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पव॑ते हर्य॒तो हरि॑र्गृणा॒नो ज॒मद॑ग्निना । हि॒न्वा॒नो गोरधि॑ त्व॒चि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pavate haryato harir gṛṇāno jamadagninā | hinvāno gor adhi tvaci ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पव॑ते । ह॒र्य॒तः । हरिः॑ । गृ॒णा॒नः । ज॒मत्ऽअ॑ग्निना । हि॒न्वा॒नः । गोः । अधि॑ । त्व॒चि ॥ ९.६५.२५

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:65» मन्त्र:25 | अष्टक:7» अध्याय:2» वर्ग:5» मन्त्र:5 | मण्डल:9» अनुवाक:3» मन्त्र:25


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (हरिः) परमात्मा (हर्यतः) विद्वानों को चाहनेवाला (जमदग्निना) अन्तःचक्षु से (गृणानः) ग्रहण किया हुआ जो (अधि त्वचि) शरीर में (गोः) इन्द्रियों की (हिन्वानः) रचना करनेवाला है, वह (पवते) ज्ञान द्वारा हमको पवित्र करता है ॥२५॥
भावार्थभाषाः - इससे परमात्मा से इस बात की प्रार्थना की है कि आप सर्वोपरि विद्वान् उत्पन्न करके हमारा कल्याण करें ॥२५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'ज्ञानाग्नि व जाठराग्नि का रक्षक' सोम

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (हर्यतः) = हमारे लिये दिव्यगुणों को प्राप्त कराने की कामना करता हुआ, (हरिः) = यह दुःखों का हरण करनेवाला सोम (गो:) = ज्ञान की वाणियों के (त्वचि अधि)[त्वच् cover ] = रक्षण के निमित्त रक्षक आवरण के निमित्त (हिन्वानः) = शरीर में प्रेरित किया जाता है। शरीर में प्रेरित हुआ- हुआ सोम इन ज्ञानों का रक्षण करता है, सोम के अभाव में ज्ञानाग्नि बुझ जाती है । [२] यह सोम (जमदग्निना) = खूब खानेवाली है जाठराग्नि जिसकी ऐसे पुरुष से, दीप्त जाठराग्निवाले पुरुष से (गृणानः) = स्तुति किया जाता हुआ (पवते) = शरीर में गतिवाला होता है। वस्तुतः सोमरक्षण से ही जाठराग्नि दीप्त रहती है । सोम-विनाश जाठराग्नि की मन्दता का कारण बनता है । और जाठराग्नि को दीप्त रखता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुरक्षित सोम ज्ञानाग्नि का रक्षक आवरण बनता है।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (हरिः) परमेश्वरः (हर्यतः) विदुषामभिलाषुकः (जमदग्निना) अन्तश्चक्षुषा (गृणानः) गृहीतः यः (अधि त्वचि) शरीरे (गोः) इन्द्रियाणां (हिन्वानः) निर्मातास्ति स जगदीश्वरः (पवते) ज्ञानद्वारास्मान् पवित्रयति ॥२५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Soma, lord of power, peace and bliss, saviour and sanctifier of heart and soul, destroyer of suffering, lover of all, adored and exalted by sages and scholars of vision and wisdom, flows and sanctifies life and, presiding over the body, energises and sanctifies the organs of perception, volition and decision.