वांछित मन्त्र चुनें

परि॒ हि ष्मा॑ पुरुहू॒तो जना॑नां॒ विश्वास॑र॒द्भोज॑ना पू॒यमा॑नः । अथा भ॑र श्येनभृत॒ प्रयां॑सि र॒यिं तुञ्जा॑नो अ॒भि वाज॑मर्ष ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pari hi ṣmā puruhūto janānāṁ viśvāsarad bhojanā pūyamānaḥ | athā bhara śyenabhṛta prayāṁsi rayiṁ tuñjāno abhi vājam arṣa ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

परि॑ । हि । स्म॒ । पु॒रु॒ऽहू॒तः । जना॑नाम् । विश्वा॑ । अस॑रत् । भोज॑ना । पू॒यमा॑नः । अथ॑ । आ । भ॒र॒ । श्ये॒न॒ऽभृ॒त॒ । प्रयां॑सि । र॒यिम् । तुञ्जा॑नः । अ॒भि । वाज॑म् । अ॒र्ष॒ ॥ ९.८७.६

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:87» मन्त्र:6 | अष्टक:7» अध्याय:3» वर्ग:23» मन्त्र:1 | मण्डल:9» अनुवाक:5» मन्त्र:6


0 बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (हि) क्योंकि परमात्मा (पुरुहूतः) सबका उपास्य देव है। (जनानां) मनुष्यों के (विश्वा) सब (भोजना) भोग्य पदार्थों को (पूयमानः) पवित्र करनेवाला (पर्यसरत्) उपासकों के हृदय में आकर विराजमान होता है (अथ) और (श्येनभृत) हे विद्युत् की शक्तियों को धारण करनेवाले परमात्मा ! (प्रयांसि) सब ऐश्वर्यों को (आभर) पूर्ण करो और आप (रयिं) धन को (तुञ्जानः) देनेवाले हैं और आप हमको (वाजं) बल (अभ्यर्ष) सब प्रकार से दें ॥६॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में परमात्मा को सर्वैश्वर्य्यप्रदातारूप से वर्णन किया है ॥६॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

यत्नशील- रयीश शक्तिशाली

पदार्थान्वयभाषाः - यह (पुरुहूतः) = [पुरुहूतं यस्य] पालक व पूरक है आह्वान जिसका, जिसकी प्रकार - याचना हमारे शरीरों का पालन करती है तथा मनों का पूरण करती है, वह (पूयमानः) = पवित्र किया जाता हुआ सोम-वासनाओं के उबाल से दूर रखा जाता हुए सोम [वीर्य] (जनानां) = लोगों के (विश्वा) = सब (भोजना) = रक्षक धनों को [वसुओं को] (हिष्मा) = निश्चय से (परि असरत्) = प्राप्त कराता है [अन्तर्मावितण्यर्थः 'सृ'] । हे (श्येनभृत) = शंसनीय गतिवाले पुरुष से भरण किये गये सोम ! तू (अथ) = अब (प्रयांसि) = उद्योगों को (आभर) = हमारे में भर, हमें यत्नशील बना । (रयिं तुञ्जानः) = धनों को देता हुआ तू (वाजं अभि) = शक्ति की ओर (अर्ष) = गतिवाला हो । सोमरक्षण से हम आलस्य शून्य होकर पुरुषार्थ से धनों का अर्जन करें और उनका ठीक प्रयोग करते हुए शक्तिशाली बनें।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुरक्षित सोम सब पालक धनों को प्राप्त कराता है। हमें यत्नशील, रयीश [धन स्वामी] व शक्तिशाली बनाता है ।
0 बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (हि) यतः परमात्मा (पुरुहूतः) सर्वस्योपास्यदेवोऽस्ति। (जनानां) मानवानां (विश्वा) सर्वेषां (भोजना) भोग्यपदार्थानां (पूयमानः) पावकः (परि, असरत्) उपासकानां हृदये समागत्य विराजते। (श्येनभृत) हे विद्युच्छक्तिधारक परमात्मन् ! (प्रयांसि) सर्वाण्यैश्वर्य्याणि पूरयताम्। अपि च त्वं (रयिं) धनं (तुञ्जानः) ददासि अपरञ्च त्वं मह्यं (वाजं) बलं (अभि, अर्ष) सर्वथा देहि ॥६॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O Soma, pure and purifying divine spirit of joyous energy, invoked by all people, enshrined in the heart core of the soul, bring all forms of life’s joy. Flow for our battle of life for the victory of immortality over the state of mortality and bring us food, wealth and honour and excellence created by divine energy for the soul’s sustenance on way to the final victory.