क॒कु॒हः सो॒म्यो रस॒ इन्दु॒रिन्द्रा॑य पू॒र्व्यः । आ॒युः प॑वत आ॒यवे॑ ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
kakuhaḥ somyo rasa indur indrāya pūrvyaḥ | āyuḥ pavata āyave ||
पद पाठ
क॒कु॒हः । सो॒म्यः । रसः॑ । इन्दुः॑ । इन्द्रा॑य । पू॒र्व्यः । आ॒युः । प॒व॒ते॒ । आ॒यवे॑ ॥ ९.६७.८
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:67» मन्त्र:8
| अष्टक:7» अध्याय:2» वर्ग:14» मन्त्र:3
| मण्डल:9» अनुवाक:3» मन्त्र:8
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (ककुहः) महान् (सोम्यः) सौम्य स्वभाव (इन्दुः) सर्वैश्वर्यसंपन्न (आयुः) सर्वत्र गन्ता (रसः) रसस्वरूप (पूर्व्यः) अनादि परमात्मा (आयवे) सर्वत्र गतिवाले (इन्द्राय) कर्मयोगी को (पवते) पवित्र करता है ॥८॥
भावार्थभाषाः - इन्द्र शब्द के अर्थ यहाँ केवल कर्मयोगी नहीं, किन्तु कर्मयोगी, ज्ञानयोगी दोनों के हैं। तात्पर्य यह है कि जो पुरुष कर्म वा ज्ञान द्वारा परमात्मा को उपलब्ध करना चाहते हैं, उनके लिए परमात्मा सदैव सुलभ है ॥८॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
'ककुह' सोम
पदार्थान्वयभाषाः - [१] (सोम्यः) = सोम सम्बन्धी (रसः) = रस (ककुहः) = सर्वश्रेष्ठ है, सर्वोत्तम रस यही है, यही अपने रक्षक को उन्नति के शिखर पर पहुँचाता है । (इन्दुः) = यह शक्तिशाली बनाता है। (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिये (पूर्व्यः) = यह पालन व पूरण करनेवालों में उत्तम है । [११] (आयुः) = यह जीवन है (आयवे) = गतिशील पुरुष के लिये पवते प्राप्त होता है। गतिशील पुरुष ही इसका अपने में रक्षण कर पाता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - यह सोम 'इन्द्र, पूर्व्य व आयु' है। यही हमें सर्वोच्च शिखर पर पहुँचाता है।
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (ककुहः) महान् (“ककुह इति महन्नामसु पठितम्” नि० ३।१।३) (सोम्यः) सौम्यस्वभावः (इन्दुः) समस्तैश्वर्ययुक्तः (आयुः) सर्वगः (रसः) रसस्वरूपः (पूर्व्यः) अनादिः परमेश्वरः (आयवे) सर्वत्र गन्तारं (इन्द्राय) कर्मयोगिने (पवते) पवित्रयति ॥८॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - High, exhilarating and living nectar of eternal Soma bliss ever vibrant in nature, flows to the dedicated heart of the celebrant for his honour and excellence in life.
