासं) जो अनायास से ही सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय करनेवाला है (अरुषं) दीप्तिवाला (दिवः) जो द्युलोक का (पति) है, (अस्य) उस परमात्मा के ज्ञान को (युत्सु शूरः) जो ज्ञानयज्ञादिरूप युद्ध में शूरवीर (प्रथमः) जो सबसे अग्रगण्य है, वह पाता है (अस्य पृच्छते) और जो इसके ज्ञान को पूँछता है, उस जिज्ञासु के लिये (अस्य चक्षसा) इसका कथन करनेवाला (गाः) उस ज्ञान का उपदेश करता है और (उक्षा) सब कामनाओं को परिपूर्ण करनेवाला परमात्मा (परिपाति) उसकी रक्षा करता है ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो पुरुष परमात्मपरायण होते हैं, परमात्मा उनकी अपने ज्ञान के द्वारा रक्षा करता है ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'सिंह' सोम

पदार्थान्वयभाषाः - (सिंहम्) = शत्रुओं के नाशक, (मध्वः अयासम्) = माधुर्य के प्रेरक, (हरिम्) = मलों का परिहार करनेवाले, (अरुषम्) = [अ-रुष] क्रोधशून्य, (अस्य दिवः) = इस ज्ञान के (पतिम्) = रक्षक सोम को (नसन्त) = शरीर में व्याप्त करते हैं। यह सोम (युत्सु) = संग्रामों में (प्रथमः शूरः) = मुख्य वीर योद्धा हो । (गाः पृच्छते) = यह ज्ञान की वाणियों को जानना चाहता है । सोमरक्षण से बुद्धि की तीव्रता होकर वेदवाणियों के तत्त्व को हम समझने लगते हैं। (अस्य चक्षसा) = इस सोमरक्षण से उत्पन्न ज्ञान के द्वारा ही (उक्षा) = सोम का अपने अन्दर सेचन करनेवाला पुरुष परिपाति अपना सर्वतः रक्षण करता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोम हमारे जीवन को नीरोग वासनाशून्य व दीप्त बनाता है। यह सर्वमहान् योद्धा है।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सिंहं) यः सिंहतुल्यः, (मध्वः) आनन्दस्वरूपः, (अयासं) योऽनायासेनैव सृष्टेरुत्पत्तिस्थितिप्रलयकारकः, (अरुषं) दीप्तिमान् (दिवः) यो द्युलोकस्येश्वरश्चास्ति (अस्य) पूर्वोक्तस्य परमात्मनो ज्ञानं (युत्सु, शूरः) ज्ञानयज्ञादौ यो वीरः (प्रथमः) सर्वाग्रगण्यः स प्राप्नोति। (अस्य, पृच्छते) अपि चास्य ज्ञानं यः पृच्छति, तस्मै जिज्ञासवे (अस्य, चक्षसा) तस्य कथयिता (गाः) तज्ज्ञानमुपदिशति। अपरञ्च (उक्षा) निखिलकामना-पूरकः परमात्मा (परि, पाति) तं रक्षति ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Honey sweets of heaven and enlightened humanity come to the chief, valiant and benevolent sustainer of this world, the mighty hero who longs to be the first in the struggles of existence and who, generous and vigorous ruler, protects and promotes its lands and cows and its culture and traditions with his radiance.