पदार्थान्वयभाषाः - [१] (ते) = वे (उपरासः) = [ nearer] हमारे अधिक समीप होते हुए, हमारे अन्दर सुरक्षित होते हुए, (इन्दवः) = सोमकण (नः) = हमारे (पूर्वासः) = पालन व पूरण करनेवाले हैं। ये सोमकण (महे) = महान् (गोमते) = प्रशस्त ज्ञान की वाणियोंवाले (वाजाय) = बल के धन्वन्तु प्राप्त हों। इन सोमकणों के रक्षण से हमें ज्ञान व बल प्राप्त हो। [२] (ईक्षेण्यासः) = ये सोम ईक्षणीय, ईक्षण में उत्तम, वस्तुतत्त्व को समझने में उत्कृष्ट हैं, इन्हीं से तो बुद्धि सूक्ष्म होकर सूक्ष्म तत्त्वों का ज्ञान प्राप्त करती है । (अह्यः न) [a milch cow] = दुधार गौवों के समान (चावः) = ये सोम सुन्दर हैं । जैसे वे गौवें खूब ही दूध देती हैं, उसी प्रकार ये सोम भी खूब ही ज्ञानदुग्ध को देनेवाले हैं। सोमकण वे हैं, (ये) = जो (ब्रह्मब्रह्म) = प्रत्येक ज्ञान का (जुजुषुः) = सेवन करते हैं और (हविः हविः) = प्रत्येक त्याग का सेवन करनेवाले होते हैं। सोमरक्षण से मस्तिष्क में ज्ञान तथा हृदय में त्याग होता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - शरीर में सुरक्षित सोम जहाँ महान् बल को प्राप्त कराते हैं, वहाँ हृदय में त्याग वृत्ति को तथा मस्तिष्क में ज्ञान को स्थापित करते हैं ।