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अ॒यं नो॑ वि॒द्वान्व॑नवद्वनुष्य॒त इन्दु॑: स॒त्राचा॒ मन॑सा पुरुष्टु॒तः । इ॒नस्य॒ यः सद॑ने॒ गर्भ॑माद॒धे गवा॑मुरु॒ब्जम॒भ्यर्ष॑ति व्र॒जम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ayaṁ no vidvān vanavad vanuṣyata induḥ satrācā manasā puruṣṭutaḥ | inasya yaḥ sadane garbham ādadhe gavām urubjam abhy arṣati vrajam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒यम् । नः॒ । वि॒द्वान् । व॒न॒व॒त् । व॒नु॒ष्य॒तः । इन्दुः॑ । स॒त्राचा॑ । मन॑सा । पु॒रु॒ऽस्तु॒तः । इ॒नस्य॑ । यः । सद॑ने । गर्भ॑म् । आ॒ऽद॒धे । गवा॑म् । उ॒रु॒ब्जम् । अ॒भि । अर्ष॑ति । व्र॒जम् ॥ ९.७७.४

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:77» मन्त्र:4 | अष्टक:7» अध्याय:3» वर्ग:2» मन्त्र:4 | मण्डल:9» अनुवाक:4» मन्त्र:4


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अयम्) यह जो (नः) हमारे मध्य में (विद्वान्) विद्वान् है, वह (वनुष्यतः) हमारे शत्रुओं को (सत्राचा मनसा) समाहित मन से (वनवत्) नाश कर सकता है और वह परमात्मा (इन्दुः) प्रकाशस्वरूप है (पुरुष्टुतः) तथा माननीय है। (यः) जो पुरुष (इनस्य) ईश्वर की (सदने) सन्निधि में (गर्भम्) शिक्षा को (आदधे) धारण करता है, वह (गवाम्) इन्द्रियों के (व्रजम्) फल को (उरुब्जम्) जो सर्वोपरि है, उसको (अभ्यर्षति) प्राप्त होता है ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वान् इश्वरीयज्ञान पर विश्वास करता है, वह मनुष्यजन्म के फल को प्राप्त करता है ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

गवां उरुब्जमभ्यर्षति व्रजम्

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (अयम्) = यह (इन्दुः) = सोम (नः) = हमारे (वनुष्यतः) = हनन की कामनावाले शत्रुओं को (विद्वान्) = जानता हुआ (वनवत्) = उन्हें नष्ट करता है । सोमरक्षण से काम-क्रोध आदि शत्रुओं का विनाश हो जाता है । यह सोम शत्रु विनाश करके (सत्राचा) = [सह अञ्चता] आत्मा के साथ गतिवाले, विषयों में इधर-उधर न भटकते हुए, (मनसा) = मन से (पुरुष्टुतः) = खूब ही स्तवनवाला होता है । [२] (इनस्य) = स्वामी के, अपनी इन्द्रियों को वश में करनेवाले के (सदने) = इस शरीर रूप गृह में स्थित यज्ञवेदि तुल्य हृदय स्थली में (गर्भम्) = सभी के अन्दर रहनेवाले गर्भरूप प्रभु को (यः) = जो (आदधे) = स्थापित करता है, वह सोम (गवाम्) = वेदवाणियों के उस (व्रजम्) = समूह को (अभ्यर्षति) = आभिमुख्येन प्राप्त होता है, जो (उरुब्जम्) = [उरु अप् ज ] विशाल कर्मों को जन्म देनेवाला है। वेदवाणी का अध्ययन करनेवाला कभी संकुचित कर्मों को नहीं करता ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोम हमारे हिंसक शत्रुओं को विनष्ट करता है, हमारे मनों को विषयों में भटकने से बचाता है, हमें विशाल कर्मों के करनेवाला वैदिक जीवन देता है ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अयम्) असौ यः (नः) अस्माकं मध्ये (विद्वान्) मनीष्यस्ति सः (वनुष्यतः) अस्माकं शत्रून् (सत्राचा मनसा) समाहितमनसा (वनवत्) नाशयतु। स परमात्मा (इन्दुः) प्रकाशस्वरूपोऽस्ति। तथा (पुरुष्टुतः) मान्योऽस्ति (यः) यो जनः (इनस्य) ईश्वरस्य (सदने) सन्निधौ (गर्भम्) शिक्षां (आदधे) दधाति सः (गवाम्) इन्द्रियाणां (व्रजम्) फलानि (उरुब्जम्) यानि श्रेष्ठतराणि सन्ति तानि (अभ्यर्षति) प्राप्नोति ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - This our sagely scholar, brilliant and generous, widely admired and adored, loving the loving and dispelling the violent with a disciplined and concentrated mind, who has received the eternal seed of knowledge in the presence of the glorious lord of divinity, proceeds to the highest abundant origin of the mind and senses and moves further forward.