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अस॑र्जि स्क॒म्भो दि॒व उद्य॑तो॒ मद॒: परि॑ त्रि॒धातु॒र्भुव॑नान्यर्षति । अं॒शुं रि॑हन्ति म॒तय॒: पनि॑प्नतं गि॒रा यदि॑ नि॒र्णिज॑मृ॒ग्मिणो॑ य॒युः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asarji skambho diva udyato madaḥ pari tridhātur bhuvanāny arṣati | aṁśuṁ rihanti matayaḥ panipnataṁ girā yadi nirṇijam ṛgmiṇo yayuḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अस॑र्जि । स्क॒म्भः । दि॒वः । उत्ऽय॑तः । मदः॑ । परि॑ । त्रि॒ऽधातुः । भुव॑नानि । अ॒र्ष॒ति॒ । अं॒शुम् । रि॒ह॒न्ति॒ । म॒तयः॑ । पनि॑प्नतम् । गि॒रा । यदि॑ । निः॒ऽनिज॑म् । ऋ॒ग्मिणः॑ । य॒युः ॥ ९.८६.४६

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:86» मन्त्र:46 | अष्टक:7» अध्याय:3» वर्ग:21» मन्त्र:1 | मण्डल:9» अनुवाक:5» मन्त्र:46


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - जो परमात्मा (दिवः स्कम्भः) द्युलोक का आधार है और (त्रिधातुर्भुवनानि) प्रकृति के तीनों गुणों के कार्य जो लोक हैं, उनको (पर्यर्षति) चलानेवाला है और (मदः) आनन्दस्वरूप है तथा (उद्यतः) अपनी सत्ता से सदैव जीवित जागृत है, (असर्जि) उसने इन लोक-लोकान्तरों को रचा। (अशुं) उस गतिशील (पनिप्नतं) शब्दायमान परमात्मा को (मतयः) बुद्धिमान् (गिरा) वेदवाणी द्वारा (रिहन्ति) साक्षात्कार करते हैं। कब-२ (यदि) जब-२ (निर्णिजं) उस शुद्धस्वरूप को (ऋग्मिणः) स्तोता लोग स्तुति द्वारा (ययुः) प्राप्त होते हैं ॥४६॥
भावार्थभाषाः - जब उपासक शुद्धभाव से उसका स्वतन करता है, तो उसकी प्राप्ति अवश्यमेव होती है ॥४६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'त्रिधातुः ' सोमः

पदार्थान्वयभाषाः - यह (दिवः स्कम्भः) = ज्ञान का स्कम्भ [= आधार] रूप सोम (असर्जि) = शरीर में उत्पन्न किया जाता है यह (उद्यतः) = शरीर में ऊर्ध्वगतिवाला होता हुआ (मदः) = उल्लास का जनक होता है । (त्रिधातुः) = शरीर, मन व बुद्धि तीनों को धारण करनेवाला यह सोम (भुवनानि) = शरीर के सब अंगों में (परि अर्षति) = गतिवाला होता है । (मतयः) = विचारशील पुरुष (पनिप्रतम्) = खूब ही प्रभु का स्तवन करनेवाला, स्तुतिवृत्ति को पैदा करनेवाले अंशुम् सोम को (रिहन्ति) = आस्वादित करते हैं। इस सोमरक्षण में वे आनन्द का अनुभव करते हैं। ये सोम के आनन्द को तब अनुभव करते हैं (यदि) = यदि (ऋग्मिणः) = ऋचाओं व विज्ञानोंवाले होते हुए ये वैज्ञानिक पुरुष (गिरा) = स्तुतिवाणियों के द्वारा (निर्णिजम्) = जीवन को शुद्ध बनानेवाले उस प्रभु को (ययुः) = जाते हैं, उपासित करते हैं । यह विज्ञान व उपासना जीवन को शुद्ध बनाती है। शुद्ध वासनाशून्य जीवन में ही सोम का रक्षण होता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- स्वाध्याय सोमरक्षण के साधन हैं सुरक्षित सोम 'शरीर, मन व बुद्धि' तीनों का धारण करनेवाला है।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - यः परमात्मा (दिवः, स्कम्भः) द्युलोकस्याधारः अपि च (त्रिधातुः, भुवनानि) प्रकृतेस्त्रयाणां गुणानां कार्य्यभूतो यो लोकस्तं (परि, अर्षति) चालयति अपरञ्च (मदः) आनन्दस्वरूपस्तथा (उद्यतः) स्वसत्तया सदैव जीवितः जागरितश्चास्ति। (असर्जि) तेनेमानि लोकलोकान्तराणि विरचितानि। (अंशुं) तं गतिशीलं परमात्मानं (मतयः) बुद्धिमन्तः (गिरा) वेदवाण्या (रिहन्ति) साक्षात्कुर्वन्ति। कदा ? (यदि) यदा (पनिप्नतं) शब्दायमानं (निर्णिजं) अमुं शुद्धस्वरूपं (ऋग्मिणः) स्तोतारः स्तुत्या (ययुः) प्राप्नुवन्ति ॥४६॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Soma, lord supreme, that creates, moves and pervades all regions of the universe constituted of three modes of Prakrti, sattva, rajas and tamas, is the pillar of the highest heavens, up and wakeful, highest of reality and inspires humanity with divine ecstasy. The wise love and worship the self-manifestive, self-expressive, vibrant Soma with songs of praise while the celebrants adore the immaculate divinity with hymns of praise, the holy Rks, and realise it.