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गो॒वित्प॑वस्व वसु॒विद्धि॑रण्य॒विद्रे॑तो॒धा इ॑न्दो॒ भुव॑ने॒ष्वर्पि॑तः । त्वं सु॒वीरो॑ असि सोम विश्व॒वित्तं त्वा॒ विप्रा॒ उप॑ गि॒रेम आ॑सते ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

govit pavasva vasuvid dhiraṇyavid retodhā indo bhuvaneṣv arpitaḥ | tvaṁ suvīro asi soma viśvavit taṁ tvā viprā upa girema āsate ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

गो॒ऽवित् । प॒व॒स्व॒ । व॒सु॒ऽवित् । हि॒र॒ण्य॒ऽवित् । रे॒तः॒ऽधाः । इ॒न्दो॒ इति॑ । भुव॑नेषु । अर्पि॑तः । त्वम् । सु॒ऽवीरः॑ । अ॒सि॒ । सो॒म॒ । वि॒श्व॒ऽवित् । तम् । त्वा॒ । विप्राः॑ । उप॑ । गि॒रा । उ॒मे । आ॒स॒ते॒ ॥ ९.८६.३९

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:86» मन्त्र:39 | अष्टक:7» अध्याय:3» वर्ग:19» मन्त्र:4 | मण्डल:9» अनुवाक:5» मन्त्र:39


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! (गोवित्) आप विज्ञानी हैं। ज्ञान से (पवस्व) हमको पवित्र करें। (वसुवित्) ऐश्वर्य्य से सम्पन्न हैं, ऐश्वर्य्य से हमको पवित्र करें। (हिरण्यवित्) प्रकाशस्वरूप हैं, प्रकाश से हमको पवित्र करें (रेतोधाः) आप प्रजा के बीजस्वरूप सामर्थ्य को धारण करनेवाले हैं (भुवनेषु अर्पितः) और सब संसार में व्याप्त हैं। (त्वं) तुम (सुवीरोऽसि) सर्वोपरि बलयुक्त हो (सोम) सर्वोत्पादक हो (विश्ववित्) सर्वज्ञाता हो (तं त्वां) उक्तगुणयुक्त आपको (विप्राः) विद्वान् लोग (उप गिरा इमे) उपासना करते हुए (आसते) स्थित होते हैं ॥३९॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में परमात्मा को ज्ञान, प्रकाश और क्रिया इत्यादि अनन्त गुणों के आधाररूप से वर्णन किया है। इसी आशय को लेकर (स्वाभाविकी ज्ञान बल क्रिया) इत्यादि उपनिषद्वाक्यों में परमात्मा को ज्ञानबलक्रिया का आधार वर्णन किया है ॥३९॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

गोवित्-वसुवित्-हिरण्यवित्

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्दो) = हमें शक्तिशाली बनानेवाले सोम ! तू हमें पवस्व प्राप्त हो । तू (गोवित्) = उत्कृष्ट इन्द्रियों को प्राप्त करानेवाला है। (वसुवित्) = निवास के लिये आवश्यक तत्त्वों-वसुओं को प्राप्त करानेवाला है । (हिरण्यवित्) = [हिरण्य वै ज्योतिः] ज्योति को प्राप्त करानेवाला है । हे इन्दो ! तू (रेतोधा) = शक्ति का आधान करनेवाला होता हुआ (भुवनेषु अर्पितः) = इन प्राणियों में स्थापित किया गया है । हे सोम वीर्यशक्ते ! (त्वम्) = तू (सुवीरः असि) = हमें उत्तम वीर बनानेवाला है। (विश्ववित्) = सब आवश्यक धनों को प्राप्त कराता है । (इमे विप्राः) = ये ज्ञानी पुरुष (तं त्वा) = उस तुझ को (उपासते) = स्तुत वाणियों के द्वारा उपासित करते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुरक्षित सोम 'उत्तम इन्द्रियों, वसुओं व ज्योति' को प्राप्त कराता है।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूपपरमात्मन् ! (गोवित्) त्वं विज्ञान्यसि। ज्ञानेन मां (पवस्व) पवित्रय। (वसुवित्) ऐश्वर्य्यसम्पन्नोऽसि प्रकाशेन मां पवित्रय। (रेतोधाः) त्वं प्रजाया बीजरूपसामर्थ्यं दधासि। अन्यच्च (भुवनेषु, अर्पितः) निखिलजगति व्याप्तोऽसि। (त्वं) पूर्वोक्तस्त्वं (सुवीरोऽसि) सर्वोपरि बलयुक्तोऽसि। (सोम) हे सर्वोत्पादक ! (विश्ववित्) सर्वज्ञाता चासि। (तं त्वां) पूर्वोक्तं त्वां (विप्राः) विद्वांसः (उप, गिरा, इमे) उपासीनाः (आसते) तिष्ठन्ति ॥३९॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O Soma, Indu, lord of life, beauty and grace, flow, pure and purifying, vibrant omnipresent in all regions of the world. You master and control the wealth of lands and cows, light of knowledge and culture, jewels of peace and settlement, and the beauty of gold and grace. You are virile and command creative energy. You are mighty brave, ruler over the world. We, vibrant devotees, adore you with songs of praise and prayer, and pray we may be close to you.