अस्य॑ ते स॒ख्ये व॒यमिय॑क्षन्त॒स्त्वोत॑यः । इन्दो॑ सखि॒त्वमु॑श्मसि ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
asya te sakhye vayam iyakṣantas tvotayaḥ | indo sakhitvam uśmasi ||
पद पाठ
अस्य॑ । ते॒ । स॒ख्ये । व॒यम् । इय॑क्षन्तः । त्वाऽऊ॑तयः । इन्दो॒ इति॑ । स॒खि॒ऽत्वम् । उ॒श्म॒सि॒ ॥ ९.६६.१४
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:66» मन्त्र:14
| अष्टक:7» अध्याय:2» वर्ग:9» मन्त्र:4
| मण्डल:9» अनुवाक:3» मन्त्र:14
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्दो) प्रकाशरूपपरमेश्वर ! (अस्य ते सख्ये) पूर्वोक्त गुणविशिष्ट आपके मैत्री भाव में (वयम्) हम लोग (इयक्षन्तः) आपका यजन करते हैं। (त्वोतयः) आपसे सुरक्षित हुए हम लोग आपकी (सखित्वम्) मित्रता को (उश्मसि) चाहते हैं ॥१४॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा के साक्षात्कार से जब मनुष्य अत्यन्त सन्निहित हो जाता है, तब ब्रह्म के सत्यादि गुणों के धारण करने से उसमें ब्रह्मसाम्य हो जाता है। उसी का नाम ब्रह्ममैत्री है। इसी भाव का कथन इस मन्त्र में किया है कि हे परमात्मन् ! हम तुम्हारे मैत्रीभाव को प्राप्त हों ॥१४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
यज्ञशीलता व प्रभु-मित्रता
पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (इन्दो) = हमें शक्तिशाली बनानेवाले सोम ! (अस्य) = इस (ते) = तेरी (सख्ये) = मित्रता में, अर्थात् तुझे शरीर में सुरक्षित करते हुए (वयम्) = हम (इयक्षन्तः) = यज्ञादि उत्तम कर्मों की कामनावाले होते हुए, (त्वा ऊतया) = तेरे द्वारा रक्षणवाले हों । [२] हे (इन्दो:) = सोम ! तेरे से रक्षित हुए हुए हम (सखित्वम्) = प्रभु की मित्रता को (उश्मसि) = चाहते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - शरीर में सोम के सुरक्षित होने पर [क] हमारी वृत्ति यज्ञ आदि उत्तम कर्मों की ओर झुकती है, [ख] हमारी प्रभु - मित्रता की कामना होती है ।
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्दो) प्रकाशरूपपरमेश्वर ! (अस्य ते सख्ये) प्रागुक्तगुणविशिष्टस्य भवतो मित्रतायां (वयम्) वयं जनाः (इयक्षन्तः) तव यजनं कुर्मः (त्वोतयः) भवता सुरक्षिता वयं तव (सखित्वम्) मित्रत्वं (उश्मसि) वाञ्छामः ॥१४॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - O spirit of love and peace, beauty and grace, Indu, so gracious as you are, we offer yajna in honour of your friendship under your protection, and we pray we may enjoy your friendship and we may exalt and glorify that friendship.
