दवि॑द्युतत्या रु॒चा प॑रि॒ष्टोभ॑न्त्या कृ॒पा । सोमा॑: शु॒क्रा गवा॑शिरः ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
davidyutatyā rucā pariṣṭobhantyā kṛpā | somāḥ śukrā gavāśiraḥ ||
पद पाठ
दवि॑द्युतत्या । रु॒चा । प॒रि॒ऽस्तोभ॑न्त्या । कृ॒पा । सोमाः॑ । शु॒क्राः । गोऽआ॑शिरः ॥ ९.६४.२८
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:64» मन्त्र:28
| अष्टक:7» अध्याय:1» वर्ग:41» मन्त्र:3
| मण्डल:9» अनुवाक:3» मन्त्र:28
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (सोमाः) सर्वोत्पादक (शुक्राः) बलस्वरूप (गवाशिरः) इन्द्रियागोचर परमात्मा (दविद्युतत्या) अपनी उज्ज्वल ज्योति से (रुचा) जो ज्ञानदीप्तिवाली है (परिस्तोभन्त्या) और जो सर्वोपरि शोभावाली है, (कृपा) ऐसी कृपादृष्टि से हमारा कल्याण करें ॥२८॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा जिन लोगों पर अपनी कृपादृष्टि करता है, उनका कल्याण अवश्यमेव होता है ॥२८॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
दविद्युतत्या रुचा
पदार्थान्वयभाषाः - [१] (सोमाः) = शरीर में सुरक्षित सोम (दविद्युतत्या रुचा) = खूब दीप्त होती हुई ज्ञानदीप्ति से युक्त होते हैं। हमारी ज्ञानाग्नि को दीप्त करके हमें ज्ञानोज्ज्वल बनाते हैं । [२] ये सोम (परिष्टोभन्त्या) = सब रोगों व वासनाओं को रोकते हुए [स्तोते [To stop]] (कृपा) = सामर्थ्य से युक्त होते हैं । इनके रक्षण से हृदय पवित्र होता है और शरीर नीरोग बनता है । [३] ये सोम (शुक्राः) = हमें दीप्त व निर्मल बनाते हैं और (गवाशिरः) = [गो आ शृ] सब इन्द्रियों के मलों को समन्तात् शीर्ण करनेवाले हैं। हमारी इन्द्रियों को ये पवित्र व सशक्त बनाते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुरक्षित सोम देदीप्यमान ज्ञान - ज्योति का साधन बनता है । यह उस सामर्थ्य को प्राप्त कराता है, जो कि सब रोगों का निवारण करता है । इन्द्रियों के मलों को यह शीर्ण करता है ।
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (सोमाः) सर्वोत्पादकः (शुक्राः) बलस्वरूपः (गवाशिरः) इन्द्रियागोचरः परमात्मा (दविद्युतत्या) स्वोज्ज्वलज्योतिषा (रुचा) ज्ञानदीप्त्या (परिस्तोभन्त्या) सर्वोत्कृष्टशोभमानया (कृपा) एतादृश्या कृपयास्माकं कल्याणं करोतु ॥२८॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - Pure, powerful and heavenly radiations of divinity flow with beauty, glory and shining sublimity of grace, blessing the mind and soul of the supplicants.
