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पव॑मानो॒ व्य॑श्नवद्र॒श्मिभि॑र्वाज॒सात॑मः । दध॑त्स्तो॒त्रे सु॒वीर्य॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pavamāno vy aśnavad raśmibhir vājasātamaḥ | dadhat stotre suvīryam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पव॑मानः । वि । अ॒श्न॒व॒त् । र॒श्मिऽभिः॑ । वा॒ज॒ऽसात॑मः । दध॑त् । स्तो॒त्रे । सु॒ऽवीर्य॑म् ॥ ९.६६.२७

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:66» मन्त्र:27 | अष्टक:7» अध्याय:2» वर्ग:12» मन्त्र:2 | मण्डल:9» अनुवाक:3» मन्त्र:27


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वाजसातमः) आध्यात्मिक बल देनेवाला परमात्मा, जो (रश्मिभिः) अपनी शक्तियों से (व्यश्नवत्) सबको स्वाधीन किये हुए है, वह (पवमानः) सबको पवित्र करनेवाला ईश्वर (स्तोत्रे) वेदाध्ययनशीलों में (सुवीर्यम्) ब्रह्मवर्चस का (दधत्) प्रदान करता है ॥२७॥
भावार्थभाषाः - स्वयंज्योति परमात्मा से ही विद्वानों को ब्रह्मवर्चस मिलता है, इसलिए एकमात्र उसी ईश्वर की उपासना करनी चाहिए ॥२७॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'वाजसातम' सोम

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (पवमानः) = यह सोम हमारे जीवन को पवित्र करनेवाला है। यह (रश्मिभिः) = ज्ञान की किरणों से इसे (व्यश्नवत्) = व्याप्त करता है । (वाजसातम:) = अधिक से अधिक शक्ति को देनेवाला है। [२] यह सोम (स्तोत्रे) = प्रभु स्तवन करनेवाले के लिये सुवीर्यं दधत् उत्तम शक्ति को धारण करता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोम जीवन को शक्ति व ज्ञानरश्मियों से व्याप्त करता है ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वाजसातमः) आध्यात्मिकबलदः परमेश्वरस्तथा (रश्मिभिः) स्वशक्तिभिः (व्यश्नवत्) सर्वान्स्वायत्ते कुर्वन् सः (पवमानः) पविता जगदीशः (स्तोत्रे) वेदाध्ययनशीलेभ्यः (सुवीर्यम्) ब्रह्मवर्चः (दधत्) प्रददाति ॥२७॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Pure and purifying, omnipresent with its radiations of self- refulgence, omnipotent giver of strength, power and advancement, inspirer of the celebrants and celebrations with divine bliss and energy, such is Soma.