रसं॑ ते मि॒त्रो अ॑र्य॒मा पिब॑न्ति॒ वरु॑णः कवे । पव॑मानस्य म॒रुत॑: ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
rasaṁ te mitro aryamā pibanti varuṇaḥ kave | pavamānasya marutaḥ ||
पद पाठ
रस॑म् । ते॒ । मि॒त्रः । अ॒र्य॒मा । पिब॑न्ति । वरु॑णः । क॒वे॒ । पव॑मानस्य । म॒रुतः॑ ॥ ९.६४.२४
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:64» मन्त्र:24
| अष्टक:7» अध्याय:1» वर्ग:40» मन्त्र:4
| मण्डल:9» अनुवाक:3» मन्त्र:24
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (पवमानस्य) सबको पवित्र करनेवाले जो आप हैं, ऐसे आपके (रसं) रस को (मित्रः) समदर्शी विद्वान् (वरुणः) विज्ञानादि गुणों से सृष्टि को आच्छादन करनेवाले (मरुतः) कर्मयोगिगण (ते कवे) तुम जो सर्वज्ञ हो, ऐसे आपके रस को (अर्यमा) न्यायकारी लोग (पिबन्ति) पान करते हैं ॥२४॥
भावार्थभाषाः - जो पुरुष कर्मयोगी तथा ज्ञानयोगी है, वही उस परमात्मा के आनन्द को पान कर सकता है, अन्य नहीं। तात्पर्य यह है कि परमात्मा के समान परमात्मा का आनन्द भी सर्वत्र परिपूर्ण है, परन्तु विना उक्त उपदेश से वा यों कहो कि सर्वोपरि साधन के विना उसके आनन्द का कोई भी उपभोग नहीं कर सकता, इसीलिये यहाँ उक्त प्रकार के योगियों का कथन किया है कि उक्त योगी ही उसके आनन्द को भोगते हैं ॥२४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
कौन सोम का पान करते हैं ?
पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (कवे) = क्रान्तप्रज्ञ हमारी बुद्धि को सूक्ष्म बनानेवाले सोम! (ते रसम्) = तेरे रस को, सार को (मित्रः) = सब के प्रति स्नेहवाला, (अर्यमा) = दान की वृत्तिवाला, (वरुणः) = द्वेष का निवारण करनेवाला (पिबन्ति) = पीता है । सोम का रक्षण 'मित्र, अर्यमा व वरुण' करते हैं। [२] हे सोम ! (पवमानस्य) = पवित्र करनेवाले तेरे रस को (मरुतः) = प्राणसाधना करनेवाले पुरुष पीते हैं । प्राणसाधना से ही सोम की शरीर में ऊर्ध्वगति होती है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- 'मित्र, अर्यमा, वरुण व मरुत्' सोम का पान करते हैं।
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (पवमानस्य) सकलपावकस्य भवतः (रसम्) रसं (मित्रः) समद्रष्टारः (वरुणः) विज्ञानादिभिर्गुणैः सृष्टेराच्छादका विद्वांसः (मरुतः) कर्मयोगिनः (ते कवे) सर्वज्ञस्य तव रसं (अर्यमा) न्यायकारिणः (पिबन्ति) पानं कुर्वन्ति ॥२४॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - O creative poet of existence and omniscience, pure, purifying and ever flowing divinity, Mitra, enlightened all-loving people, Aryama, men of judgement and discrimination, Varuna, people of rectitude worthy of universal choice, Maruts, vibrant warriors of peace and heroes of karmic progress, all drink and enjoy the nectar sweets of your presence in company.
