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वा॒युर्न यो नि॒युत्वाँ॑ इ॒ष्टया॑मा॒ नास॑त्येव॒ हव॒ आ शम्भ॑विष्ठः । वि॒श्ववा॑रो द्रविणो॒दा इ॑व॒ त्मन्पू॒षेव॑ धी॒जव॑नोऽसि सोम ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vāyur na yo niyutvām̐ iṣṭayāmā nāsatyeva hava ā śambhaviṣṭhaḥ | viśvavāro draviṇodā iva tman pūṣeva dhījavano si soma ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वा॒युः । न । यः । नि॒युत्वा॑न् । इ॒ष्टऽया॑मा । नास॑त्याऽइव । हवे॑ । आ । शम्ऽभ॑विष्ठः । वि॒श्वऽवा॑रः । द्र॒वि॒णो॒दाःऽइ॑व । त्मन् । पू॒षाऽइ॑व । धी॒ऽजव॑नः । अ॒सि॒ । सो॒म॒ ॥ ९.८८.३

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:88» मन्त्र:3 | अष्टक:7» अध्याय:3» वर्ग:24» मन्त्र:3 | मण्डल:9» अनुवाक:5» मन्त्र:3


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो सोम (वायुर्न) वायु के समान (नियुत्वान्) वेगवाला है, (इष्टयामा) स्वेच्छाचारी गमनवाला है और (नासत्येव) विद्युत् के समान (शम्भविष्ठः) अत्यन्त सुख के देनेवाला है। (विश्ववारः) सबके वरण करने योग्य है। (पूषेव) पूषा के समान पोषक है। (सवितेव, धीजवनः असि) सूर्य्य के समान मनोरूप वेगवाला है। उक्त गुणसम्पन्न हे सोम ! आप हमारी रक्षा करें ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में पूर्वोक्त गुणसम्पन्न परमात्मा से यह प्रार्थना है कि हे परमात्मन् ! आप हमारे अन्तःकरण को शुद्ध करें ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

इष्टयामा

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) = जो सोम (वायुः न) = निरन्तर चलनेवाली वायु के समान (नियुत्वान्) = प्रशस्त इन्द्रियाश्वोंवाला है और (इष्टयामा) = लक्ष्य तक पहुँचानेवाला है, वह सोम (नासत्या इव) = प्राणापान की तरह (हवे) = पुकारने पर (आ शम्भविष्ठः) = शरीर में समन्तात् शान्ति को उत्पन्न करनेवाला है। शरीर में सुरक्षित सोम रोगादि को विनष्ट करके शान्ति को उत्पन्न करनेवाला है । (द्रविणोदाः इव) = धनों के देनेवाले की तरह (त्मन्) = अपने अन्दर (विश्ववार:) = सब वरणीय वस्तुओं को प्राप्त करानेवाला है । सोम सुरक्षित होकर शरीर में सब कोशों को वरणीय धनों से परिपूर्ण करता है । हे सोम ! तू (पूषा इव) = सबके पोषक इस सूर्य की तरह (धीजवनः असि) = कर्मों को प्रेरित करनेवाला है [धी = कर्म] जैसे सूर्य सब को कर्मों में प्रवृत्त होने की प्रेरणा देता है, उसी प्रकार यह सोम हमें स्फूर्तिमय बनाता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोम इष्ट लक्ष्य स्थान पर हमें पहुँचाता है, रोगादि को शान्त करता है, सब वरणीय वस्तुओं को प्राप्त कराता है और स्फूर्ति को देकर कर्मों में प्रेरित करता है।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) यः सोमः (वायुः, न) पवन इव (नियुत्वान्) वेगवान्, (इष्टयामा) स्वेच्छया गमनशीलः, (नासत्येव) विद्युदिव (शम्भविष्ठः) अतिशयसुखदायकः, (विश्ववारः) निखिल-वरणीयः, (पूषेव) पूषेव पोषकः (सवितेव, धीजवनः, असि) सूर्य्यसमानो मनोवेगवाँश्चासि। हे उक्तगुणसम्पन्न सोम ! त्वं मा पाहि ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O Soma, vibrant spirit of life in ceaseless flow like energy reaching the cherished goal, most blissful like the Ashvins, circuitous currents of nature’s energy in the exciting field of life, you are the treasure-hold of world’s wealth of universal value, infinite giver of everything like the parental beneficence and nourishment of divinity, and you move forward at the speed of thought.