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त्वं नृ॒चक्षा॑ असि सोम वि॒श्वत॒: पव॑मान वृषभ॒ ता वि धा॑वसि । स न॑: पवस्व॒ वसु॑म॒द्धिर॑ण्यवद्व॒यं स्या॑म॒ भुव॑नेषु जी॒वसे॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvaṁ nṛcakṣā asi soma viśvataḥ pavamāna vṛṣabha tā vi dhāvasi | sa naḥ pavasva vasumad dhiraṇyavad vayaṁ syāma bhuvaneṣu jīvase ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम् । नृ॒ऽचक्षाः॑ । अ॒सि॒ । सो॒म॒ । वि॒श्वतः॑ । पव॑मान । वृ॒ष॒भ॒ । ता । वि । धा॒व॒सि॒ । सः । नः॒ । प॒व॒स्व॒ । वसु॑ऽमत् । हिर॑ण्यऽवत् । व॒यम् । स्या॒म॒ । भुव॑नेषु । जी॒वसे॑ ॥ ९.८६.३८

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:86» मन्त्र:38 | अष्टक:7» अध्याय:3» वर्ग:19» मन्त्र:3 | मण्डल:9» अनुवाक:5» मन्त्र:38


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे परमात्मन् ! (त्वं) तुम (नृचक्षाः असि) मनुष्यों के कर्म्मों के भिन्न-२ फल देनेवाले हो और (पवमान) हे पवित्र करनेवाले ! (विश्वतः) सब प्रकार से (वृषभ) हे अनन्तशक्तियुक्त परमात्मन् ! (ता विधावसि) उन शक्तियों से आप हमको शुद्ध करें (सः) उक्त शक्तियुक्त आप (नः) हमको (पवस्व) पवित्र करें। आप (वसुमत्) ऐश्वर्य्यवाले और (हिरण्यवत्) प्रकाशवाले हैं। (वयं) हम (भुवनेषु) इस संसार में (जीवसे) जीने के लिये (स्याम) उक्त ऐश्वर्य्ययुक्त हों ॥३८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में परमात्मा को कर्मों के साक्षीरूप से वर्णन किया है ॥३८॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

वसुमत्+हिरण्यवत्

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सोम) = वीर्यशक्ते! (त्वम्) = तू (नृचक्षसाः असि) = मनुष्यों का ध्यान करनेवाला है। वस्तुतः सोम ही मनुष्यों को रोगों व वासनाओं से बचाता है। हे (पवमान) = पवित्र करनेवाले, (वृषभ) = शक्ति का सेचन [वृष् सेचने] करनेवाले सोम तू (ताः) = उन प्रजाओं को (विश्वतः) = सब ओर से (विधावसि) = शुद्ध कर देता है। सुरक्षित सोम शरीर मानस व बौद्धिक सभी मलों को दूर कर देता है । (सः) = वह तू (नः) = हमारे लिये (वसुमत्) = उत्तम वसुओंवाला होता हुआ तथा (हिरण्यवत्) = उत्तम ज्योतिवाला होता हुआ (पवस्व) = प्राप्त हो शरीर में सुरक्षित सोम वसुओं व हिरण्यों को प्राप्त कराता है, शरीर में वसुओं को, मस्तिष्क में ज्योति को । हे सोम ! हम तेरे रक्षण के द्वारा (वयम्) = हम (भुवनेषु) = इन लोकों में जीवसे जीवन के लिये स्याम हों। शरीर में शक्ति व मस्तिष्क में दीप्तिवाले होते हुए हम दीर्घजीवी हों ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - शरीर में सुरक्षित सोम दीर्घ जीवन व ज्योति का कारण बनता है।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे परमात्मन् ! (त्वं) पूर्वोक्तस्त्वं (नृचक्षाः, असि) मानवेभ्यः कर्म्मणां पृथक् पृथक् फलं ददासि। अपि च (पवमान) हे परमात्मन् ! (विश्वतः) सर्वतः (वृषभ) अनन्तशक्तियुक्तोऽसि। (ता, वि, धावसि) ताभिः शक्तिभिस्त्वं मां परिशोधय (सः) तच्छक्तियुक्तस्त्वं (नः) अस्मान् (पवस्व) पवित्रय (वसुमत्) ऐश्वर्य्यवान् (हिरण्यवत्) सप्रकाशोऽसि। (वयं) वयं (भुवनेषु) अस्मिन् संसारे (जीवसे) जीवनाय (स्याम) उक्तैश्वर्य्ययुक्ता भवाम ॥३८॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O Soma, you are constant watchful guardian of humanity all round in all ways. O lord pure and purifying, vigorous and generous, you cleanse us with all those powers of yours. Pray purify and energise us so that we may be prosperous with peaceful settlement and golden graces of wealth, honour and excellence to live happy in the regions of the world.