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नाके॑ सुप॒र्णमु॑पपप्ति॒वांसं॒ गिरो॑ वे॒नाना॑मकृपन्त पू॒र्वीः । शिशुं॑ रिहन्ति म॒तय॒: पनि॑प्नतं हिर॒ण्ययं॑ शकु॒नं क्षाम॑णि॒ स्थाम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

nāke suparṇam upapaptivāṁsaṁ giro venānām akṛpanta pūrvīḥ | śiśuṁ rihanti matayaḥ panipnataṁ hiraṇyayaṁ śakunaṁ kṣāmaṇi sthām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नाके॑ । सु॒ऽप॒र्णम् । उ॒प॒प॒प्ति॒ऽवांस॑म् । गिरः॑ । वे॒नाना॑म् । अ॒कृ॒प॒न्त॒ । पू॒र्वीः । शिशु॑म् । रि॒ह॒न्ति॒ । म॒तयः॑ । पनि॑प्नतम् । हि॒र॒ण्यय॑म् । श॒कु॒नम् । क्षाम॑णि । स्था॒म् ॥ ९.८५.११

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:85» मन्त्र:11 | अष्टक:7» अध्याय:3» वर्ग:11» मन्त्र:6 | मण्डल:9» अनुवाक:4» मन्त्र:11


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वेनानां) उपासक लोगों की (पूर्वीः गिरः) बहुत सी वाणियें (उप अकृपन्त) उसकी स्तुति करती हैं, जो (नाके) सुख में (सुपर्णम्) अपनी चित्सत्ता से (उपपप्तिवांसम्) शब्दायमान होता है। शिशुम् श्यति सूक्ष्मं करोति प्रलयकाले इति शिशुः परमात्मा, जो प्रलयकाल में सब पदार्थों को सूक्ष्म करे, उसका नाम यहाँ शिशु है। उस परमात्मा को (मतयः) बुद्धियाँ (रिहन्ति) प्राप्त होती हैं। (पनिप्नतम्) जो शब्दायमान है (हिरण्ययम्) प्रकाशस्वरूप है और (शकुनम्) शक्नोति सर्व कर्तुमिति शकुनम्, जो सर्वशक्तिमान् हो, उसका नाम यहाँ शकुन है। (क्षामणि स्थाम्) जो क्षमा में स्थिर है ॥११॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा विद्वानों की वाणी द्वारा मनुष्यों के हृदय में प्रकाशित होता है, इसलिये मनुष्यों को चाहिये कि वे सदोपदेश द्वारा उसका ग्रहण करें ॥११॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

बुद्धि + स्तुति + ज्योति + शक्ति व मुक्ति

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (नाके) = सुखमय लोक में (उपपप्तिवांसम्) = प्राप्त कराते हुए (सुपर्णं) = हमारा उत्तमता से पालन व पूरण करते हुए सोम को (वेनानाम्) = मेधावी पुरुषों की (गिरः) = स्तुतिवाणियाँ (अकृपन्त) = प्राप्त होती हैं [उपकल्पन्ते अभिद्रवन्ति सा० ] । मेधावी पुरुष सोम का स्तवन करते हैं, सोम के गुणों का स्मरण करते हैं। ये (स्तुति वाणियां पूर्वी:) = उनका पालन व पूरण करती हैं, इनके कारण सोमरक्षण करते हुए वे शरीर का पालन व मन का पूरण कर पाते हैं । [२] (मतयः) = विचारशील पुरुष (रिहन्ति) = उस सोम का अपने साथ सम्पर्क करते हैं, जो (शिशुम्) = बुद्धि को तीव्र करनेवाला है, (पनित्नतम्) = हमें स्तुति की वृत्तिवाला बनाता है, (हिरण्ययम्) = ज्ञान की ज्योतिवाला है, (शकुनम्) = शक्तिशाली बनानेवाला है और (क्षामणि स्थाम्) = [क्षै, destructive ] शत्रुसंहार के कार्य में स्थित होनेवाला है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - हम सोम का साधन करें यह हमें 'बुद्धि-स्तुति - ज्योति व भक्ति' को प्राप्त कराके अन्ततः मुक्ति को प्राप्त करानेवाला होगा ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - यः स्वसत्तया विराजमानः, उपदेशकवचोभिः स्तूयते (वेनानां) उपासकानां (पूर्वीः गिरः) वाण्यः तं परमात्मानं (उप, अकृपन्त) अभिष्टुवन्ति कीदृशं (नाके) सुखे (सुपर्णं) स्वसत्तया विराजमानं (उपपप्तिवांसं) शब्दायमानं (शिशुं) श्यति सूक्ष्मं करोति प्रलयकाले चराचरं जगदिति शिशुः। तं शिशुं (मतयः) बुद्धयः (रिहन्ति) प्राप्नुवन्ति। कीदृशं तम्? (पनिप्नतम्) शब्दायमानं हिरण्ययं) प्रकाशस्वरूपं (शकुनं) सर्वशक्तिमन्तं (क्षामणि, स्थाम्) क्षमायां तिष्ठन्तम् ॥११॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Universal voices of the dedicated celebrants of old reach and adore the Soma spirit radiant and resounding in the heaven of freedom and showering on earth. The thoughts and prayers of the wise too reach and celebrate with love the adorable subtle presence of Soma, eloquent, golden great, omnipotent, pervasive on earth and settled in universal peace.