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परि॒ वाजे॒ न वा॑ज॒युमव्यो॒ वारे॑षु सिञ्चत । इन्द्रा॑य॒ मधु॑मत्तमम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pari vāje na vājayum avyo vāreṣu siñcata | indrāya madhumattamam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

परि॑ । वाजे॑ । न । वा॒ज॒ऽयुम् । अव्यः॑ । वारे॑षु । सि॒ञ्च॒त॒ । इन्द्रा॑य । मधु॑मत्ऽतमम् ॥ ९.६३.१९

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:63» मन्त्र:19 | अष्टक:7» अध्याय:1» वर्ग:33» मन्त्र:4 | मण्डल:9» अनुवाक:3» मन्त्र:19


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! (इन्द्राय) कर्मयोगी के लिये (मधुमत्तमम्) सर्वोपरि माधुर्य को (परिषिञ्चत) सिञ्चन करें (अव्यः) सबको रक्षा करनेवाले आप (वारेषु) वरणीय पदार्थों में (वाजयुं न) वीरों के समान (वाजे) युद्ध में रक्षा करें ॥१९॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा उपदेश करते हैं कि जो लोग कर्मयोगी और उद्योगी बनकर अपने लक्ष्य की पूर्ति में कटिबद्ध रहते हैं, परमात्मा वीरों के समान उनकी रक्षा करता है ॥१९॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'वाजयु-मधुमत्तम' सोम

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (वाजे न) = जीवन संग्राम के निमित्त, संग्राम तुल्य इस जीवन में (वाजयुम्) = शक्ति को हमारे साथ जोड़नेवाले इस सोम को (अव्यः) = [ अवेः ] सोमरक्षक पुरुष के वारेषु वासनाओं के निवारण करने पर (परि सिञ्चत) = शरीर में चारों ओर सिक्त करनेवाले होवो । जब हम वासनाओं से ऊपर उठते हैं, तो सोम को शरीर में सुरक्षित कर पाते हैं । [२] उस सोम को शरीर में सिक्त करो, जो कि (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिये (मधुमत्तमम्) = जीवन को अतिशयेन मधुर बनानेवाला है। शरीर को यह सोम ही सब प्रकार से नीरोग व निर्मल बनाता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें जीवन संग्राम में विजय के लिये शक्ति प्राप्त कराता है ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे जगदीश्वर ! (इन्द्राय) कर्मयोगिने (मधुमत्तमम्) सर्वोत्कृष्टमाधुर्यं (परिषिञ्चत) सिञ्चय। (अव्यः) सर्वरक्षको भवान् (वारेषु) वरणीयपदार्थेषु (वाजयुं न) वीर इव (वाजे) सङ्ग्रामे रक्षां करोतु ॥१९॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - As in war you send up a heroic warrior to battle, so in times of peace of your choice create the sweetest and most brilliant soma of beauty and joy for the glory of the human order.