पदार्थान्वयभाषाः - [१] (मनीषाः) = [मनीषा अस्य अस्ति इति मनीष ] मन की शासिका बुद्धिवाले (स्तुभः) = स्तोता लोग (सोमम्) = सोम को (अभ्यनूषत) = प्रातः-सायं स्तुत करते हैं। सोम के स्तवन से, सोम के गुणों के स्मरण से, सोमरक्षण की प्रवृत्ति उनमें और अधिक उत्पन्न होती है । उस सोम को स्तुत करते हैं, जो (परिप्रयन्तम्) = शरीर में चारों ओर गतिवाला होता है, (वय्यम्) = (कर्मतन्तु) = का सन्तान करनेवाला होता है, इस सोम के रक्षण से शक्ति व स्फूर्ति उत्पन्न होती है, (सुषंसदम्) = उत्तम संस्थानवाला होता है, सोमरक्षण से अंग-प्रत्यंग की स्थिति ठीक होती है । [२] (यः) = जो सोम (धारया) = अपनी धारणशक्ति से (मधुमान्) = माधुर्यवाला है। (ऊर्मिणा) = अपनी लहरों द्वारा अथवा [ light] प्रकाश के द्वारा (दिवः वाचं इयर्ति) = प्रकाश की वाणी को हमारे में प्रेरित करता है, मस्तिष्क को उज्ज्वल बनाता है । (रयिषाड्) = सब धनों का विजेता है और (अमर्त्यः) = हमें असमय मरने नहीं देता, पूर्ण आयुष्य का कारण बनता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - स्वाध्याय व स्तुति से रक्षित सोम जीवन को मधुर बनाता है, ज्ञान की वाणियों को हमारे में प्रेरित करता है, पूर्ण जीवन को देता है ।