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अमृ॑क्तेन॒ रुश॑ता॒ वास॑सा॒ हरि॒रम॑र्त्यो निर्णिजा॒नः परि॑ व्यत । दि॒वस्पृ॒ष्ठं ब॒र्हणा॑ नि॒र्णिजे॑ कृतोप॒स्तर॑णं च॒म्वो॑र्नभ॒स्मय॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

amṛktena ruśatā vāsasā harir amartyo nirṇijānaḥ pari vyata | divas pṛṣṭham barhaṇā nirṇije kṛtopastaraṇaṁ camvor nabhasmayam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अमृ॑क्तेन । रुश॑ता । वास॑सा । हरिः॑ । अम॑र्त्यः । निः॒ऽनि॒जा॒नः । परि॑ । व्य॒त॒ । दि॒वः । पृ॒ष्ठम् । ब॒र्हणा॑ । निः॒ऽनिजे॑ । कृ॒त॒ । उ॒प॒ऽस्तर॑णम् । च॒म्वोः॑ । न॒भ॒स्मय॑म् ॥ ९.६९.५

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:69» मन्त्र:5 | अष्टक:7» अध्याय:2» वर्ग:21» मन्त्र:5 | मण्डल:9» अनुवाक:4» मन्त्र:5


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अमर्त्यः हरिः) अमरणधर्मा परमात्मा तथा (निर्णिजानः) शुद्ध (अमृक्तेन रुशता) अपने स्वाभाविक तेज से (वाससा) अपनी शक्तिरूपी आच्छादन द्वारा (दिवः पृष्ठं) द्युलोक के पृष्ठ को जिसमें (चम्वोः नभस्मयं) द्युलोक की और पृथिवीलोक की (कृतोपस्तरणं) अन्तरिक्षरूपी बिछौना है, उसको (बर्हणा) अपनी प्रकृतिरूपी पुच्छ से (निर्णिजे) पुष्ट करता है और (परि व्यत) सब ओर से इस ब्रह्माण्ड को आच्छादित करता है ॥५॥
भावार्थभाषाः - अजरामरादिभावयुक्त परमात्मा अपने प्रकृतिरूपी बर्हिष् से सब संसार को आच्छादित किये हुए है ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

अमृक्त रुशत् वासस्

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (हरि:) = दुःखों का हरण करनेवाला (अमर्त्यः) = रोगों से न मरने देनेवाला (निर्णिजान:) = हमारे जीवन को पवित्र व पुष्ट करता हुआ यह सोम हमें (अमृक्तेन) = अहिंसित (रुशता) = चमकते हुए (वाससा) = ज्ञान के वस्त्र से (परिव्यत) = परितः आच्छादित करता है। [२] यह सोम (बर्हणा) = वासनाओं के उद्धर्हण के द्वारा (दिवः पृष्ठम्) = मस्तिष्क रूप द्युलोक के पृष्ठ को [surface को] (निर्णिजे कृत) = शोधन के लिये करता है। मस्तिष्क को दीप्त करनेवाला होता है। यह सोम (चम्वोः) = द्यावापृथिवी के, मस्तिष्क व शरीर के (नभस्मयम्) = [ नभस् - water, आप:- रेतः] रेतःकणों से बने हुए(उपस्तरणम्) = आच्छादन को करता है रेतः कणों से बना हुआ आच्छादन शरीर को रोगों के आक्रमण से बचाता है और मस्तिष्क को (तामस) = अन्धकार से आवृत नहीं होने देता । वस्तुतः सोम इन रेतः कणों के द्वारा शरीर को नीरोग व मस्तिष्क को दीप्त बनाता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ–सोम हमारा आच्छादन बनता है। इससे हमारे पर न रोगों का आक्रमण होता है और न अज्ञानजनित कुविचारों का ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अमर्त्यः हरिः) मरणधर्मरहितः परमात्मा तथा (निर्णिजानः) शुद्धः (अमृक्तेन रुशता) स्वकीयस्वाभाविकतेजसा (वाससा) स्वशक्तिरूपाच्छादनेन (दिवः पृष्ठम्) द्युलोकपृष्ठं यत् (चम्वोः नभस्मयम्) द्यावापृथिव्योः (कृतोपस्तरणं) परिकल्पितान्तरिक्ष- रूपोपस्करणं तत् (बर्हणा) स्वीयप्रकृतिपुच्छेन (निर्णिजे) पुष्णाति। अथ च (परि व्यत) ब्रह्माण्डमिमं सर्वत आच्छादयति ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - The saviour, destroyer of suffering and darkness, cleansing and sanctifying existence with imperishable light of his glory, pervades, transcends and beatifies the top of heaven and the middle regions of vapour between earth and heaven, vesting them all with his splendour.