वांछित मन्त्र चुनें

शूरो॒ न ध॑त्त॒ आयु॑धा॒ गभ॑स्त्यो॒: स्व१॒॑: सिषा॑सन्रथि॒रो गवि॑ष्टिषु । इन्द्र॑स्य॒ शुष्म॑मी॒रय॑न्नप॒स्युभि॒रिन्दु॑र्हिन्वा॒नो अ॑ज्यते मनी॒षिभि॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śūro na dhatta āyudhā gabhastyoḥ svaḥ siṣāsan rathiro gaviṣṭiṣu | indrasya śuṣmam īrayann apasyubhir indur hinvāno ajyate manīṣibhiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

शूरः॑ । न । ध॒त्ते॒ । आयु॑धा । गभ॑स्त्योः । स्व१॒॑रिति॑ स्वः॑ । सिसा॑सन् । र॒थि॒रः । गोऽइ॑ष्टिषु । इन्द्र॑स्य । शुष्म॑म् । ई॒रय॑न् । अ॒प॒स्युऽभिः॑ । इन्दुः॑ । हि॒न्वा॒नः । अ॒ज्य॒ते॒ । म॒नी॒षिऽभिः॑ ॥ ९.७६.२

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:76» मन्त्र:2 | अष्टक:7» अध्याय:3» वर्ग:1» मन्त्र:2 | मण्डल:9» अनुवाक:4» मन्त्र:2


0 बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्दुः) सर्वप्रकाशक परमात्मा (मनीषिभिः) ज्ञानयोगियों द्वारा (अज्यते) ध्यानविषय किया जाता है। (अपस्युभिः) कर्मयोगियों द्वारा (हिन्वानः) प्रेरणा किया हुआ तथा (इन्द्रस्य) कर्मयोगी के (शुष्मम्) बल को (ईरयन्) प्रेरणा करता हुआ (शूरः न) शूरवीर के समान (गभस्त्योः) अपने कर्म और ज्ञानरूप शक्ति में (आयुधा) सृष्टि के करणोपकरणरूप आयुधों को (धत्त) धारण करता है। (स्वः) वह सुखस्वरूप परमात्मा (गविष्टिषु) प्रजाओं में (सिषासन्) विभाग करने की इच्छा से (रथिरः) गतिस्वरूप परमात्मा अपनी गति से सर्वत्र परिपूर्ण होता है ॥२॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा कर्मों के फल देने के अभिप्राय से सर्वत्र सृष्टि में अपनी न्यायरूपी शक्ति से सम्पूर्ण प्रजा में विराजमान होकर कर्मों के यथायोग्य फल देता है ॥२॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

रथिर: गविष्टिषु

पदार्थान्वयभाषाः - [१] यह सोम हमारे जीवनों में (शूरः न) = रथ शूरवीर के समान (गभस्त्योः) = भुजाओं में (आयुधा) = शस्त्रों को धत्ते धारण करता है। शूरवीर शस्त्रों के द्वारा शत्रुओं का शातन करता है, इसी प्रकार यह सोम, शरीरस्थ रोग आदि शत्रुओं का संहार करता है । (स्वः) = स्वयं देदीप्यमान ज्योति प्रभु को (शिषासन्) = सम्भजन की कामनावाला होता हुआ यह सोम (गविष्टिषु) = ज्ञान-यज्ञों में (रथिरः) = उत्तम रथवाला होता है। शरीर को स्वस्थ बनाता हुआ यह सोम हमें ज्ञानयुक्त करता है । सुरक्षित सोम शरीर में 'शूरः न', मन में 'स्वः सिषासन्' तथा मस्तिष्क में 'रथि गविष्टिषु' है । [२] यह सोम (इन्द्रस्य) = जितेन्द्रिय पुरुष के (शुष्मम्) = बल को (ईरयन्) = प्रेरित करता है। (अपस्युभिः) = कर्मशील पुरुषों से (इन्दुः) = यह सोम (हिन्वानः) = प्रेरित किया जाता है, कर्मशील पुरुष ही इसका रक्षण कर पाते हैं। यह (मनीषिभिः) = बुद्धिमान् पुरुषों से अज्यते शरीर में अलंकृत किया जाता है। इस प्रकार सोमरक्षण के तीन साधन हैं- [क] जितेन्द्रियता [इन्द्र], [ख] कर्मशीलता [अपस्यु], [ग] स्वाध्यायशीलता द्वारा बुद्धि को बलवान् बनाना [मनीषी] ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें शूर- प्रभु का उपासक व ज्ञानी बनाता है। 'जितेन्द्रियता, कर्मशीलता व स्वाध्याय' इसके रक्षण के साधन हैं ।
0 बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्दुः) सर्वप्रकाशकः परमेश्वरः (मनीषिभिः) ज्ञानयोगिभिः (अज्यते) साक्षात्क्रियते। तथा (अपस्युभिः) कर्मयोगिभिः (हिन्वानः) प्रेर्यमाणः अथ च (इन्द्रस्य) कर्मयोगिनः (शुष्मम्) बलं (ईरयन्) प्रेरयन् (शूरः न) शूर इव (गभस्त्योः) स्वकीयकर्मरूप-ज्ञानरूपशक्त्योः (आयुधा) सृष्टेः करणोपकरणरूपाण्यायुधानि (धत्त) दधाति। (स्वः) सुखस्वरूपः परमात्मा (गविष्टिषु) प्रजासु (सिषासन्) सम्भक्तुमिच्छया (रथिरः) गतिस्वरूपः स परमात्मा स्वकीयगत्या सर्वत्र परिपूर्णो भवति ॥२॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Wielding the powers and instrumentalities of nature, like a warrior and victor in immanent will and omniscience, keen to share the joy of existence with humanity in paths of daily business, commanding the chariot of the universe in micro and macro systems of its dynamics, inspiring and elevating the soul’s potential, itself stimulated and energised into manifestation by thinkers and men of yajnic action in meditation, the spirit of universal light and glory is aroused to raise and bless humanity.