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इन्दु॑: पुना॒नो अति॑ गाहते॒ मृधो॒ विश्वा॑नि कृ॒ण्वन्त्सु॒पथा॑नि॒ यज्य॑वे । गाः कृ॑ण्वा॒नो नि॒र्णिजं॑ हर्य॒तः क॒विरत्यो॒ न क्रीळ॒न्परि॒ वार॑मर्षति ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

induḥ punāno ati gāhate mṛdho viśvāni kṛṇvan supathāni yajyave | gāḥ kṛṇvāno nirṇijaṁ haryataḥ kavir atyo na krīḻan pari vāram arṣati ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्दुः॑ । पु॒ना॒नः । अति॑ । गा॒ह॒ते॒ । मृधः॑ । विश्वा॑नि । कृ॒ण्वन् । सु॒ऽपथा॑नि । यज्य॑वे । गाः । कृ॒ण्वा॒नः । निः॒ऽनिज॑म् । ह॒र्य॒तः । क॒विः । अत्यः॑ । न । क्रीळ॑न् । परि॑ । वार॑म् । अ॒र्ष॒ति॒ ॥ ९.८६.२६

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:86» मन्त्र:26 | अष्टक:7» अध्याय:3» वर्ग:17» मन्त्र:1 | मण्डल:9» अनुवाक:5» मन्त्र:26


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यज्यवे) यज्ञ करनेवाले यजमानों के लिये परमात्मा (विश्वानि सुपथानि) सब रास्तों को (कृण्वन्) सुगम करता हुआ (मृधः) उनके विघ्नों को (अतिगाहते) मर्द्दन करता है और (पुनानः) उनको पवित्र करता हुआ और (हर्य्यतः) वह कान्तिमय परमात्मा (कविः) सर्वज्ञ (अत्यो न) विद्युत् के समान (क्रीळन्) कीड़ा करता हुआ (वारं) वरणीय पुरुष को (पर्य्यर्षति) प्राप्त होता है ॥२६॥
भावार्थभाषाः - जो लोग परमात्मा की आज्ञाओं का पालन करते हैं, परमात्मा उनके लिये सब रास्तों को सुगम करता है ॥२६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

विश्वानि कृण्वन् सुपथानि यज्यवे

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रः) = हमें शक्तिशाली बनानेवाला सोम (पुनानः) = पवित्र किया जाता हुआ, गत मन्त्र के अनुसार स्वाध्याय कर्म व उपासना द्वारा वासनाओं से आक्रान्त न होने दिया जाता हुआ (मृधः) = शत्रुओं का (अति गाहते) = अतिशयेन विलोडन व मंथन कर देता है । यह सुरक्षित सोम वासनाओं को विनष्ट कर देता है । इस प्रकार यह सोम यज्यवे यज्ञशील पुरुष के लिये (विश्वानि सुपथानि) = सब उत्तम मार्गों को (कृण्वन्) = करता है । सोमरक्षण से यज्ञशील बनकर हम सन्मार्ग का ही आक्रमण करते हैं। यह सोम (गाः कृण्वानः) = ज्ञान रश्मियों को हमारे लिये करता हुआ, (हर्यतः) = चाहने योग्य, (कविः )= क्रान्तिदर्शी, (अत्यः न) = निरन्तर गतिवाले घोड़े की तरह (क्रीडन्) = क्रीडक की मनोवृत्ति से सब कार्यों को करता हुआ (निर्णिजं) = शुचि व परिपुष्ट (वारम्) = जिसमें से सब वासनाओं का वारण किया गया है उस हृदय को (परि अर्षति) = लक्ष्य करके प्राप्त होता है । सोमरक्षण से ज्ञान बढ़ता है, क्रीडक की मनोवृत्ति उत्पन्न होती है तथा हृदय पवित्र व परिपुष्ट बनता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुरक्षित सोम शत्रुओं का नाश करता है, हमें सन्मार्ग पर ले चलता है, हमारे ज्ञान का वर्धन करता हुआ यह हमें पवित्र करता है ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यज्यवे) यज्ञकर्तृभ्यो यजमानेभ्यः परमात्मा (विश्वानि, सुपथानि) सर्वान् मार्गान् (कृण्वन्) संशोधयन् (मृधः) तस्य विघ्नानि (अति, गाहते) मर्द्दनं करोति। अपि च (पुनानः) तं पवित्रयन्, अन्यच्च (निर्निजं) निजरूपं (गाः, कृण्वानः) सरलयन् (हर्यतः) सकान्तिमयः परमात्मा किम्भूतः (कविः) सर्वज्ञः (अत्यः, न) विद्युदिव (क्रीळन्) खेलन् (वारं) वरणीयपुरुषं (परि, अर्षति) प्राप्नोति ॥२६॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indu, soma spirit of life and light of the world, pure and purifying, overcomes all adversaries, clearing all paths of life, making them simple for the man of self-sacrifice for social and creative purposes. Revealing its own real form in its original purity, the refulgent and omniscient lord goes forward to the chosen soul, bright as a flash of light.