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प॒रि॒प्र॒यन्तं॑ व॒य्यं॑ सुषं॒सदं॒ सोमं॑ मनी॒षा अ॒भ्य॑नूषत॒ स्तुभ॑: । यो धार॑या॒ मधु॑माँ ऊ॒र्मिणा॑ दि॒व इय॑र्ति॒ वाचं॑ रयि॒षाळम॑र्त्यः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pariprayantaṁ vayyaṁ suṣaṁsadaṁ somam manīṣā abhy anūṣata stubhaḥ | yo dhārayā madhumām̐ ūrmiṇā diva iyarti vācaṁ rayiṣāḻ amartyaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प॒रि॒ऽप्र॒यन्त॑म् । व॒य्य॑म् । सु॒ऽसं॒सद॑म् । सोम॑म् । म॒नी॒षाः । अ॒भि । अ॒नू॒ष॒त॒ । स्तुभः॑ । यः । धार॑या । मधु॑ऽमान् । ऊ॒र्मिणा॑ । दि॒वः । इय॑र्ति । वाच॑म् । र॒यि॒षाट् । अम॑र्त्यः ॥ ९.६८.८

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:68» मन्त्र:8 | अष्टक:7» अध्याय:2» वर्ग:20» मन्त्र:3 | मण्डल:9» अनुवाक:4» मन्त्र:8


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (मनीषाः स्तुभः) शुद्ध बुद्धियाँ (परिप्रयन्तं) सबको प्राप्त होनेवाले (वय्यं) विद्वानों से काम्यमान (सुषंसदं) शोभन स्थितिवाले (सोमं) परमात्मा को (अभि अनूषत) वर्णन करती हैं। (यो धारया) जो अपने अमृत की धारा से (मधुमान्) आनन्दमय है तथा (ऊर्मिणा) आनन्द की लहर द्वारा (दिवः) द्युलोक से (वाचं) वेदवाणी को (इयर्ति) देता है, वह परमात्मा (रयिषाट्) समस्त ऐश्वर्यदाता तथा (अमर्त्यः) मरणधर्मरहित है ॥८॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा अपनी दिव्यशक्ति से पवित्र वेदवाणी का प्रकाश करता है और स्वयं आमरणधर्मा होकर जगज्जन्मादि का हेतु है ॥८॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

रयिषाट् अमर्त्यः

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (मनीषाः) = [मनीषा अस्य अस्ति इति मनीष ] मन की शासिका बुद्धिवाले (स्तुभः) = स्तोता लोग (सोमम्) = सोम को (अभ्यनूषत) = प्रातः-सायं स्तुत करते हैं। सोम के स्तवन से, सोम के गुणों के स्मरण से, सोमरक्षण की प्रवृत्ति उनमें और अधिक उत्पन्न होती है । उस सोम को स्तुत करते हैं, जो (परिप्रयन्तम्) = शरीर में चारों ओर गतिवाला होता है, (वय्यम्) = (कर्मतन्तु) = का सन्तान करनेवाला होता है, इस सोम के रक्षण से शक्ति व स्फूर्ति उत्पन्न होती है, (सुषंसदम्) = उत्तम संस्थानवाला होता है, सोमरक्षण से अंग-प्रत्यंग की स्थिति ठीक होती है । [२] (यः) = जो सोम (धारया) = अपनी धारणशक्ति से (मधुमान्) = माधुर्यवाला है। (ऊर्मिणा) = अपनी लहरों द्वारा अथवा [ light] प्रकाश के द्वारा (दिवः वाचं इयर्ति) = प्रकाश की वाणी को हमारे में प्रेरित करता है, मस्तिष्क को उज्ज्वल बनाता है । (रयिषाड्) = सब धनों का विजेता है और (अमर्त्यः) = हमें असमय मरने नहीं देता, पूर्ण आयुष्य का कारण बनता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - स्वाध्याय व स्तुति से रक्षित सोम जीवन को मधुर बनाता है, ज्ञान की वाणियों को हमारे में प्रेरित करता है, पूर्ण जीवन को देता है ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (मनीषाः स्तुभः) शुभबुद्धयः (परिप्रयन्तम्) सर्वैः प्राप्यं (वय्यम्) विद्वद्भिः काम्यमानं (सुषंसदम्) सुस्थितिमन्तं (सोमम्) परमात्मानं (अभ्यनूषत) वर्णयन्ति। (यो धारया) यस्त्वं स्वकीयानन्दामृतधारया (मधुमान्) आनन्दमयोऽसि। तथा (ऊर्मिणा) आमोदतरङ्गद्वारा (दिवः) द्युलोकतः (वाचम्) वेदवाणीं (इयर्ति) ददाति स परमेश्वरः (रयिषाट्) सकलैश्वर्यदायकस्तथा (अमर्त्यः) मरणधर्मरहितोऽस्ति ॥८॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Joyous celebrants with sincerity of mind and soul exalt Soma, universally vibrant Spirit, lovely and adorable, holy and companionable who, immortal treasurehold of the wealth and honey sweets of life, gives us streams and showers of the divine voice of omniscience from the heights of heaven.