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सा॒कं व॑दन्ति ब॒हवो॑ मनी॒षिण॒ इन्द्र॑स्य॒ सोमं॑ ज॒ठरे॒ यदा॑दु॒हुः । यदी॑ मृ॒जन्ति॒ सुग॑भस्तयो॒ नर॒: सनी॑ळाभिर्द॒शभि॒: काम्यं॒ मधु॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sākaṁ vadanti bahavo manīṣiṇa indrasya somaṁ jaṭhare yad āduhuḥ | yadī mṛjanti sugabhastayo naraḥ sanīḻābhir daśabhiḥ kāmyam madhu ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सा॒कम् । व॒द॒न्ति॒ । ब॒हवः॑ । म॒नी॒षिणः॑ । इन्द्र॑स्य । सोम॑म् । ज॒ठरे॑ । यत् । आ॒ऽदु॒हुः । यदि॑ । मृ॒जन्ति॑ । सुऽग॑भस्तयः । नरः॑ । सऽनी॑ळाभिः । द॒सऽभिः॑ । काम्य॑म् । मधु॑ ॥ ९.७२.२

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:72» मन्त्र:2 | अष्टक:7» अध्याय:2» वर्ग:27» मन्त्र:2 | मण्डल:9» अनुवाक:4» मन्त्र:2


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यदि) जब (बहवः मनीषिणः) बुद्धिमान् लोग (साकं) साथ ही (वदन्ति) उसका यशोगान करते हैं, तब (इन्द्रस्य) कर्मयोगी के (जठरे) अन्तःकरण में (सोमम्) शान्तिरूप परमात्मा (आदुहुः) परिपूर्ण रहते हैं और (सुगभस्तयः नरः) भाग्यवान् लोग जब (मृजन्ति) उसका साक्षात्कार करते हैं, तब (सनीळाभिर्दशभिः) बलयुक्त दश इन्द्रियों से (काम्यम् मधु) यथेष्ट आनन्दलाभ करते हैं ॥२॥
भावार्थभाषाः - जब कर्मयोगी लोग उस परमात्मा का साक्षात्कार करते हैं, तब सामाजिक बल उत्पन्न होता है अर्थात् बहुत से लोगों की संगति होकर परमात्मा के यश का गान करते हैं ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सुगभस्तयो नरः

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (इन्द्रस्य) = उस परमैश्वर्यवाले प्रभु के अत्यन्त प्रिय [परिप्रिय] (सोमम्) = सोम को (यदा) = जब (जठरे) = अपने अन्दर (आदुहुः) = [दुह प्रपूरणे] प्रपूरित करते हैं, तो (बहवः) = बहुत से (मनीषिणः) = बुद्धिमान् पुरुष (साकम्) = मिलकर (वदन्ति) = प्रभु के स्तोत्रों का उच्चारण करते हैं। वस्तुतः एक परिवार में सभी मिलकर बैठें और प्रभु के स्तोत्रों का उच्चारण करें तो घर का वातावरण बड़ा सुन्दर बनता है । इस वातावरण में ही वासनाओं से ऊपर उठे रहने के कारण सोमरक्षण का सम्भव होता है । [२] (यत्) = जब (ई) = निश्चय से (नरः) = मनुष्य (काम्यं मधु) = इस कमनीय [चाहने योग्य] सोम को (सनीडाभिः दशभि:) = इधर-उधर न भटकर अपने नियत कर्मों में एकाग्र [स-नीड] दस इन्द्रियों से (मृजन्ति) = शुद्ध करते हैं तो वे (सुगभस्तयः) = उत्तम ज्ञानरश्मियोंवाले होते हैं । इन्द्रियाँ जब इधर-उधर नहीं भटकतीं, तो यह सोम शुद्ध बना रहता है। यह शुद्ध सोम शरीर में सुरक्षित होकर ज्ञानाग्नि का ईंधन बनता है । ' गभस्ति' शब्द का अर्थ 'हाथ' भी है। ये सोमरक्षक पुरुष उत्तम हाथोंवाले होते हैं, अर्थात् सदा उत्तम कर्मों में प्रवृत्त रहते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - सोम को सुरक्षित करने पर हमारी स्तुति की वृत्ति बनती है। इन्द्रियाँ नियत कर्मों में लगी रहकर एकाग्र बनी रहें तो सोम का रक्षण होता है और हम उत्तम ज्ञान- रश्मियोंवाले व उत्तम कर्मोंवाले होते हैं।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सुगभस्तयः) शोभनकर्माणः (नरः) नेतारो जनाः (यदि) यदा (सनीळाभिः) बलयुक्तैः (दशभिः) दशेन्द्रियैः (काम्यम्) सर्वकामप्रदम् (मधु) आनन्दरूपं परमात्मानं (जठरे) अन्तःकरणे (मृजन्ति) ध्यानविषयं कुर्वन्ति तदा (बहवः) प्रचुराः (मनीषिणः) योगिनः (साकं वदन्ति) युगपदेव उच्चारयन्ति। किं तत् वदन्ति (इन्द्रस्य) ऐश्वर्यस्य (सोमम्) उत्पादकं परमात्मानं (आदुहुः) यूयं साक्षात्कुरुत ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - When intelligent celebrants experience the Soma ecstasy in the heart core of personality, when brilliant people, leading lights of high mind and soul, with all ten senses and pranas collected, controlled and exalted with Soma, realise the bliss they cherish, they all celebrate the divine presence and burst forth in song.