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राजा॒ सिन्धू॑नां पवते॒ पति॑र्दि॒व ऋ॒तस्य॑ याति प॒थिभि॒: कनि॑क्रदत् । स॒हस्र॑धार॒: परि॑ षिच्यते॒ हरि॑: पुना॒नो वाचं॑ ज॒नय॒न्नुपा॑वसुः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

rājā sindhūnām pavate patir diva ṛtasya yāti pathibhiḥ kanikradat | sahasradhāraḥ pari ṣicyate hariḥ punāno vācaṁ janayann upāvasuḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

राजा॑ । सिन्धू॑नाम् । प॒व॒ते॒ । पतिः॑ । दि॒वः । ऋ॒तस्य॑ । या॒ति॒ । प॒थिऽभिः॑ । कनि॑क्रदत् । स॒हस्र॑ऽधारः । परि॑ । सि॒च्य॒ते॒ । हरिः॑ । पु॒ना॒नः । वाच॑म् । ज॒नय॑न् । उप॑ऽवसुः ॥ ९.८६.३३

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:86» मन्त्र:33 | अष्टक:7» अध्याय:3» वर्ग:18» मन्त्र:3 | मण्डल:9» अनुवाक:5» मन्त्र:33


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (हरिः) परमात्मा (पुनानः) सबको पवित्र करता हुआ (वाचं जनयन्) वेदरूपी वाणी को उत्पन्न करता हुआ (उपावसुः) सब धनों का आधार (परि सिच्यते) विद्वानों द्वारा उपासना किया जाता है। (सहस्रधारः) वह अनन्त शक्तिमान् है (सिन्धूनां राजा) और स्यन्दनशील सब पदार्थों का राजा है और (दिवः) द्युलोक का (पतिः) पति है। (ऋतस्य पथिभिः) सच्चाई की रास्तों से (कनिक्रदत्) वह शब्दायमान ब्रह्म (याति) अपने भक्तों की गति करता है तथा (पवते) उनको पवित्र करता है ॥३३॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा अपनी वेदरूपी वाणी को उत्पन्न करके सदा उपदेश करता है। परमात्मानुयायी पुरुषों को चाहिये कि उसकी आज्ञानुसार अपना जीवन बनायें ॥३३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

राजा सिन्धूनां - उपावसुः

पदार्थान्वयभाषाः - यह सोम (सिन्धूनाम्) = ज्ञान प्रवाहों का (राजा) = स्वामी होता है। (दिवः) = मस्तिष्करूप द्युलोक का (पतिः) = रक्षक होता हुआ (पवते) = हमें प्राप्त होता है। (कनिक्रदत्) = प्रभु के नामों का उच्चारण करता हुआ (ऋतस्य) = यज्ञ के (पथिभिः) = मार्गों से (याति) = गतिवाला होता है । सोमरक्षक के जीवन में प्रभु स्मरण पूर्वक यज्ञ चलाते हैं, यह सदा प्रभुस्मरण पूर्वक उत्तम कर्मों में लगा रहता है (सहस्त्रधारः) = हजारों प्रकार से धारण करनेवाला (हरिः) = यह दुःखों का हरण करनेवाला सोम (पुनानः) = पवित्र किया जाता हुआ (वाचं जनयन्) = [वेद ज्ञान] वाणी को हमारे अन्दर उत्पन्न करता हुआ (उपावसुः) = उपासना के द्वारा सब वसुओं को प्राप्त करानेवाला होता है । सोमरक्षक प्रभु का उपासक बनता है और सब धनों को प्राप्त करता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोम हमारे जीवनों में 'ज्ञान + ऋ + उपासना व वसुओं' को प्राप्त करानेवाला है ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (हरिः) परमात्मा (पुनानः) सर्वं पवित्रयन् (वाचं, जनयन्) वेदवाणीमुत्पादयन् किम्भूतः (उपावसुः) सर्वधनानामाधारः (परि, सिच्यते) विद्वद्भिरुपास्यते (सहस्रधारः) सोऽनन्तशक्तिमान् अस्ति। अन्यच्च (सिन्धूनां, राजा) स्यन्दनशीलनिखिलपदार्थानां राजास्ति। अपि च (दिवः, पतिः) द्युलोकस्य पतिः (ऋतस्य, पथिभिः) सत्यमार्गैः (कनिक्रदत्) शब्दायमानः परमात्मा (याति) निजभक्तान् गच्छति तथा (पवते) तान् पवित्रयति ॥३३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Ruler and controller of the cosmic streams of evolution, lord of the light of heaven, moves and flows on loud and bold by the paths of cosmic law in a thousand streams and showers of new life. The creative spirit dispelling want and darkness, pure and purifying, goes on close by sustainers of life, creating new forms and names of existence, and is celebrated as divine creator, controller and director of the evolution of life.