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ते न॒: पूर्वा॑स॒ उप॑रास॒ इन्द॑वो म॒हे वाजा॑य धन्वन्तु॒ गोम॑ते । ई॒क्षे॒ण्या॑सो अ॒ह्यो॒३॒॑ न चार॑वो॒ ब्रह्म॑ब्रह्म॒ ये जु॑जु॒षुर्ह॒विर्ह॑विः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

te naḥ pūrvāsa uparāsa indavo mahe vājāya dhanvantu gomate | īkṣeṇyāso ahyo na cāravo brahma-brahma ye jujuṣur havir-haviḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ते । नः॒ । पूर्वा॑सः । उप॑रासः । इन्द॑वः । म॒हे । वाजा॑य । ध॒न्व॒न्तु॒ । गोऽम॑ते । ई॒क्षे॒ण्या॑सः । अ॒ह्यः॑ । न । चार॑वः । ब्रह्म॑ऽब्रह्म । ये । जु॒जु॒षुः । ह॒विःऽह॑विः ॥ ९.७७.३

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:77» मन्त्र:3 | अष्टक:7» अध्याय:3» वर्ग:2» मन्त्र:3 | मण्डल:9» अनुवाक:4» मन्त्र:3


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) पूर्वोक्त विद्वान् (नः) जो हमारे (पूर्वासः) पूर्वज (उपरासः) और जो भविष्य में होनेवाले हैं, (इन्दवः) वे ज्ञानी (महे गोमते) बड़े ज्ञान के लिये और (वाजाय) बल के लिये (धन्वन्तु) उस परमात्मा को प्राप्त हों और (ये) जो (ब्रह्म ब्रह्म) ब्रह्मप्राप्ति के लिये और (हविर्हविः) हवि के लिए (जुजुषुः) सेवन करते हैं, वे (चारवो न) श्रेष्ठ लोगों के समान (अह्यः) सुन्दर और (ईक्षेण्यासः) दर्शनीय होते हैं ॥३॥
भावार्थभाषाः - प्राचीन और अर्वाचीन अर्थात् पुराने और नये दोनों प्रकार के विद्वान् जो वेद को ईश्वर प्राप्ति के लिये पढ़ते हैं और हवनादि यज्ञों को कर्म्मकाण्ड के लिये करते हैं, वे इस संसार में दर्शनीय और सदाचार फैलाने के हेतु होते हैं, अन्य नहीं ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

महे वाजाय धन्वन्तु गोमते

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (ते) = वे (उपरासः) = [ nearer] हमारे अधिक समीप होते हुए, हमारे अन्दर सुरक्षित होते हुए, (इन्दवः) = सोमकण (नः) = हमारे (पूर्वासः) = पालन व पूरण करनेवाले हैं। ये सोमकण (महे) = महान् (गोमते) = प्रशस्त ज्ञान की वाणियोंवाले (वाजाय) = बल के धन्वन्तु प्राप्त हों। इन सोमकणों के रक्षण से हमें ज्ञान व बल प्राप्त हो। [२] (ईक्षेण्यासः) = ये सोम ईक्षणीय, ईक्षण में उत्तम, वस्तुतत्त्व को समझने में उत्कृष्ट हैं, इन्हीं से तो बुद्धि सूक्ष्म होकर सूक्ष्म तत्त्वों का ज्ञान प्राप्त करती है । (अह्यः न) [a milch cow] = दुधार गौवों के समान (चावः) = ये सोम सुन्दर हैं । जैसे वे गौवें खूब ही दूध देती हैं, उसी प्रकार ये सोम भी खूब ही ज्ञानदुग्ध को देनेवाले हैं। सोमकण वे हैं, (ये) = जो (ब्रह्मब्रह्म) = प्रत्येक ज्ञान का (जुजुषुः) = सेवन करते हैं और (हविः हविः) = प्रत्येक त्याग का सेवन करनेवाले होते हैं। सोमरक्षण से मस्तिष्क में ज्ञान तथा हृदय में त्याग होता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - शरीर में सुरक्षित सोम जहाँ महान् बल को प्राप्त कराते हैं, वहाँ हृदय में त्याग वृत्ति को तथा मस्तिष्क में ज्ञान को स्थापित करते हैं ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) पूर्वोक्ता विद्वांसो ये (नः) अस्माकं (पूर्वासः) पूर्वजाः सन्ति तथा (उपरासः) ये भविष्यन्ति ते (इन्दवः) ज्ञानिनः (महे गोमते) महते ज्ञानाय अथ च (वाजाय) बलाय (धन्वन्तु) तं परमात्मानं प्राप्नुवन्तु। अथ च (ये) ये (ब्रह्म ब्रह्म) ब्रह्मप्राप्तये (हविर्हविः) तथा हविष्यार्थं (जुजुषुः) संसेवन्ते ते (चारवो न) श्रेष्ठजना इव (अह्यः) सुरूपाः (ईक्षेण्यासः) दर्शनीयाश्च भवन्ति ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - May those ancients of vision and the later ones present and future blest with light and power, inspire us to win new prizes of great advancement and victory rich in wealth and advancement. May they, thinkers and seekers, generous and sublime like clouds of rain showers, who meditate on the essence of vast existence and offer the essence of sacred oblations of yajnic fragrances with love and faith, inspire us.