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सु॒ता अनु॒ स्वमा रजो॒ऽभ्य॑र्षन्ति ब॒भ्रव॑: । इन्द्रं॒ गच्छ॑न्त॒ इन्द॑वः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sutā anu svam ā rajo bhy arṣanti babhravaḥ | indraṁ gacchanta indavaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सु॒ताः । अनु॑ । स्वम् । आ । रजः॑ । अ॒भि । अ॒र्ष॒न्ति॒ । ब॒भ्रवः॑ । इन्द्र॑म् । गच्छ॑न्तः । इन्द॑वः ॥ ९.६३.६

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:63» मन्त्र:6 | अष्टक:7» अध्याय:1» वर्ग:31» मन्त्र:1 | मण्डल:9» अनुवाक:3» मन्त्र:6


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सुताः) संस्कार किये हुए और (स्वं) अपने (रजः) स्थान को (आगच्छन्तः) प्राप्त होते हुए (इन्द्रम्) परमात्मा को प्राप्त होकर (इन्दवः) प्रकाशस्वरूप संकल्प (बभ्रवः) जो स्थिर हैं, वे (अन्वभ्यर्षन्ति) परमात्मा को प्राप्त होते हैं ॥६॥
भावार्थभाषाः - जो लोग अपनी चित्तवृत्तियों को निर्मल करते हैं, वे एक प्रकार से व्यवसायात्मक बुद्धि को बनाते हैं। अथवा यों कहो कि “तदा द्रष्टुः स्वरूपेऽवस्थानम्” यो. १। ३। इस योगसूत्र में वर्णित किये हुए आत्मस्वरूप में स्थिति पाकर शुद्ध होते हैं। चित्तवृत्ति, संकल्प ये पर्याय शब्द हैं। परमात्मा ने इस मन्त्र में इस बात का उपदेश किया है कि हे मनुष्यों ! आप शुद्ध संकल्प होकर मेरी और आयें ॥६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

इन्द्रं गच्छन्तः

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (सुताः) = उत्पन्न हुए हुए ये सोमकण (बभ्रवः) - हमारा धारण करनेवाले होते हैं। ये (इन्दवः) = शक्तिशाली सोम (इन्द्रं गच्छन्तः) - जितेन्द्रिय पुरुष को प्राप्त होते हैं। [२] ये सोम (स्वं रजः) = अपने लोक का (अनु) = लक्ष्य करके (आ अभ्यर्षन्ति) = शरीर में चारों ओर प्राप्त होते हैं। शरीर में सुरक्षित हुए हुए ही ये स्वस्थान में स्थित रहते हैं । यहाँ स्थित हुए-हुए ये शरीर को 'नीरोग, निर्मल व दीप्त' बनाते हैं और हमें प्रभु प्राप्ति के योग्य करते हैं। इस प्रकार ये उस इन्द्र की ओर जा रहे होते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - जितेन्द्रिय पुरुष में ये सोम अपने स्थान में ही स्थित रहते हैं, अर्थात् शरीर से निर्गत नहीं होते और इस प्रकार ये हमें प्रभु की ओर ले चलते हैं ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सुताः) संस्कृतास्तथा (स्वं रजः) स्वकीयं स्थानं (आगच्छन्तः) प्राप्तवन्तः (इन्द्रम्) परमात्मानं प्राप्य (इन्दवः) ये प्रकाशस्वरूपसङ्कल्पाः (बभ्रवः) स्थिराः सन्ति ते (अन्वभ्यर्षन्ति) परमात्मानं प्राप्नुवन्ति ॥६॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - These determined forces of peace and progress trained and committed to positive values of universality, vibrant and fast, advance in their own essential nature and realise the highest ideals of Indra, central power of united humanity and common values.