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प्र त॑ आ॒शव॑: पवमान धी॒जवो॒ मदा॑ अर्षन्ति रघु॒जा इ॑व॒ त्मना॑ । दि॒व्याः सु॑प॒र्णा मधु॑मन्त॒ इन्द॑वो म॒दिन्त॑मास॒: परि॒ कोश॑मासते ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra ta āśavaḥ pavamāna dhījavo madā arṣanti raghujā iva tmanā | divyāḥ suparṇā madhumanta indavo madintamāsaḥ pari kośam āsate ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र । ते॒ । आ॒शवः॑ । प॒व॒मा॒न॒ । धी॒ऽजवः॑ । मदाः॑ । अ॒र्ष॒न्ति॒ । र॒घु॒जाःऽइ॑व । त्मना॑ । दि॒व्याः । सु॒ऽप॒र्णाः । मधु॑ऽमन्तः । इन्द॑वः । म॒दिन्ऽत॑मासः । परि॑ । कोश॑म् । आ॒स॒ते॒ ॥ ९.८६.१

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:86» मन्त्र:1 | अष्टक:7» अध्याय:3» वर्ग:12» मन्त्र:1 | मण्डल:9» अनुवाक:5» मन्त्र:1


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पवमान) हे सबको पवित्र करनेवाले परमात्मन् ! (ते) तुम्हारे (धीजवः) ज्ञान के (आशवः) प्राणरूप भाव (रधुजा इव, त्मना) विद्युत् के समान शीघ्र गति करनेवाले (मदाः) और आनन्दरूप (प्रार्षन्ति) अनायास से प्रतिदिन गति कर रहे हैं और वे भाव (दिव्याः) दिव्य हैं (सुपर्णाः) चेतनरूप हैं (मधुमन्तः) आनन्दरूप हैं (इन्दवः) प्रकाशरूप हैं (मन्दिन्तमासः) आह्लादक हैं। वे उपासक के (कोशं) अन्तःकरण में (पर्य्यासते) स्थिर होते हैं ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो लोग पदार्थान्तरों से चित्तवृत्ति को हटाकर एकमात्र परमात्मा का ध्यान करते हैं, उनके अन्तःकरण को प्रकाशित करने के लिये परमात्मा दिव्यभाव से आकर उपस्थित हो जाते हैं ॥१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

दिव्यः सुपर्णा मधुमन्तः

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (पवमान) = पवित्र करनेवाले सोम ! (ते) = तेरे (आपूर्वः) = शरीर में व्याप्त होनेवाले (धीजवः) = बुद्धियों को प्रेरित करनेवाले (मदाः) = उल्लास के जनक इस (रघुजाः इवः) = शीघ्रगतिवाले अश्वों की तरह (त्मना) = स्वयं अनायास ही (प्र अर्षन्ति) = हमें प्रकर्षेण प्राप्त होते हैं । [२] ये (दिव्याः) = हमारे जीवन को दिव्य बनानेवाले, (सुपर्णाः) = हमारा उत्तमत्ता से पालन व पूरण करनेवाले (मधुमन्तः) = जीवन को मधुर बनानेवाले (इन्दवः) = सोमकण (मदिन्तमासः) = अतिशयेन आनन्द के जनक हैं। ये सोमकण (कोशम्) = इस शरीर रूप कोश में परि आसते चारों ओर स्थित होते हैं। शरीर के अंग-प्रत्यंगों में व्याप्त होकर उन्हें सुन्दर स्वस्थ व सशक्त बनाते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - शरीर में व्याप्त होनेवाले सोमकण बुद्धियों को प्रेरित करते हैं। ये हमारे जीवन को 'दिव्य-सुपर्ण व मधुमय' बनाते हैं।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पवमान) हे सर्वपवित्रकारक परमात्मन् ! (ते) तव (धीजवः) ज्ञानस्य (आशवः) ज्ञानेन्द्रियरूपाः भावाः (रघुजा इव, त्मना) विद्युदिव शीघ्रगतिकारकाः (मदाः) अपि च आनन्दरूपाः (प्र, अर्षन्ति) अनायासेन प्रत्यहं गच्छन्ति। अपि च ते भावाः (दिव्याः) दिव्याः (सुपर्णाः) चेतनरूपाः (मधुमन्तः) आनन्दरूपाः (इन्दवः) प्रकाशरूपाः सन्ति। (मदिन्तमासः) आह्लादकाः सन्ति। ते उपासकस्य (कोशं) अन्तःकरणे (परि, आसते) स्थिरा भवन्ति ॥१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - 0 pure and purifying Soma, peace and power of divinity, the ecstatic vibrations of your bliss, instantly radiant and inspiring for the mind, flow spontaneously like rays of light at the speed of thought. The divine, flying, honey sweet effusions of bliss, most exhilarating, overwhelm the mind and settle in the heart core of the soul.