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स तू प॑वस्व॒ परि॒ पार्थि॑वं॒ रज॑: स्तो॒त्रे शिक्ष॑न्नाधून्व॒ते च॑ सुक्रतो । मा नो॒ निर्भा॒ग्वसु॑नः सादन॒स्पृशो॑ र॒यिं पि॒शङ्गं॑ बहु॒लं व॑सीमहि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa tū pavasva pari pārthivaṁ rajaḥ stotre śikṣann ādhūnvate ca sukrato | mā no nir bhāg vasunaḥ sādanaspṛśo rayim piśaṅgam bahulaṁ vasīmahi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः । तु । प॒व॒स्व॒ । परि॑ । पार्थि॑वम् । रजः॑ । स्तो॒त्रे । शिक्ष॑न् । आ॒ऽधू॒न्व॒ते । च॒ । सु॒क्र॒तो॒ इति॑ सुऽक्रतो । मा । नः॒ । निः । भा॒क् । वसु॑नः । सा॒द॒न॒ऽस्पृशः॑ । र॒यिम् । पि॒शङ्ग॑म् । ब॒हु॒लम् । व॒सी॒म॒हि॒ ॥ ९.७२.८

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:72» मन्त्र:8 | अष्टक:7» अध्याय:2» वर्ग:28» मन्त्र:3 | मण्डल:9» अनुवाक:4» मन्त्र:8


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सुक्रतो) हे शोभनयज्ञेश्वर परमात्मन् ! (सः) वह पूर्वोक्त आप (तु) शीघ्र (पार्थिवम्) पृथिवीलोक और (रजः) अन्तरिक्षलोक के (परि) चारों ओर (पवस्व) हमको पवित्र करें और (आ धून्वते स्तोत्रे) कम्पायमान हुए तथा स्तुति करते हुए मुझको (शिक्षन्) शिक्षा करते हुए आप पवित्र करें और (सादनस्पृशः) घर के शोभाभूत (वसुनः) जो धन है, उससे (नः) हमको (मा निः भाक्) वियुक्त मत करिये। इस लिये (पिशङ्गं) स्वर्णादियुत (बहुलं रयिम्) बहुत धन को (वसीमहि) हम लोग प्राप्त हों ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे परमात्मन् ! आपकी कृपा से हम लोग पृथिवी तथा अन्तरिक्षलोक के चारों ओर परिभ्रमण करें और नाना प्रकार के धनों को प्राप्त करें ॥८॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

ज्ञान व शक्ति रूप धन

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (सुक्रतो) = शोभनप्रज्ञ व शोभनशक्ते सोम ! (सः) = वह (तु) = तो (पार्थिवं रजः) = इस पार्थिव लोक को (परिपवस्व) = चारों ओर प्राप्त हो । अर्थात् तेरा शरीर में ही व्यापन हो । तू (स्तोत्रे) = स्तोता के लिये (च) = और (आधुन्वते) = वासनाओं को अपने से कम्पित करके दूर करनेवाले के लिये (शिक्षन्) = [धनादिकं प्रयच्छन्] शक्ति व ज्ञान रूप धन को देनेवाला हो। शरीर में व्याप्त हुआ-हुआ सोम हमें सशक्त बनाता है। यही सोम ज्ञानाग्नि का ईंधन बनकर हमारे ज्ञान को बढ़ाता है । [२] हे सोम ! तू (नः) = हमें (सादनस्पृशः) = इस शरीर रूप गृह के साथ सम्पर्कवाले (वसुनः) = शक्ति व ज्ञानरूप धन से (मा निर्भाक्) = पृथक् मत कर। हे सोम ! हम तेरे रक्षण से (पिशंगं) [पिश् To adorn, decorate] = जीवन को अलंकृत करनेवाले (बहुलं रयिम्) = खूब ही ज्ञान व शक्ति रूप धन को (वसीमहि) = धारण करें।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोमरक्षण द्वारा हमें वह ज्ञान व शक्ति रूप धन प्राप्त हो जो हमारे जीवन को अलंकृत करे ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सुक्रतो) हे शोभनयज्ञप्रभो जगन्नियन्तः ! (सः) पूर्वोक्तस्त्वं (तु) झटिति (पार्थिवम्) पृथ्वीलोकस्य तथा (रजः) अन्तरिक्षलोकस्य (परि) चतुर्दिक्षु (पवस्व) मां पवित्रय। अथ च (आ धून्वते स्तोत्रे) कम्पितं स्तोतारं मां (शिक्षन्) शिक्षयन् पवित्रय। तथा (सादनस्पृशः) यत् मन्दिरशोभारूपं (वसुनः) धनं वर्तते तेन (नः) अस्मान् (मा निः भाक्) अवियुक्तान् कुरु। अतः (पिशङ्गं बहुलं रयिम्) स्वर्णादियुतं बहुधनं (वसीमहि) वयं प्राप्नुमः ॥८॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O lord of holy action and yajnic dynamics of the universe, flow and purify everything of the globe and the skies, giving me, your enthusiastic celebrant, the vision and wisdom for the good life. Deprive us not of the peace, power and wealth of the home and family.$Bless us that we may live in peace and enjoy peace and homely wealth of golden plenty and variety.