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ग॒न्ध॒र्व इ॒त्था प॒दम॑स्य रक्षति॒ पाति॑ दे॒वानां॒ जनि॑मा॒न्यद्भु॑तः । गृ॒भ्णाति॑ रि॒पुं नि॒धया॑ नि॒धाप॑तिः सु॒कृत्त॑मा॒ मधु॑नो भ॒क्षमा॑शत ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

gandharva itthā padam asya rakṣati pāti devānāṁ janimāny adbhutaḥ | gṛbhṇāti ripuṁ nidhayā nidhāpatiḥ sukṛttamā madhuno bhakṣam āśata ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ग॒न्ध॒र्वः । इ॒त्था । प॒दम् । अ॒स्य॒ । र॒क्ष॒ति॒ । पाति॑ । दे॒वाना॑म् । जनि॑मानि । अद्भु॑तः । गृ॒भ्णाति॑ । रि॒पुम् । नि॒ऽधया॑ । नि॒धाऽप॑तिः । सु॒कृत्ऽत॑माः । मधु॑नः । भ॒क्षम् । आ॒श॒त॒ ॥ ९.८३.४

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:83» मन्त्र:4 | अष्टक:7» अध्याय:3» वर्ग:8» मन्त्र:4 | मण्डल:9» अनुवाक:4» मन्त्र:4


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (गन्धर्वः) जो पृथिव्यादि लोक-लोकान्तरों को धारण करे, उसका नाम यहाँ गन्धर्व है। (इत्था) वह सत्यरूप परमात्मा (देवानां, जनिमानि) विद्वानों के जन्म की (रक्षति) रक्षा करता है। (अद्भुतः) बड़ा है (निधापतिः) सब शक्तियों का पति (निधया) अपनी शक्ति से (रिपुं) अपने से प्रतिकूल शक्तिवाले शत्रु को (गृभ्णाति) स्वाधीन करता है। (अस्य मधुनः पदं) इस आनन्दमय परमात्मा के पद को (सुकृत्तमाः) पुण्यात्मा लोग (भक्षं) भोग्य बनाकर (आशत) स्थिर होते हैं और वह उक्त उपासकों की (पाति) रक्षा करता है ॥४॥
भावार्थभाषाः - “तद्विष्णोः परमं पदं सदा पश्यन्ति सूरयः” उस विष्णु के परमपद को सदा विद्वान् लोग देखते हैं। उसी व्यापक परमात्मा के परमपद का इस मन्त्र में वर्णन किया है कि उस परमात्मा के उपासक लोग ब्रह्मानन्द को भोगते हैं, अन्य नहीं ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सोमरक्षण द्वारा दिव्यगुणों का विकास

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (गन्धर्वः) = ज्ञान की वाणियों को धारण करनेवाला पुरुष ही (अस्य) = इस सोम के (इत्थापदम्) = सत्यमार्ग का, शरीर में ऊर्ध्वगतिरूप मार्ग का (रक्षति) = रक्षण करता है। यह सुरक्षित सोम (देवानाम्) = दिव्यगुणों के (जनिमानि) = प्रादुर्भावों का पाति रक्षण करता है, अर्थात् दिव्यगुणों का विकास करता है। (अद्भुतः) = यह सोम वस्तुतः अनुपम वस्तु है । [२] यह (निधापतिः) = जालों का पति सोम (निधया) = जालों से (रिपुंगृभ्णाति) = काम, क्रोध आदि शत्रुओं को जकड़ लेता है। अर्थात् सुरक्षित सोम इन वासना रूप शत्रुओं को कैद कर लेता है। यही सोम की पवमानता है, पवित्रीकरण शक्ति है। (सुकृत्तमाः) = उत्तम पुण्यों को करनेवाले लोग (मधुनः भक्षम्) = इस ओषधि वनस्पतियों के भोजन से उत्पन्न हुए हुए सारभूत सोम के भक्षण को आशत [ प्राप्नुवन्ति] प्राप्त करते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुरक्षित सोम दिव्यगुणों का विकास करता है, काम, क्रोध आदि को कैद-सा करके जीवन को पवित्र बनाता है।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (गन्धर्वः) गां धरतीति गन्धर्वः पृथिव्यादिलोकलोकान्तराणां धारकः (इत्था) अयं सत्यनामसु पठितो निरुक्ते ३।१३।१०। सत्यस्वरूपः परमात्मा (देवानां जनिमानि) विदुषां जन्मानि (रक्षति) गोपायति। स परमेश्वरः (अद्भुतः) महानस्ति अद्भुत इति महन्नामसु पठितं निरुक्ते ३।१३।१३। (निधापतिः) सर्वशक्तीनां स्वामी (निधया) स्वशक्त्या (रिपुम्) स्वानुकूलशक्तिं (गृभ्णाति) स्वाधीनं करोति। (अस्य) अमुष्य (मधुनः) आनन्दमयस्य परमात्मनः (पदम्) पदं (सुकृत्तमाः) सुकृतितराः पुरुषाः (भक्षम्) भोगयोग्यं विधाय (आशत) तिष्ठन्ति। तथा पूर्वोक्तानुपासकान् (पाति) रक्षति ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - The true, eternal and marvellous sustainer of the universe wields and sustains its state of existence and sustains and promotes the evolution of divine refulgent stars and planets as well as the birth cycles of brilliant and generous people. Omnipotent power, it seizes the adverse forces and subdues them into systemic conformity. Devotees and yogis of holy action make it an object of experience in meditation and enjoy the honey sweets of its presence as spiritual food for elevation to the divinity.