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यं त्वा॑ वाजिन्न॒घ्न्या अ॒भ्यनू॑ष॒तायो॑हतं॒ योनि॒मा रो॑हसि द्यु॒मान् । म॒घोना॒मायु॑: प्रति॒रन्महि॒ श्रव॒ इन्द्रा॑य सोम पवसे॒ वृषा॒ मद॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yaṁ tvā vājinn aghnyā abhy anūṣatāyohataṁ yonim ā rohasi dyumān | maghonām āyuḥ pratiran mahi śrava indrāya soma pavase vṛṣā madaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यम् । त्वा॒ । वा॒जि॒न् । अ॒घ्न्याः । अ॒भि । अनू॑षत । अयः॒ऽहतम् । योनि॑म् । आ । रो॒ह॒सि॒ । द्यु॒ऽमान् । म॒घोना॑म् । आयुः॑ । प्र॒ऽति॒रत् । महि॑ । श्रव॑ । इन्द्रा॑य । सो॒म॒ । प॒व॒से॒ । वृषा॑ । मदः॑ ॥ ९.८०.२

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:80» मन्त्र:2 | अष्टक:7» अध्याय:3» वर्ग:5» मन्त्र:2 | मण्डल:9» अनुवाक:4» मन्त्र:2


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे परमात्मन् ! आप (मघोनाम्) उपासकों की (आयुः) आयु के (प्रतिरन्) बढ़ानेवाले हैं और (इन्द्राय) कर्म्मयोगी के लिये (महिश्रवः) बड़े बल के देनेवाले हैं। (मदः) सबके आह्लादक हैं और (वृषा) सब कामनाओं की वृष्टि करनेवाले हैं और (पवसे) पवित्र करते हैं। हे परमात्मन् ! (वाजिन्) हे बलस्वरूप ! (यं त्वा) जिस आपको (अघ्न्याः) प्रकृत्यादि अविनाशी शक्तियें (अभ्यनूषत) विभूषित करती हैं। (अयोहतम्) आप हिरण्यमय (योनिम्) स्थान को (आरोहसि) व्याप्त किये हुए हैं और (द्युमान्) प्रकाशस्वरूप हैं ॥२॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा इस हिरण्यमय प्रकृति-रूपी ज्योति का अधिकरण है। वा यों कहो कि इस हिरण्यमय प्रकृति ने उसके स्वरूप को आच्छादन किया है। इसी अभिप्राय से उपनिषद् में कहा है कि ‘हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्’ हिरण्यमय पात्र से परमात्मा का स्वरूप ढका हुआ है ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

अयोहतं योनिम् आरोहसि द्युमान्

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (वाजिन्) = शक्ति सम्पन्न सोम ! (यं त्वा) = जिस तुझ को (अघ्न्याः) = ये अहन्तव्य वेदवाणी रूप गौएं (अभ्यनूषत) = स्तुत करती हैं, वेदवाणी का सदा स्वाध्याय करना ही चाहिए, इसी से अहन्तव्य कहलाती है। इसमें सोम का स्तवन विस्तार से उपलब्ध होता है। यह सोम (द्युमान्) = ज्योतिर्मय है, ज्ञानाग्नि को दीप्त करनेवाला है, हे सोम ! द्युमान् होता हुआ तू (अयोहतम्) = लोहे से घड़े हुए, अर्थात् अत्यन्त दृढ़ (योनिम्) = इस अपने उत्पत्ति स्थानभूत शरीर में (आरोहसि) = आरोहण करता है । यह सोम ही तो शरीर को सुदृढ़ बनाता है । [२] (मघोनाम्) = यज्ञशील पुरुषों के (आयुः प्रतिरन्) = आयुष्य को बढ़ाता हुआ, हे सोम ! तू (इन्द्राय) = इस जितेन्द्रिय पुरुष के लिये (महि श्रवः) = महनीय ज्ञान को पवसे प्राप्त कराता है। तू (वृषा) = इस इन्द्र को शक्तिशाली बनाता है और (मदः) = उसके जीवन में उल्लास का जनक है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ-वेद सोम की महिमा का गायन करता है। [क] यह शरीर को दृढ़ बनाता है, [ख] मस्तिष्क को ज्योतिर्मय करता है, [ग] जीवन को वीर्य बनाता है, [घ] हमें शक्ति सम्पन्न करता हुआ उल्लास व आनन्द का जनक होता है।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे जगद्रक्षकपरमात्मन् ! भवान् (मघोनाम्) उपासकानां (आयुः) जीवनं (प्रतिरन्) वर्द्धयति अथ च (इन्द्राय) कर्मयोगिने (महिश्रवः) बलप्रदाता चास्ति। तथा (मदः) सकलजनाह्लादकोऽस्ति। अथ च (वृषा) कामनावर्षकस्त्वं (पवसे) पुनासि। हे चराचरजगदुत्पादक- परमेश्वर ! (वाजिन्) हे बलस्वरूप परमात्मन् ! (यं त्वा) यं भवन्तं (अघ्न्याः) प्रकृत्याद्यविनाशिन्यः शक्तयः (अभ्यनूषत) विभूषयन्ति। तथा (अयोहतम्) त्वं हिरण्यमयं (योनिम्) स्थानं (आरोहसि) व्याप्नोषि। अथ (द्युमान्) सर्वप्रकाशकोऽसि ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - You, O vibrant lord of omnipotence, whom all inviolable forces of nature and communities of humanity adore and exalt, rise in all your glory and manifest in the golden heart cave of the soul. O lord of infinite joy, you promote the health and age of the men of piety and prosperity. Bless Indra, the ruling soul with honour and high renown and shower boundless bliss upon humanity.$The ceaseless flow goes on.