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असा॑व्यं॒शुर्मदा॑या॒प्सु दक्षो॑ गिरि॒ष्ठाः । श्ये॒नो न योनि॒मास॑दत् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asāvy aṁśur madāyāpsu dakṣo giriṣṭhāḥ | śyeno na yonim āsadat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

असा॑वि । अं॒शुः । मदा॑य । अ॒प्ऽसु । दक्षः॑ । गि॒रि॒ऽस्थाः । श्ये॒नः । न । योनि॑म् । आ । अ॒स॒द॒त् ॥ ९.६२.४

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:62» मन्त्र:4 | अष्टक:7» अध्याय:1» वर्ग:24» मन्त्र:4 | मण्डल:9» अनुवाक:3» मन्त्र:4


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अप्सु दक्षः) क्रियाओं में कुशल (गिरिष्ठाः श्येनः न) मेघ में स्थित विद्युत् के समान शीघ्रकारी (अंशुः) तेजस्वी सेनापति (असावि) ईश्वर से पैदा किया गया (योनिम् आसदत्) अपनी पदवी को ग्रहण करता है ॥४॥
भावार्थभाषाः - उक्त गुणसम्पन्न सेनापति ईश्वर की आज्ञा से उत्पन्न होता है। तात्पर्य यह है कि ईश्वर उपदेश करता है कि मनुष्यों ! तुम उक्तगुणोंवाले पुरुष को सेनापति मानो और ऐसे सेनापतियों से राजधर्म का दृढ़ प्रबन्ध करके रक्षा का प्रचार करो ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

आनन्द - कर्मकुशलता व ज्ञान

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (अंशुः) = सोम (असावि) = शरीर में उत्पन्न किया जाता है। यह (मदाय) = शरीर में रक्षित हुआ आनन्द की वृद्धि के लिये होता है । (अप्सु दक्षः) = यह कर्मों में कुशल होता है, सोमरक्षण करनेवाला पुरुष कर्मों को कुशलता से करता है। यह सोम (गिरिष्ठाः) = वेदवाणी में स्थित होता है । सोमरक्षण से ज्ञानाग्नि दीप्त होती है और हम इन ज्ञान की वाणियों को अच्छी प्रकार समझने लगते हैं । [२] यह सोम (न) = [इदानीं ] अब (श्येनः) = शंसनीय गतिवाला होता हुआ (योनिम्) = सारे ब्रह्माण्ड के प्रभव रूप प्रभु में (आसदत्) = आसीन होता है। हमें प्रभु को यह प्राप्त करानेवाला बनता है । इस सोम के रक्षण से ही तो उस सोम की प्राप्ति होती है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुरक्षित सोम 'आनन्द, कर्मकुशलता व ज्ञान' को प्राप्त कराता हुआ प्रभु प्राप्ति का साधन बनता है ।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अप्सु दक्षः) क्रियाकुशलः (गिरिष्ठाः श्येनः न) मेघस्थितविद्युदिव शीघ्रकारी (अंशुः) तेजस्वी सेनाधीशः (असावि) ईश्वरत उत्पन्नः (योनिम् आसदत्) स्वपदवीं गृह्णाति ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - The peace and pleasure of life’s ecstasy in thought and action, and the expertise well founded on adamantine determination is created by Savita, the creator, like the flying ambition of the soul and it is settled in its seat at the heart’s core in the personality.