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प्र॒त्नान्माना॒दध्या ये स॒मस्व॑र॒ञ्छ्लोक॑यन्त्रासो रभ॒सस्य॒ मन्त॑वः । अपा॑न॒क्षासो॑ बधि॒रा अ॑हासत ऋ॒तस्य॒ पन्थां॒ न त॑रन्ति दु॒ष्कृत॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pratnān mānād adhy ā ye samasvarañ chlokayantrāso rabhasasya mantavaḥ | apānakṣāso badhirā ahāsata ṛtasya panthāṁ na taranti duṣkṛtaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र॒त्नात् । माना॑त् । अधि॑ । आ । ये । स॒म्ऽअस्व॑रन् । श्लोक॑ऽयन्त्रासः । र॒भ॒सस्य॑ । मन्त॑वः । अप॑ । अ॒न॒क्षासः॑ । ब॒धि॒राः । अ॒हा॒स॒त॒ । ऋ॒तस्य॑ । पन्था॑म् । न । त॒र॒न्ति॒ । दुः॒ऽकृतः॑ ॥ ९.७३.६

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:73» मन्त्र:6 | अष्टक:7» अध्याय:2» वर्ग:30» मन्त्र:1 | मण्डल:9» अनुवाक:4» मन्त्र:6


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अनक्षासः) अज्ञानी लोग (बधिराः) जो हितोपदेश को भी नहीं सुन सकते, वे (ऋतस्य पन्थाम्) सचाई के मार्ग को (अपाहासत) छोड़ देते हैं। (दुष्कृतः) वे दुष्टाचारी इस भवसागर की लहर को (न तरन्ति) नहीं तर सकते। और (ये) जो (प्रत्नान्मानात्) प्राचीन आप्त-पुरुष से (अध्या) आये हुए उपदेशों को  (समस्वरन्) पालन करते हुए (श्लोकयन्त्रासः) सत्पुरुषों की संगति में रहनेवाले हैं तथा (रभसस्य मन्तवः) परमात्मा की आज्ञा माननेवाले हैं, वे इस भवसागर की लहर को तर जाते हैं ॥६॥
भावार्थभाषाः - जो लोग आप्त-पुरुषों के वाक्यों पर विश्वास करते हैं और सामाजिक बल को धारण करते हैं, परमात्मा उनकी सदैव रक्षा करता है ॥६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

न तरन्ति दुष्कृतः

पदार्थान्वयभाषाः - [१] 'मा' धातु 'प्रमाता प्रमाण प्रमेय' आदि शब्दों में 'ज्ञान' इस अर्थ की वाचक है। 'मान' है। प्रभु सनातन गुरु होने से 'प्रत्नमान' हैं । ये जो लोग (प्रत्नात् मानात्) = उस गुरुओं के गुरु, सनातन गुरु प्रभु से (अधि आ समस्वरन्) = आधिक्येन खूब ही ज्ञान को प्राप्त करते हैं, वे (श्लोकयंत्रासः) = इन छन्दोबद्ध वेदवाणियों के द्वारा अपने जीवन का नियंत्रण करते हैं । (रभसस्य) = शक्ति के पुञ्ज उस प्रभु का (मन्तवः) = मनन करनेवाले होते हैं । [२] इनके विपरीत (अनक्षासः) = प्रभु को न देखनेवाले (बधिराः) = प्रभु की वाणियों को न सुननेवाले लोग (ऋतस्य पन्थाम्) = सत्य व यज्ञ के मार्ग को (अप अहासत) = सुदूर छोड़नेवाले होते हैं, धर्ममार्ग से ये दूर हो जाते हैं। ये (दुष्कृतः) = अशुभ कर्मों में प्रवृत्त लोग (न तरन्ति) = कभी तैरते नहीं । ये भवसागर में डूबते ही हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - हम हृदयस्थ प्रभु से ज्ञान प्राप्त करें। उस ज्ञान के अनुसार जीवन का नियन्त्रण करें । प्रभु के न देखनेवाले [न ध्यान करनेवाले] प्रभु की वाणी को न सुननेवाले लोग ऋत के मार्ग से विचलित हो जाते हैं । ये दुष्कृत लोग कभी भवसागर को तैरते नहीं ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अनक्षासः) अज्ञानिनो जनाः (बधिराः) ये हितमप्युपदेशं न शृण्वन्ति ते (ऋतस्य) सत्यस्य (पन्थाम्) मार्गं (अपाहासत) उज्झन्ति। (दुष्कृतः) ते दुष्टाचारिणोऽस्य भवसागरस्योर्मिं (न तरन्ति) तरितुं न शक्नुवन्ति। अथ च (ये) ये नराः (प्रत्नान्मानात्) प्राचीनादाप्तपुरुषात् (अध्या) आगतान् उपदेशान् (समस्वरन्) पालयन्तः (श्लोकयन्त्रासः) सज्जनैः सङ्गतास्सन्ति तथा (रभसस्य मन्तवः) परमात्माज्ञापालकास्तेऽस्य भवसागरस्योर्मिं तरन्ति ॥६॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Soma souls that act in unison with faith in eternal values, who are self-controlled by the divine Word and follow the spirit of lord Almighty pursue the path of universal law and reach the divine destination. But men of negative disposition see not what they see and hear not what they hear, abandon the path of truth and fail to reach the divine destination of life.