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पव॑स्व सोम दि॒व्येषु॒ धाम॑सु सृजा॒न इ॑न्दो क॒लशे॑ प॒वित्र॒ आ । सीद॒न्निन्द्र॑स्य ज॒ठरे॒ कनि॑क्रद॒न्नृभि॑र्य॒तः सूर्य॒मारो॑हयो दि॒वि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pavasva soma divyeṣu dhāmasu sṛjāna indo kalaśe pavitra ā | sīdann indrasya jaṭhare kanikradan nṛbhir yataḥ sūryam ārohayo divi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पव॑स्व । सो॒म॒ । दि॒व्येषु॑ । धाम॑ऽसु । सृ॒जा॒नः । इ॒न्दो॒ इति॑ । क॒लशे॑ । प॒वित्रे॑ । आ । सीद॑न् । इन्द्र॑स्य । ज॒ठरे॑ । कनि॑क्रदत् । नृऽभिः॑ । य॒तः । सूर्य॑म् । आ । अ॒रो॒ह॒यः॒ । दि॒वि ॥ ९.८६.२२

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:86» मन्त्र:22 | अष्टक:7» अध्याय:3» वर्ग:16» मन्त्र:2 | मण्डल:9» अनुवाक:5» मन्त्र:22


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे परमात्मन् ! (दिव्येषु, धामसु) द्युलोकादि स्थानों में (सृजानः) उक्त सृष्टि को रचनेवाले आप (पवस्व) पवित्र करें। (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप ! (पवित्रे कलशे) पवित्र अन्तःकरणों में (आसीदन्) स्थिति करते हुए आप (इन्द्रस्य) कर्मयोगी की (जठरे) सत्तास्फूर्ति देनेवाली जठराग्नि में (कनिक्रदत्) गर्जते हुए (नृभिर्यतः) मनुष्यों के स्थान के विषय में आप (दिवि) द्युलोक में (सूर्य) सूर्य को (आरोहयः) आश्रय करें ॥२२॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा सूर्य-चन्द्रमादिकों का निर्माण करता हुआ इस विविध प्रकार की रचना का निर्माण करके प्रजा को उद्योगी बनाने के लिये कर्मयोगी की कर्माग्नि को प्रदीप्त करता है ॥२२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

दिव्य तेज व दिव्य ज्ञान [सूर्यमारोहयः दिवि]

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सोम) = वीर्यशक्ते! तू (दिव्येषु धामसु) = दिव्य तेजों में (पवस्व) = गतिवाला हो । शरीर में सुरक्षित हुआ हुआ तू अलौकिक तेजों को प्राप्त करा । हे (इन्दो) = हमें शक्तिशाली बनानेवाले सोम ! तू (कलशे) = इस शरीर कलश में (सृजान:) = सब कलाओं का निर्माण करता हुआ (पवित्रे) = पवित्र हृदय में आ [ पवस्व ] = प्राप्त हो। (इन्द्रस्य) = जितेन्द्रिय पुरुष के (जठरे) = उदर में (सीदन्) = बैठता हुआ (कनिक्रदत्) = उस प्रभु के नामों का आह्वान करनेवाला हो । प्रभु का तू साधन करनेवाला हमें बना । (नृभिः यतः) = उन्नतिपथ पर चलनेवाले लोगों से संयत हुआ हुआ तू (दिवि) = मस्तिष्क रूप द्युलोक में (सूर्यम्) = ज्ञान सूर्य को (आरोहयः) = आरूढ़ कर । तेरे द्वारा मस्तिष्क ज्ञानदीप्त हो उठे।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुरक्षित सोम 'दिव्य तेज व दिव्य ज्ञान' को प्राप्त कराता है ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे परमात्मन् ! (दिव्येषु धामसु) द्युलोकादिस्थानेषु (सृजानः) उक्तसृष्टिरचयिता त्वं (पवस्व) पवित्रय। (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! (पवित्रे, कलशे) पूतान्तःकरणेषु (आ, सीदन्) तिष्ठन् (इन्द्रस्य) कर्म्मयोगिनः (जठरे) सत्तास्फूर्तिदायके जठराग्नौ (कनिक्रदत्) गर्जन् (नृभिः, यतः) मनुष्यस्थानविषये त्वं (दिवि) द्युलोके (सूर्य्यं) रवेः (आरोहयः) आश्रयणं कुरु ॥२२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Flow on, O Soma, spirit of life in the divine worlds of existence, creating and ecstatic. Vibrate, O light and lustre of life, in the heart core of the sacred soul. Abiding in the heart core of the soul, vibrant loud and bold, energising and illuminating, meditated and realised by devout people, rise to the sun in the highest regions of the universe where you illuminate the sun, the dawns and the days.