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अद्रि॑भिः सु॒तो म॒तिभि॒श्चनो॑हितः प्ररो॒चय॒न्रोद॑सी मा॒तरा॒ शुचि॑: । रोमा॒ण्यव्या॑ स॒मया॒ वि धा॑वति॒ मधो॒र्धारा॒ पिन्व॑माना दि॒वेदि॑वे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

adribhiḥ suto matibhiś canohitaḥ prarocayan rodasī mātarā śuciḥ | romāṇy avyā samayā vi dhāvati madhor dhārā pinvamānā dive-dive ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अद्रि॑ऽभिः । सु॒तः । म॒तिऽभिः । चनः॑ऽहितः । प्र॒ऽरो॒चय॑न् । रोद॑सी॒ इति॑ । मा॒तरा॑ । शुचिः॑ । रोमा॑णि । अव्या॑ । स॒मया॑ । वि । धा॒व॒ति॒ । मधोः॑ । धारा॑ । पिन्व॑माना । दि॒वेऽदि॑वे ॥ ९.७५.४

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:75» मन्त्र:4 | अष्टक:7» अध्याय:2» वर्ग:33» मन्त्र:4 | मण्डल:9» अनुवाक:4» मन्त्र:4


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (रोदसी मातरा) इस संसार के मातापितावत् वर्त्तमान जो द्युलोक और पृथिवीलोक हैं, उनको (प्ररोचयन्) प्रकाश करता हुआ (च) और (मतिभिः अद्रिभिः) ज्ञानरूपी चित्तवृत्तियों से (सुतः) संस्कृत और (चनोहितः) सबका हितकारी (शुचिः) शुद्धस्वरूप परमात्मा (समया) सब ओर से (रोमाण्यव्या) सब पदार्थों की रक्षा करता हुआ (विधावति) विशेषरूप से गति करता है। (दिवेदिवे) प्रतिदिन (मधोः धारा) अमृतवृष्टि से (पिन्वमाना) पुष्ट करता है ॥४॥
भावार्थभाषाः - द्युलोक और पृथिव्यादि लोक-लोकान्तरों का प्रकाशक परमात्मा अपनी सुधामयी-वृष्टि से सदैव पवित्र करता है ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

मतिभिः अद्रिभिः सुतः

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (मतिभिः) = मननशील (अद्रिभिः) = उपासकों से [adore] (सुत:) = अपने अन्दर उत्पन्न किया गया (चनो हितः) = हितकर सोम्य अन्नवाला यह सोम (मातरा) = हमारे माता-पिता के समान (रोदसी) = द्यावापृथिवी को, मस्तिष्क व शरीर को (प्ररोचयन्) दीप्त करता हुआ यह सोम है। (शुचिः) = यह पवित्र हैं, हमारे जीवन को पवित्र करनेवाला है। [२] यह (अव्या) = रक्षण में उत्तम (रोमाणि समया) = [रु शब्दे] स्तुति शब्दों के समीप होता हुआ (विधावति) = हमारा विशेषरूप से शोधन करता है। हमें स्तुति की प्रवृत्तिवाला बनाता है और इस प्रकार हमारे जीवन को शुद्ध करता है । इस सोमरक्षण से हमारे जीवन में (दिवे दिवे) = दिन व दिन (मधोः धारः) = माधुर्य की धारा (पिन्वमाना) = वृद्धि को प्राप्त होती है। यह सोम जीवन को अधिकाधिक मधुर बनाता चलता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोमरक्षण के लिये साधन हैं, [क] मननपूर्वक प्रभु स्तवन व [ख] सोम्य अन्नों का सेवन । सुरक्षित सोम के लाभ हैं, [क] मस्तिष्क व शरीर की पवित्रता, [ख] दिन व दिन माधुर्य की वृद्धि ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (रोदसी मातरा) अस्य संसारस्य मातृवत् पितृवत् वर्तमानौ द्युलोक-भूलोकौ तौ (प्ररोचयन्) प्रकाशयन् (च) अथ च (मतिभिः अद्रिभिः) ज्ञानरूपचित्तवृत्तिभिः (सुतः) संस्कृतस्तथा (चनोहितः) सर्वहितकारी (शुचिः) शुद्धस्वरूपः परमेश्वरः (समया) सर्वतः (रोमाण्यव्या) निखिलपदार्थान् रक्षयन् (विधावति) विशेषरूपेण गच्छति। (दिवेदिवे) अहरहः (मधोः धारा) अमृतवर्षणेन (पिन्वमाना) पुष्णाति ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Distilled in essence and presence in the heart, realised in bliss by veteran wise, pure, immaculate and brilliant, illuminating mother earth and mother heavens of life and existence, Soma radiates, blessing sacred hearts in communion and augmenting systemic unions of existence all round flowing in streams of honey joy.