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पव॑मानो अ॒भ्य॑र्षा सु॒वीर्य॑मु॒र्वीं गव्यू॑तिं॒ महि॒ शर्म॑ स॒प्रथ॑: । माकि॑र्नो अ॒स्य परि॑षूतिरीश॒तेन्दो॒ जये॑म॒ त्वया॒ धनं॑धनम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pavamāno abhy arṣā suvīryam urvīṁ gavyūtim mahi śarma saprathaḥ | mākir no asya pariṣūtir īśatendo jayema tvayā dhanaṁ-dhanam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पव॑मानः । अ॒भि । अ॒र्ष॒ । सु॒ऽवीर्य॑म् । उ॒र्वीम् । गव्यू॑तिम् । महि॑ । शर्म॑ । स॒ऽप्रथः॑ । माकिः॑ । नः॒ । अ॒स्य । परि॑ऽसूतिः । ई॒श॒त॒ । इन्दो॒ इति॑ । जये॑म । त्वया॑ । धन॑म्ऽधनम् ॥ ९.८५.८

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:85» मन्त्र:8 | अष्टक:7» अध्याय:3» वर्ग:11» मन्त्र:3 | मण्डल:9» अनुवाक:4» मन्त्र:8


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पवमानाः) हे सबको पवित्र करनेवाले परमात्मन् ! (सुवीर्यमुर्वीम्) बल के देनेवाले विस्तृतमार्ग को जो (गव्यूतिं) इन्द्रियों का ज्ञानमार्ग है, उसको देकर हे परमात्मन् ! आप (महि) महत् (सप्रथः) सब प्रकार से बड़ा (शर्म्म) सुख (अभ्यर्ष) दें। (इन्दो) हे सर्वप्रकाशक परमात्मन् ! (परिषूतिरीशत) किसी का द्वेषी (नः) हमको (माकिः) मत करो और (त्वया) तुम्हारे से उत्पन्न किये हुए (अस्य) इस संसार के (धनं धनं) सब धन को (जयेम) हम जीतें ॥८॥
भावार्थभाषाः - जिन लोगों के ऐश्वर्य्यसम्बन्धी इन्द्रिय विशाल होते हैं, वे किसी के साथ द्वेष नहीं करते और बुद्धिबल के ही सब ऐश्वर्य्य उनके अधीन हो जाते हैं ॥८॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

धनन्धनं जयेम

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (पवमानः) = हमारे जीवनों को पवित्र करता हुआ, हे सोम ! (सुवीर्यं अभि) = उत्तम वीर्य की ओर (अर्ष) = गतिवाला हो हमें तू सुवीर्य को प्राप्त करा । (उर्वी गव्यूतिम्) = विशाल मार्ग को प्राप्त करा । हम संकुचित मार्ग का आक्रमण करनेवाले न हों। (महि) = महान् (सप्रथः) = विस्मरण वाले (शर्म:) = सुख को तू प्राप्त करा । तेरे द्वारा हमें वह सुख प्राप्त हो जो कि उत्तरोत्तर वृद्धिवाला हो । [२] (नः) = हमारे (अस्य) = इस सोम का (परिषूतिः) = हिंसक (माकिः ईशत) = ईश न बने। काम, क्रोध, लोभ आदि सब वासनायें सोम के विनाश का कारण बनती हैं। वे इस सोम को नष्ट करनेवाली न हों। हे (इन्दो) = सोम ! हम (त्वया) = तेरे द्वारा, तेरे से शक्ति को प्राप्त करके (धनं धनम्) = प्रत्येक धन को- 'तेज, वीर्य, बल, ओज, विज्ञान व आनन्द' को जयेम जीतनेवाले हों। हम सब धनों के विजेता बनकर जीवन को 'धन्य' बना पायें।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुरक्षित सोम ही सब धनों के विजय का करानेवाला होता है ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पवमानः) सर्वपावकः परमात्मा (सुवीर्यं, उर्वीं) बलप्रदं विस्तृतमध्वानम् (गव्यूतिं) इन्द्रियाणां ज्ञानमार्गं दत्त्वा हे परमात्मन् ! त्वं (महि) महत् (सप्रथः) बृहत् (शर्म) सुखं (अभि, अर्ष) देहि। (इन्दो) सर्वप्रकाशकपरमेश्वर ! (परि, सूतिः, ईशत) कस्यापि द्वेष्टा (नः) अस्मान् (माकिः) मा कुरु। अथ च (त्वया) भवदुत्पादितं (अस्य) संसारस्य (धनन्धनं) सकलमैश्वर्यं (जयेम) वयं जयेम ॥८॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O Soma, pure, purifying and dynamic presence of peace and inspiring power, bring us holy strength and generosity, wide paths of possibility and progress, great expansive home of peace and joy. Let no violence and oppression of this world rule over us. Let us by your grace win the wealth of ultimate value.