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अ॒चो॒दसो॑ नो धन्व॒न्त्विन्द॑व॒: प्र सु॑वा॒नासो॑ बृ॒हद्दि॑वेषु॒ हर॑यः । वि च॒ नश॑न्न इ॒षो अरा॑तयो॒ऽर्यो न॑शन्त॒ सनि॑षन्त नो॒ धिय॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

acodaso no dhanvantv indavaḥ pra suvānāso bṛhaddiveṣu harayaḥ | vi ca naśan na iṣo arātayo ryo naśanta saniṣanta no dhiyaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒चो॒दसः॑ । नः॒ । ध॒न्व॒न्तु॒ । इन्द॑वः । प्र । सु॒वा॒नासः॑ । बृ॒हत्ऽदि॑वेषु । हर॑यः । वि । च॒ । नश॑न् । नः॒ । इ॒षः । अरा॑तयः । अ॒र्यः । न॒श॒न्त॒ । सनि॑षन्तन । धियः॑ ॥ ९.७९.१

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:79» मन्त्र:1 | अष्टक:7» अध्याय:3» वर्ग:4» मन्त्र:1 | मण्डल:9» अनुवाक:4» मन्त्र:1


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अचोदसः) स्वतन्त्र परमात्मा, जो किसी से प्रेरणा नहीं किया जाता, वह (नः) हमको (प्रधन्वन्तु) प्राप्त हो। वह परमात्मा (इन्दवः) सर्वैश्वर्य्ययुक्त है, (सुवानासः) सर्वोत्पादक है, (हरयः) दुष्टों के हरण करनेवाला है, (बृहत् दिवेषु) आध्यात्मिकादि तीनों प्रकार के यज्ञों में हमारी रक्षा करे और (नः) हमारे (इषोऽरातयः) ऐश्वर्य के विनाशक (विनशन्) नाश करके (अर्य्यः) शत्रुओं को (नशतम्) नष्ट करे, हमको ऐश्वर्य्य दे और (नो धियः) हमारे कर्म्मों को (सनिषन्त) शुद्ध करे ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो लोग परमात्मपरायण होकर अपने कर्म्मों का शुभ रीति से अनुष्ठान करते हैं, परमात्मा उनकी सदैव रक्षा करते हैं अर्थात् वे लोग आध्यात्मिक, आधिभौतिक तथा आधिदैविक तीनों प्रकार के यज्ञों से अपनी तथा अपने समाज की उन्नति करते हैं ॥१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

अचोदसः इन्दवः

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (अचोदसः) = अप्रेरित, अर्थात् (स्थिर) = वासनाओं से न हिलाये हुए, (इन्दवः) = सोमकण (नः धन्वन्तु) = हमें प्राप्त हों । (प्र सुवानासः) = प्रकर्षेण उत्पन्न किये जाते हुए ये सोम (बृहद् दिवेषु) = प्रभूत ज्योतिवाले, ज्ञान प्रधान मनुष्यों में (हरयः) = ये सब दुःखों का हरण करनेवाले होते हैं । [२] (च) = और इस सोम के रक्षण से (नः) = हमें (इषः) = हृदयस्थ प्रभु से दी गई प्रेरणाएँ (वि-नशन्) = विशेषरूप से प्राप्त हों [नश्- [To reach ] ] । (अरातय:) = न देने की भावनाएँ व (अर्य:) = शत्रुत्व की भावनाएँ (नशन्त) = भाग जाएँ। (नः) = हमें (धियः) = बुद्धिपूर्वक किये जानेवाले कर्म (सनिषन्त) = सेवन करें, प्राप्त हों । अर्थात् हम सदा बुद्धिपूर्वक कर्मों को करनेवाले बनें ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोम हमारे अन्दर सुरक्षित होकर हमारे रोगादि का हरण करनेवाला हो। इसके रक्षण से पवित्र हृदय में हमें प्रभु प्रेरणाएँ सुनायी पड़ें। अदान की भावना व वासनाएँ दूर हों । हम बुद्धिपूर्वक कर्म करनेवाले हों।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अचोदसः) स्वतन्त्रः परमात्मा (नः) अस्मान् (प्रधन्वन्तु) प्राप्नोतु, स परमेश्वरः (इन्दवः) सर्वैश्वर्ययुक्तः (सुवानासः) सर्वोत्पादकः (हरयः) हरणशीलः (बृहत् दिवेषु) बृहद् यज्ञेषु अस्मान् रक्षतु (च) किञ्च ये (नः) अस्माकं (इषोऽरातयः) ऐश्वर्य्यस्य विनाशकाः तान् (विनशन्) नाशयतु (नः) अस्माकं (अर्य्यः) शत्रवः (नशतम्) विनश्यन्तु (नो धियः) यान्यस्माकं कर्म्माणि तानि (सनिषन्त) शोधयन्तु। अत्र बहुलं छन्दसीत्यनेन सूत्रेण बहुवचनस्य स्थाने एकवचनम् ॥१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - May the bright and blissful soma streams of divinity, self-moved and self-inspired, life-giving, gracious dispellers of darkness and suffering, inspire us to move forward in the vast yajnas of celestial proportions. Let the enemies of our food and energy perish. Let the saboteurs be destroyed. Let our hopes and plans be realised and fulfilled.